'पनीर विलेज' के नाम से मशहूर हो गया है उत्तराखंड का ये गांव, जानिए क्यों पड़ा ये नाम
उत्तराखंड का एक गांव 'पनीर विलेज' के नाम से मशहूर हो गया है. जानिए ऐसा क्यों हुआ है.
देहरादून। उत्तराखंड के गांवों के आपने अलग-अलग रंग तो पहले देखे होंगे लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे पनीर विलेज कहा जाता है. यहां के पनीर की डिमांड टिहरी, उत्तरकाशी ही नहीं मसूरी, देहरादून से लेकर दिल्ली तक भी है.
दरअसल, टिहरी जिले के जौनपुर ब्लॉक के रौतू की बेली गांव का पनीर ही यहां की पहचान बन चुका है. इसे पनीर विलेज के नाम से जाना जाता है .करीब 250 परिवार वाले रौतू की बेली गांव में 75 फीसदी से अधिक लोग खेतीबाड़ी करते हैं और गाय भैंस पालते हैं. नगदी फसलों के उत्पादन के साथ ही ये लोग घरों में पनीर बनाते हैं. जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है.
हर परिवार को 8-10 हजार की आमदनी ग्रामीण प्रतिदिन 50 से 70 किलो तक पनीर का उत्पादन करते हैं. जो दोपहर होने से पहले ही बिक जाता है. वहीं पनीर की गुणवत्ता इतनी बढ़िया है कि जो एक बार यहां से पनीर ले जाता है. वो हमेशा और अधिक मात्रा में पनीर की डिमांड करता है. जिससे हर परिवार को एक माह में 8 से 10 हजार की आमदनी होती है.
इसीलिए है ज्यादा डिमांड रौतू की बेली गांव देहरादून-मसूरी-उत्तरकाशी- टिहरी को जोड़ने वाले थत्यूड़- भवान सड़क के किनारे बसा है. ग्रामीण शाम को पारम्परिक तरीके से पनीर बनाते हैं. सुबह सड़क किनारे दुकानों में ही पनीर बेचते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि शुद्धता और गुणवत्ता के कारण ही उनके यहां पनीर की डिमांड लगातार बढ़ रही है. यदि सरकार मदद करे तो वो इस रोजगार को और बढ़ा सकते हैं. उन्हें पनीर बेचने के लिए बाजार मिलेगा तो और लोगों को भी रोजगार मिलेगा.
रौतू की बेली गांव के ग्रामीणों की मेहनत आज अन्य ग्रामीणों के लिए भी एक बेहतरीन उदाहरण है. जिससे गांव में ही स्वरोजगार को बढ़ावा देकर पलायन को रोका जा सकता है. वहीं कोविड के चलते बेरोजगार हुए लोगों को भी इससे रोजगार मिल सकता है.
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