श्रीहरीकोटा: भविष्य के सभी भारतीय रॉकेटों को स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित किए गए विक्रम प्रोसेसर से लैस किया जाएगा, जिसने बुधवार को अपने अभियान को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए रॉकेट पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-सी 47 (पीएसएलवी-सी-47) को निर्देशित किया.
भारत के पीएसएलवी-सी-47 रॉकेट ने बुधवार सुबह अमेरिका से देश के उन्नत पृथ्वी अवलोकन उपग्रह कार्टोसैट-3 और 13 नैनो उपग्रहों को सफलतापूर्वक कक्षा में रखा.
रॉकेट को पहली बार विक्रम प्रोसेसर के साथ फिट किया गया था, जिसे चंडीगढ़ स्थित सेमी-कंडक्टर प्रयोगशाला द्वारा अंतरिक्ष विभाग के तहत डिजाइन, विकसित और निर्मित किया गया था.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "भविष्य के सभी भारतीय रॉकेट स्वदेशी रूप से विकसित विक्रम प्रोसेसर द्वारा निर्देशित उड़ान भरेंगे.''
भारत में रॉकेट के दो परिवार हैं. पीएसएलवी और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी). इसरो 500 कि. ग्रा. के उपग्रह ले जाने की क्षमता वाला एक छोटा सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएसएलवी) भी विकसित कर रहा है.
विक्रम प्रोसेसर का उपयोग रॉकेट के नेविगेशन, मार्गदर्शन और नियंत्रण व सामान्य प्रसंस्करण अनुप्रयोगों के लिए भी किया जाता है.
कार्टोसैट-3 मिशन के निदेशक बी. आर. बीजू के अनुसार, पहली बार स्वदेशी रूप से डिजाइन किए गए विक्रम प्रोसेसर को पीएसएलवी-सी-47 रॉकेट में इस्तेमाल किया गया और इसका प्रदर्शन शानदार रहा.
बता दें कि इसरो ने बुधवार सुबह ठीक 9.28 मिनट पर पीएसएलवी-सी47 से कार्टोसैट-3 सहित 13 दूसरे नैनो सैटेलाइट को श्रीहरिकोटा से लांच किया. ये नैनो-सैटेलाइट अमेरिका के लिए कॉमर्शियल उपयोग के लिए छोड़े गए हैं. लेकिन कार्टोसैट पूरी तरह से सुरक्षा के इस्तेमाल के लिए है. हालांकि, इसका उपयोग मौसम और प्राकृतिक-आपदा के समय में भी किया जा सकता है.
थर्ड जेनरेशन सैटेलाइट माने जाने वाला कार्टेसैट-थ्री में इस तरह के कैमरे लगे हैं कि पृथ्वी से करीब 500 किलोमीटर (509 किलोमीटर) दूर पोलर-ऑर्बिट से भी हाथ की कलाई पर बंधी घड़ी की सुईयों को देख कर उनकी तस्वीरें कमांड सेंटर में भेज सकता है. जानकारी के मुताबिक, इसमें थर्मल इमेजिंग कैमरा भी लगे हैं ताकि रात के अंधेरे में भी ये तस्वीरें ले सकता है. इसरो से मिली जानकारी के मुताबिक, कार्टोसैट-थ्री का रिज़ॉल्यूशन मात्र 25 सेंटीमेटर है जबकि कार्टेसैट-टू का रिज़ॉल्यूशन करीब एक मीटर था.
माना जा रहा है कि देश की सेनाओं को जब भी किसी सर्जिकल स्ट्राइक या फिर बालाकोट जैसी एयर-अटैक की जरूरत होगी तो कार्टोसैट-3 का इस्तेमाल किया जायेगा.
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