लखनऊ: जबरन धर्म परिवर्तन पर लगाम लगाने के लिए धर्मातरण विरोधी कानून लाने के बाद, योगी आदित्यनाथ सरकार अब लगभग 44 वर्षो से अंतरधार्मिक विवाह करने पर मिलने वाले प्रोत्साहन को खत्म करने की योजना बना रही है. अंतर-जाति और अंतरधार्मिक विवाह प्रोत्साहन योजना 1976 से चली आ रही है और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय एकीकरण विभाग द्वारा शुरू की गई थी.
इस योजना के तहत, एक अंतरधार्मिक दंपति शादी के दो साल के भीतर जिला मजिस्ट्रेट के पास आवेदन कर सकता है. सत्यापन के बाद, जिला मजिस्ट्रेट आगे उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय एकीकरण विभाग को आवेदन भेजता है.
एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा, "यूपी में, 11 अंतरधार्मिक जोड़े पिछले साल योजना के लाभार्थी थे और प्रत्येक को 50,000 रुपये मिले थे.इस साल, कोई राशि जारी नहीं की गई है. जो चार आवेदन दाखिल किए गए थे, वे लंबित हैं.प्रवक्ता ने कहा कि इस योजना पर पुनर्विचार उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश को ध्यान में रखते हुए विचार किया जाएगा."
शनिवार को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए. विवाह के माध्यम या अन्य तरीके से जबरन धर्मातरण पर सजा सुनिश्चित करता है.
2017 में, राज्य सरकार ने इस योजना के लिए एक चेतावनी जोड़ी थी - अंतरधार्मिक दंपति विवाह करने के बाद धर्म परिवर्तन नहीं कर सकते थे, अन्यथा वे प्रोत्साहन खो देंगे.
उत्तराखंड, जिसने उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद योजना को अपनाया गया था, यह राज्य भी इसको वापस लेने की योजना बना रहा है.
उत्तर प्रदेश के मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कहा, "यह योजना अभी के लिए मौजूद है. मैं इसके जारी रहने को लेकर टिप्पणी नहीं कर सकता. अध्यादेश का मतलब जबरन धर्मांतरण को रोकना है और अपने पार्टनर को धोखा देने के लिए अपनी पहचान छिपाने वालों को दंडित करना है."
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