Sambhal News: उत्तर प्रदेश की संभल लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी जिया उर रहमान बर्क़ ने भाजपा प्रत्याशी परमेश्वर लाल सैनी को लगभग सवा लाख वोटो से हरा कर बड़ी जीत हासिल की है. जिया उर रहमान बर्क़ ने इतने बड़े अंतर हारकर अपने दिवंगत दादा डॉक्टर शफीकुर्रहमान बर्क़ की राजनीतिक विरासत को बरकरार रखने में कामयाबी हासिल की है.


जिया उर रहमान बर्क़ की शुरुआती प्राईमरी की पढ़ाई तो संभल में ही हुई लेकिन कक्षा पांचवी में उनका दाखिला अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में करा दिया गया. वहां से पहले उन्होंने राजनीतिक शास्त्र में बीए किया और फिर रुहेलखंड विश्वविद्यालय से उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन किया. उन्होंने नोएडा से लॉ की पढ़ाई एलाइड कॉलेज से की. पढ़ाई के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में वह छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे.राजनीतिक गुण उन्होंने अपने दादा डॉ शफीकुर्रहमान बर्क़ से सीखे और 2022 में पहली बार सपा के टिकिट पर मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर विधायक बने.


समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 में उनके दादा डॉक्टर शफीकुर्रहमान बर्क़ को टिकट देकर प्रत्याशी घोषित किया था लेकिन इस दौरान उनकी बीमारी के चलते मौत हो गई. जिसके बाद समाजवादी पार्टी ने जिया उर रहमान बर्क़ को टिकिट देकर प्रत्याशी बनाया. जिया उर रहमान बर्क़ ने दादा की मौत के बाद हिम्मत नहीं हारी और लोक सभा चुनाव में डट गए. जिया उर रहमान बर्क़ के लिए चुनौती बड़ी थी लेकिन लोकसभा का चुनाव में डटकर मुकाबला किया और संभल की जनता ने उन्हें खूब वोट देकर सांसद बना दिया.


कम उम्र में पढ़ने के लिए गए अलीगढ़
जिया उर रहमान बर्क़ ने बताया कि पढ़ाई के लिए उन्हें बहुत कम उम्र में अलीगढ़ भेज दिया गया था लेकिन मुझे पूरी आजादी थी कि मैं कौन सा कोर्स पसंद करूं हालांकि मेरी मां चाहती थी कि मैं मेडिकल की पढ़ाई करूं लेकिन मेरे ऊपर कोई दबाव नहीं था. मेरे दादा चाहते थे कि मैं पढ़ाई लिखाई करने के बाद राजनीति करूँ, इसीलिए मैंने राजनीति शास्त्र में पढ़ाई की और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में ही मैंने राजनीति शुरू कर दी थी.पढ़ाई पूरी करने के बाद दादा के साथ रहकर मैंने राजनीति के गुण सीखे. राजनीति में होने के कारण परिवार के लिए समय बहुत कम मिलता है, जब कभी समय मिलता है तो इंडोर टेबिल टेनिस और आउटडोर में वॉलीवाल मैं खेलता हूँ दादा और कुछ दूसरे शायरों की शायरी मैं पढ़ता हूं लेकिन अभी दादा की तरह ख़ुद मैं शायरी के कलाम लिख नहीं पाता हूं. 


जिया उर रहमान बर्क़ ने बताया कि मेरी अरेंज मैरिज हुई है मेरे ससुर एनआरई थे. वे अब यहीं संभल में रहते हैं. मेरी पत्नी का नाम तूबा बर्क़ है, वह भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट हैं. मेरी लव मैरिज नहीं है अरेंज मैरिज है और मेरी एक 10 महीने की बेटी है. मैं अपने पिता का अकेला बेटा हूँ लेकिन मेरी पांच बहने हैं. मेरी परदादी ने मेरे दादा को कहा था कि मेरा बेटा कभी ज़ुल्म के आगे नहीं झुकेगा और वह कभी जुल्म के आगे नहीं झुके. 


यही वजह है कि हम गरीबों के कामो को कराने के लिए राजनीति करते हैं. मेरे दादा के बाद मेरे पिता मेरी सरपरस्ती करते हैं लेकिन दादा की कमी मुझे महसूस होती है और उन्ही की वजह से आज मैं सांसद बना हूँ. सब दुआएं मेरे साथ है मेरे लोकसभा क्षेत्र की जनता का प्यार मेरे साथ है. जैसे मेरे दादा ने राजनीति की है मैं भी उन्ही के नक्शे कदम पर चलकर राजनीति करूंगा. मुझे बहुत कम उम्र में देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचने का मौका मिला है. मैं अपने क्षेत्र की जनता को अपने दादा की कमी महसूस नहीं होने दूँगा.


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