Delhi High Court: स्मार्टफोन, लैपटॉप समेत किसी भी डिवाइस का पासवर्ड बहुत जरूरी चीज होता है, क्योंकि पासवर्ड आपकी प्राइवेसी को सुरक्षित रखता है, और प्राइवेसी किसी भी इंसान के स्वतंत्र जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण चीज है. इसी पासवर्ड के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बड़ी बात कही है.


आईएएनएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी भी आपराधिक मामले में किसी भी आरोपी को जांच एजेंसी उनके गैजेट या किसी डिजिटल डिवाइस के पासवर्ड का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती. दरअसल, यह फैसला तब सुनाया गया है जब कोर्ट ने भारत में कॉल सेंटर चलाने वाले एक इंसान और अमेरिकी नागरिकों से करीब 20 मिलियन डॉलर की धोखाधड़ी करने वाले एक आरोपी को जमानत दे दी. 


दिल्ली हाई कोर्ट के जज ने क्या कहा?


दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी ने कहा कि आरोपी व्यक्तियों से जांच के दौरान सहयोग की उम्मीद की जाती है, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत सुरक्षा का हवाला देते हुए उन्हें आत्म-दोषारोपण सबूत प्रदान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. अनुच्छेद 20(3) में कहा गया है कि किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा.
 
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी के पास चल रही जांच के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण जानकारी और पासवर्ड हैं. हालांकि, कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 20(3) के तहत सुरक्षा आरोपियों के पास सुरक्षा का अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि आरोपी पर चल रहे मुकदमे के दौरान उन्हें उनके डिवाइस का पासवर्ड बताने के लिए मजबूर करना स्वीकार्य नहीं है.


आरोपियों पर क्या आरोप लगे हैं?


आपको बता दें कि इन आरोपियों पर भारत से फर्ज़ी फोन कॉल संचालित करने, सरकारी अधिकारियों का रूप धारण करके अमेरिकी नागरिकों को धोखा देने, और उनसे अलग-अलग तरीकों से पैसे ठगने के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है.


कोर्ट ने इन आरोपियों को जमानत देते हुए तर्क दिया कि, आरोपी को हिरासत में रखने से कोई सही उद्देश्य पूरा नहीं होगा, खासतौर पर तब जब व्यक्ति से इस मामले के संबंधित जांच पूरी हो चुकी हो और चार्ज शीट फाइल की जा चुकी हो.


ध्यान दें, कि इस आर्टिकल में बताई गई सभी जानकारी आईएएनएस के हवाले से दी गई है. हम इसमें बताए गए किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करते हैं.


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