Uttarakhand Weather News: उत्तराखंड में वाडिया इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर डॉक्टर कालाचांद साईं ने बताया है कि उत्तराखंड में बढ़ता तापमान दुनिया में हो रही ग्लोबल वार्मिंग से अलग है. एक कारण इसका ग्लोबल वार्मिंग हो सकता है, लेकिन उत्तराखंड में जिस तरह से पिछले दिनों जंगलों में आग लगी थी यह भी एक बड़ा कारण है. वहीं धीरे-धीरे उत्तराखंड में पेड़ों की संख्या कम होती जा रही है, जो की काफी बड़ी चिंता का विषय है.


कालाचांद साईं ने बताया कि अर्बन डेवलपमेंट जिस तरह से उत्तराखंड में बढ़ा है, उससे भी उत्तराखंड के तापमान पर फर्क पड़ा है. वहीं उत्तराखंड में ग्लेशियरों की पिघलने की क्षमता भी बढ़ गई है. उत्तराखंड में ग्लेशियर हर साल 15 से 20 मीटर तक पिघल रहे हैं, जोकि एक बड़े खतरे का संकेत है. आने वाले समय में उत्तराखंड में पीने का पानी और अन्य चीजें समाप्त होती जाएगी, जो कि मानव जाति के लिए बेहद चिंता का विषय है. इसको लेकर हमें अभी से चिंता शुरू कर देनी चाहिए.


उत्तराखंड में ग्लेशियर हर साल पिघल रहे हैं?


उत्तराखंड के गंगोत्री में स्थित तमाम ग्लेशियर धीरे-धीरे पिघल रहे हैं. वाडिया इंस्टीट्यूट के साइंटिस्ट और डायरेक्टर डॉक्टर कालाचांद ने एबीपी लाइव से बात करते हुए एक बड़ी जानकारी दी है. डॉक्टर चांद का कहना है कि उत्तराखंड के गंगोत्री में स्थित ग्लेशियर हर साल 15 से 20 मीटर तक पिघल रहे हैं, जोकि एक खतरे का संकेत है. इसका कारण ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ अर्बन डेवलपमेंट और धीरे-धीरे उत्तराखंड से जंगलों का खात्मा होना साथ ही हर साल उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली आग एक बड़ा कारण है.


उत्तराखंड में पिघलते ग्लेशियर आने वाले समय में एक बड़ा खतरा बन सकते हैं क्योंकि उत्तराखंड में बहने वाली तमाम नदियों का पानी धीरे-धीरे सूखने लगेगी साथ ही कई और चीजें भी हैं उत्तराखंड में जो इन ग्लेशियरों पर निर्भर है, वह भी खात्मे की ओर है. ऐसे में इस विषय पर गहनता से सोच विचार करने की जरूरत है वरना आने वाले वक्त में मानव जाति को दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं.


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