नई दिल्लीः फेसबुक यूजर्स का डेटा अबतक के सबसे बड़े लीक का शिकार हुआ है. पॉलिटिकल कंसल्टेंसी फर्म कैंब्रिज एनालिटिका ने करीब 5 करोड़ फेसबुक यूजर्स का डेटा एक थर्ड पार्टी एप के जरिए एक्सेस किया और इसकी मदद से डॉनल्ड ट्रंप को 2016 में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में फायदा पहुंचाया साथ ही ब्रेक्जिट जनमत संग्रह को भी प्रभावित किया गया. इस खुलासे के बाद से ही ये सवाल हर किसी के मन में उठ रहा है कि आखिर कैसे यूजर के डेटा का इस्तेमाल करके पार्टियों को राजनीतिक लाभ पहुंचाया जाता है.



                                                                           कैसे आपका डेटा नेताओं को राजनीतिक लाभ पहुंचाता है?


कैंब्रिज एनेलिटिका के पूर्व कर्मचारी क्रिस्टोफर वायली ने इस गुत्थी को सुलझाया है. पेशे से डेटा साइंटिस्ट वायली ने बाताया कि आम आदमी को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं होता कि सोशल मीडिया के जरिए किस तरह एक पूरा गैंग उनकी सोच को बदलने का काम शुरू कर देता है.



आपके डेटा से पढ़ते हैं आपका  दिमाग


क्रिस्टोफर वायली ने बताया, ''राजनीति को बदलने के लिए सबसे पहले लोगों के सोचने-समझने का तरीका बदलना पड़ता है. राजनीति लोगों के सोचने समझने पर ही चलती है, तो अगर आप सोच को बदलना चाहते हैं तो आपको इसमें शामिल यूनिट्स को समझना होगा. ये यूनिट्स वहां के लोग हैं जहां कि राजनीति बदलने की तैयारी की जाती है. राजनीति बदलने से पहले सोच बदलना पड़ता है.''


लोगों की सोच बदलने के लिए फेसबुक या ऐसी ही दूसरी सोशल मीडिया साइट्स पर मौजूद करोड़ों लोगों के डेटा का इस्तेमाल किया जाता है. बेहद चालाकी से लोगों को बताए बिना डेटा चुराया जाता है. वायली ने बताया कि कैंब्रिज एनेलिटिका ने इसके लिए एक एप का सहारा लिया जिसे फेसबुक पर डाला गया. जैसे ही कोई इस एप का इस्तेमाल करता वैसे ही उसके नेटवर्क में मौजूद हर एक आदमी की एक-एक जानकारी कैंब्रिज एनेलिटिका के पास पहुंच जाती.



ये एप यूजर्स की फ्रेंड लिस्ट में शामिल सभी लोगों के नेटवर्क से डेटा उठा लेता था. वायली ने बताया कि अगर एक शख्स ने इस एप का इस्तेमाल किया तो मैं ना सिर्फ आपका फेसबुक प्रोफाइल देख सकता हूं बल्कि मैं उन सभी लोगों के दोस्त और उनके दोस्तों के प्रोफाइल भी देख सकता हूं.


इस एप के जरिए कैंब्रिज एनेलिटिका ने अमेरिका और यूरोप के 5 करोड़ लोगों के फेसबुक प्रोफाइल चुराए. एप का इस्तेमाल तीन लाख लोगों ने किया जिससे उनके नेटवर्क में शामिल हर एक शख्स का डेटा कंपनी के पास पहुंचा गया.


आपके डेटा से ही आपके ब्रेनवॉश का खेल शुरु होता है
5 करोड़ फेसबुक यूजर्स का हर एक स्टेटस, शेयर की गयी पोस्ट यहां तक की प्राइवेट चैट की सारी जानकारी कंपनी को मिली. इसका मतलब ये हुआ कि फेसुबक पर आप क्या लिख रहे हैं, क्या शेयर कर रहे हैं, प्राइवेट चैट में आप किस तरह की बातें कर रहे हैं, आपकी सोच किस तरह की है, इसकी पूरी जानकारी कंपनी के पास होती है.



फिर एक जैसी सोच वाले लाखों लोगों के अलग-अलग ग्रुप बनाए जाते हैं. फिर शुरू होता है आपकी सोच को बदलने का काम, यानी ब्रेनवॉश. इसके लिए सोशल मीडिया पर आपके आस-पास एक मायाजाल बुनने का काम शुरू हो जाता है.


कैंब्रिज एनेलिटिका जैसी फर्म के पास क्रिएटिव डिजाइनर्स, वीडियोग्राफर्स, फोटोग्राफर्स की पूरी टीम होती है. फिर वो उन लोगों के मुताबिक कंटेंट बनाते हैं. इसे टारगेटिंग टीम के पास भेजा जाता है जो इन्हें इंटरनेट पर डालती हैं. वेबसाइट बनायी जाती हैं या ब्लॉग्स बनाए जाते हैं. कुछ भी ऐसा कंटेंट जो इस टारगेट प्रोफाइल को स्वीकार होगा ये फर्म उनके लिए इंटरनेट पर कंटेंट बनाते हैं जो उन्हें मिल जाती है. टारगेट यूजर्स इसे देखते हैं, उस पर क्लिक करते हैं और फिर इसका सिलसिला शुरू हो जाता है. ये तब तक चलता है जब तक की उनकी सोच नहीं बदल जाती.


यानी सोशल मीडिया पर मौजूद जानकारी लेकर लाखों-करोड़ों वोटरों की सोच को एक खास एजेंडे के तहत बदल दिया जाता है. वायली के मुताबिक वोट बैंक बढ़ाने की सनक राजनीतिक पार्टियों पर इतनी ज्यादा होती है कि इस बात से भी परहेज नहीं करते कि वो समाज को बांट रहे हैं.


भारत के लिए भी ये बड़ा खतरा है
समाज के जिस बंटवारे के खतरे की बात वायली ने की है वो आप और हम भारत में भी साफ महसूस कर सकते हैं. इन सबके लिए सोशल मीडिया बड़े पैमाने पर जिम्मेदार है, क्योंकि चुनावी जंग को जीतने के लिए इन्हें हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. भले ही फेसबुक से चोरी हुए पांच करोड़ लोगों के डेटा का संबंध भारत से ना हो लेकिन ये हमारे देश के लिए भी बड़ी चिंता की बात है. इस वक्त भारत में करीब 25 करोड़ लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं. व्हाट्सएप एप का करीब 20 करोड़ लोग इस्तेमाल करते हैं और इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या करीब 48 करोड़ है.


सोशल मीडिया एक्सपर्ट जैनसी जैकब के मुताबिक तीन-चार साल का डेटा अगर किसी फर्म के पास आता है और उसे पता चलता है कि आप किस तरह के राजनीतिक विचार फेसबुक पर डालते हैं. आप कांग्रेस के समर्थक हैं तो किस तरह की सूचना देने पर आप बीजेपी को सपोर्ट करेंगे. ठीक इसके उलट अगर आप बीजेपी के समर्थक हैं तो किस तरह की सूचना दिखायी जाए और किस तरह के पेज आपको दिखाए जाएं ताकि कांग्रेस के सपोर्ट में आ जाएं. ये कोई भी राजनीतिक पार्टी इसका इस्तेमाल कर सकती हैं.


हालांकि अभी तक भारत में ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि खतरा बड़ा नहीं है. संभव ये भी है लोगों की सोच बदली गयी हो लेकिन ये सच्चाई अभी तक सामने नहीं आयी हो.