नई दिल्लीः राजस्थान के सूजात कस्बे के तेजाराम संखला कोई आम मजदूर नहीं हैं. तेजाराम संखला का 26 साल का बेटा रामचंद्र इंटरनेट की दिग्गज कंपनी गूगल में एक्जिक्युटिव के पद पर कार्यरत हैं. रामचंद्र अमेरिका में रहते हैं.
50 साल के तेजाराम ट्रकों से हीना (मेहेंदी) के बस्ते लादते हैं. यह जगह अपनी मेंहदी के लिए दुनिया भर में जानी जाती है. इस मजदूरी से एक अच्छे दिन में उनकी 400 रुपये तक आमदनी हो जाती है.
तेजाराम को अपना जीवन चलाने के लिए मजदूरी करने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि उनके बेटे की आमदनी काफी अच्छी है. वो गूगल में 2013 से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और इस साल अप्रैल से वह अमेरिका में रह रहे हैं.
हिन्दुस्तान टाइम्स को दिए गए इंटव्यू में रामचंद्र ने बताया कि वह नहीं चाहते कि उनके पिता अब काम करें लेकिन उनके पिता को घर पर खाली महसूस होता है.
अपने बारे में बताते हुए रामचंद्र ने कहा कि ''उन्होंने सूजात के एक हिंदी मीडियम से 12वीं तक की पढ़ाई की है. एजुकेशन लोन के जरिए उन्होंने साल 2009 में आईआईटी रुड़की में दाखिला लिया. पहले और दूसरे समेस्टर के लिए उनके पिता को कर्ज लेना पड़ा इसके बाद दूसरे साल से रामचंद्र को बैंक से एजुकेशन लोन मिल गया. '' रामचंद्र आगे बताते हैं कि उनके लैपटॉप के लिए उनके समुदाय के लोगों ने 30000 रुपये मदद के तौर पर दिए.
राम स्टूडेंट्स की मदद करना चाहते हैं. उन्होंने 2015 में एक अनाथाश्रम में बच्चों को पढ़ाया है और अपनी स्कॉलरशिप से अपने भाई-बहन को पढ़ाया. हालांकि राम की तरह उनके भाई बहन इतने सफल नहीं हो सके. उनका भाई 10वीं तक ही पढ़ सका और अभी पुणे स्थित एक जूते की दुकान में काम करता है वहीं राम की बहन B.Sc फेल होने के बाद घर पर ही रहती है.
50 साल के तेजाराम ट्रकों से हीना (मेंहेंदी) के बस्ते लादते हैं. यह जगह अपनी मेंहदी के लिए दुनिया भर में जानी जाती है. इस मजदूरी से एक अच्छे दिन में उनकी 400 रुपये तक आमदनी हो जाती है.
तेजाराम को अपना जीवन चलाने के लिए मजदूरी करने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि उनके बेटे की आमदनी काफी अच्छी है. वो गूगल में 2013 से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और इस साल अप्रैल से वह अमेरिका में रह रहे हैं.
हिन्दुस्तान टाइम्स को दिए गए इंटव्यू में रामचंद्र ने बताया कि वह नहीं चाहते कि उनके पिता अब काम करें लेकिन उनके पिता को घर पर खाली महसूस होता है.
अपने बारे में बताते हुए रामचंद्र ने कहा कि ''उन्होंने सूजात के एक हिंदी मीडियम से 12वीं तक की पढ़ाई की है. एजुकेशन लोन के जरिए उन्होंने साल 2009 में आईआईटी रुड़की में दाखिला लिया. पहले और दूसरे समेस्टर के लिए उनके पिता को कर्ज लेना पड़ा इसके बाद दूसरे साल से रामचंद्र को बैंक से एजुकेशन लोन मिल गया. रामचंद्र आगे बताते हैं कि उनके लैपटॉप के लिए उनके समुदाय के लोगों ने 30000 रुपये मदद के तौर पर दिए.''
राम स्टूडेंट्स की मदद करना चाहते हैं. उन्होंने 2015 में एक अनाथाश्रम में बच्चों को पढ़ाया है और अपनी स्कॉलरशिप से अपने भाई-बहन को पढ़ाया. हालांकि राम की तरह उनके भाई बहन इतने सफल नहीं हो सके. उनका भाई 10वीं तक ही पढ़ सका और अभी पुणे स्थित एक जूते की दुकान में काम करता है वहीं राम की बहन B.Sc फेल होने के बाद घर पर ही रहती है.