नई दिल्ली: चीन मोबाइल लिमेटेड (CHL) अमेरिका और दूसरे देशों में अपने स्मार्टफोन को भेजना चाहता था. चीन ने इसके लिए 2011 में अमेरिकी रेगुलेटर्स के सामने लाइसेंस के लिए एक ऐप्लिकेशन भी जमा करवाया था. सोमवार को अमेरिकी कॉमर्स डिपार्टमेंट के ब्रॉन्च नेशनल टेलीकम्यूनिकेशन और इंफॉर्मेशन एडमिनिशट्रेशन ने रिकमेंड किया कि फेड्रल कम्यूनिकेशन कमिशन ने चीन के इस ऐप्लिकेशन को खारिज कर दिया है.


बता दें कि दोनों देशों के बीच इस विवाद के बाद वाशिंगटन और बीजिंग के बीच होने वाले ट्रेड और टेक्नॉलजी पर असर पड़ सकता है. चीनी फोन के ऊपर पूरा कंट्रोल चीन के सरकार का है जिससे अमेरिका के एग्जीक्यूटिव ब्रांच को लगता है कि चीनी मोबाइल ऐप्लिकेशन्स उनके देश की खूफिया जानकारी पर सेंध मार सकती है.


अमेरिका को है चीन से खतरा


अमेरिका ने ये भी माना कि अगर वो चीन के मोबाइल को अमेरिका के बाजार में आने के लिए लाइसेंस दे देते हैं तो उससे चीनी स्पाइंग का खतरा बढ़ सकता है. अमेरिकी खूफिया एजेंसी का मानना है कि इससे अमेरिकी सरकार के फोन कॉल्स चीनी मोबाइल नेटवर्क के जरिए पास हो सकते हैं जो देश के लिए बहुत बड़ा खतरा है. चीनी मोबाइल के कुल 62 अरब मोबाइल कस्टमर्स हैं. चीनी कंपनी से जब इस मामले पर पूछताछ की गई तो अधिकारियों ने इसपर जवाब देने से मना कर दिया. कंपनी का मानना है कि वो डायरेक्ट अमेरिकी यूजर्स को अपनी सर्विस नहीं देने वाले थे. जबकि अमेरिकी एजेंसी का यही मानना है.


बता दें कि अमेरिका के इस कदम के बाद कंपनी की आमदनी पर भारी असर पड़ सकता है.


दोनों देशों के बीच बढ़ सकता है विवाद


ट्रंप सरकार के इस कदम के बाद दोनों देशों के बीच ट्रेड पर असर पड़ सकता है तो वहीं चीन और अमेरिका के बीच सेक्योरिटी टेंशन भी बढ़ सकता है. ट्रंप सरकार के कहना है कि चीन अपने इस कदम से ग्लोबल टेक लीडर बनना चाहता है जिसको लेकर उसने चीन पर ये आरोप लगाएं हैं कि दूसरों की प्रापर्टी पर कब्जा कर चीन आगे निकलना चाहता है. हालांकि बीजिंग ने इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज किया है.