नई दिल्ली: नीम हकीम खतराए जान वाली कहावत तो सुनी ही होगी. कुछ-कुछ ऐसा ही कोरोना के साथ हो रहा है. कोरोना से बचाने के लिए सोशल मीडिया पर जानकारी के नाम पर वीडियो बनाए जा रहे हैं लेकिन सवाल ये है कि क्या वो सही हैं? एक पड़ताल में सामने आया कि एक चौथाई वीडियो में जो सही बताया जाता है दरअसल वो गलत होता है.
एक अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन जर्नल बेवसाइट BMJ Global Health की रिसर्च में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. 21 मार्च को ये रिसर्च शुरू हुई जिसके नतीजे अब आए हैं. BMJ ने 'यू-ट्यूब' पर कोरोना सर्च किया और टॉप 75 वीडियो की पड़ताल की. इसी तरह कोविड-19 सर्च किया और उस पर बने टॉप 75 वीडिय़ो की पड़ताल की.
यानी रिसर्च में 150 वीडियो आए. डुप्लीकेट वीडियो हटाकर और कुछ शर्तें लगाकर 69 वीडियो को रिसर्च के लिए चुना गया. 27 फीसदी वीडियो में तथ्यात्मक गलतियां थीं. वीडियो को समझाया भी ठीक से नहीं गया और ना ही बीमारी से जुड़ी कोई अपील की गई.
इन 69 वीडियो में सरकारों की तरफ से जारी वीडियो भी थे जिनमें जानकारी सही पाई गई. वहीं यू-ट्यूब ने सफाई देते हुए कहा कि सही सूचना देने की पूरी कोशिश की जाती है और गलत सूचना देने वाले वीडियो को हटा दिया जाता है. मायने ये कि अगर सोशल मीडिया से कोई जानकारी ले रहे हों तो सोच समझ कर लें कहीं ये जानकारी जान पर भारी ना पड़ जाए.
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