तमिलनाडु सरकार ने उच्चतम न्यायालय से बृहस्पतिवार को कहा कि फेसबुक इंक और अन्य सोशल मीडिया कंपनियां भारतीय कानूनों का पालन नहीं कर रही हैं. जिस वजह से अपराधों की जांच-पड़ताल में कठिनाई हो रही हैं.


सरकार ने हाई कोर्ट में 20 अगस्त के आदेश में बदलाव का आग्रह किया जिसमें मद्रास हाई कोर्ट को सोशल मीडिया प्रोफाइलों को बायोमीट्रिक आइडेंटिटी कार्ड को आधार से जोड़ने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखने का निर्देश दिया गया था, लेकिन उसे कोई प्रभावी आदेश पारित करने से रोक दिया गया था.


सरकार ने कहा कि हाई कोर्ट काफी आगे बढ़ गया है, लेकिन शीर्ष अदालत के 20 अगस्त के आदेश के चलते उसने उन याचिकाओं पर सुनवाई टाल दी थी.


तमिलनाडु सरकार ने अपने जवाब में कहा, ‘‘मौजूदा मामले को तेज गति से न निपटाए जाने से याचिकाकर्ता (फेसबुक इंक) जैसी विदेशी कंपनियां भारतीय कानून का पालन किए बिना भारत में संचालन जारी रखेंगी, जिसका प्रभाव बढ़ती नियम विरुद्ध गतिविधियों, अपराधों को रोकने और उनकी जांच पड़ताल में मुश्किल तथा कानून व्यवस्था की स्थिति चरमरा जाने के रूप में निकल रहा है.’’


विभिन्न आपराधिक मामलों का जिक्र करते हुए राज्य सरकार ने कहा कि स्थानीय कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने कई अवसरों पर अपराधों की जांच-पड़ताल के लिए इन कंपनियों से सूचना मांगने का प्रयास किया है.


इसने कहा, ‘‘इन कंपनियों ने उत्तर देने या वास्तविक तरीके से सूचना उपलब्ध कराने की जगह अधिकारियों से आग्रह पत्र इत्यादि भेजने को कहा है, जबकि ये भारत की धरती से संचालित हो रही हैं. ये सभी मामलों में पूर्ण सूचना उपलब्ध कराने में विफल रही हैं.’’


सरकार ने कहा कि मद्रास, बंबई और मध्य प्रदेश हाई कोर्टों से मामलों को इस अदालत में स्थानांतरित करने की फेसबुक इंक की याचिका ‘‘झूठे और भ्रामक कथनों’’ से परिपूर्ण है और यह परोक्ष उद्देश्यों से इस अदालत को गुमराह करने का प्रयास है.


मामला न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता के नेतृत्व वाली पीठ के समक्ष शुक्रवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है.


शीर्ष अदालत ने विभिन्न हाई कोर्टों में लंबित सोशल मीडिया अकाउंटों को आधार से जोड़ने के मामलों को स्थानांतरित करने की मांग करने वाली फेसबुक इंक की याचिका पर गत 20 अगस्त को केंद्र, गूगल, व्हाट्सअप, ट्विटर, यू ट्यूब और अन्य सोशल मीडिया मंचों से जवाब मांगा था.


उच्चतम न्यायालय फेसबुक की याचिका पर सुनवाई को सहमत हो गया था और केंद्र तथा सोशल मीडिया मंचों से 13 सितंबर तक जवाब मांगा था.


फेसबुक ने कहा था कि मामले में विभिन्न हाई कोर्टों ने परस्पर विरोधी मत व्यक्त किए हैं, इसलिए एकरूपता के लिए बेहतर होगा कि उच्चतम न्यायालय इन मामलों पर सुनवाई करे.