नई दिल्लीः ये साल टेक की दुनिया के लिए कई मायनो में आंखें खोलने वाला साबित हुआ है. साल की शुरुआत जहां अब तक के सबसे बड़े डेटा स्कैंडल कैम्ब्रिज एनालिटिका से हुई. तो वहीं फेसबुक के 8.7 करोड़ यूजर्स का डेटा चुरा कर अमेरिका के 2016 के राष्ट्रपति चुनाव को भी प्रभावित किया गया. इसके बाद इस बात को लेकर चर्चा शुरू हो गई कि कैसे ये यूजर्स के लिए खतरा बन सकता है? फेसबुक के डेटा लीक के बाद यूजर्स जहां अपनी जानकारियों को लेकर फिक्रमंद हैं वहीं इन सबके बीच एपल अपने यूजर्स को अब और भी ज्यादा कंट्रोल दे रही है. अपने प्रोडक्ट को बेचने के लिए एपल ने ह्यूमैनिटी और यूजर्स की वैल बीइंग के लिए नया कदम उठाया है. कैलिफोर्निया के सैन जोस में चल रहे वर्ल्ड डेवलपर कॉन्फ्रेंस WWDC 2018 में एपल ने एक टेक एडिक्शन टूल स्क्रीन टाइम का ऐलान किया है जो यूजर्स को ये बताएगा कि वे अपने फोन को कितना इस्तेमाल करते हैं और उसे कैसे कंट्रोल कर सकते हैं.


क्या है स्क्रीन टाइम फीचर?


स्क्रीन टाइम आईपैड और आईफोन के ऑपरेटिंग सिस्टम iOS 12 का फीचर है. iOS 12 के रोलआउट होने के साथ ही ये फीचर लोगों के लिए उपलब्ध होगा. 4 जून की देर रात iOS 12 का ऐलान हुआ और टिम कुक ने इस रिवॉल्यूशनरी फीचर के बारे में बताया. स्क्रीन टाइम आपको हफ्ते और रोज का एक एक्टिविटी लॉग देगा. इसमें आपके जरिए आईफोन या आईपैड पर की गई सारी एक्टिविटी का सारांश होगा. आपने अपना आईपैड या आईफोन कितनी बार यूज किया, कितनी देर तक यूज किया, किस एप पर कितना वक्त बिताया और कितनी नोटिफिकेशन यूजर को मिली ये जारी जानकारी इस लॉग में होगी.


स्क्रीन टाइम में एपल ने यूजर को इसका कंट्रोल दिया है जिसमें वो ये तय कर सकता है कि वो अपना फोन कितनी देर इस्तेमाल करे, किस एप को कितना देर इस्तेमाल करे और कितनी नोटिफिकेशन उसे मिलें. फीचर की खासियत ये है कि यहां आप डाउन टाइम सेट कर सकते हैं. यानि एक निश्चित वक्त तय कर सकते हैं. जैसे ही आप किसी एप या फोन का इस्तेमाल वक्त से ज्यादा करेंगे तो ये आपको नोटिफिकेशन देगा और इसके बाद ये एप ब्लॉक कर कर दी जाएगी.


अपना स्कीन टाइम देख हैरान रह गए टिम कुक


सीएनएन को दिए गए इंटरव्यू में एपल सीईओ टिम कुक ने कहा, ''मैंने स्क्रीन टाइम फीचर इस्तेमाल किया और जो डेटा मेरे एक्टिविटी लॉग में आया वो मुझे परेशान करने वाला था. स्क्रीन टाइम के कारण मैंने जाना कि मैं अपना फोन बहुत ज्यादा यूज करता हूं. कई बार फोन पिक करना, कई नोटिफिकेशन जो मुझे मिलती हैं वो बेहद गैरजरुरी है. मैं फोन पर इतना टाइम देता हूं जो मुझे नहीं देना चाहिए. नोटिफिकेशन हमेशा ऐसा होना चाहिए जो बेहद जरुरी है लेकिन मैंने पाया कि मुझे कई सारी नोटिफिकेशन मिलती है.''


एक कंपनी के तौर पर एपल की ये फिलॉसफी रही है कि वो नहीं चाहता की यूजर हमेशा अपना फोन इस्तेमाल करें और ज्यादातर वक्त अपने फोन के साथ ही बिताए. हम चाहते हैं कि यूजर अपने एडिक्शन को कंट्रोल करें. कितना वक्त फोन को देना चाहिए ये सब्जेक्टिव है. ये यूजर को खुद तय करना होगा, यही कंट्रोल स्क्रीन टाइम देगा ताकि यूजर खुद तय करें कि वो कितना वक्त फोन को दें और ये वो तब कर सकेंगे जब वो जान सकेंगे कि कितनी बार उन्होंने अपने फोन को उठाया और कितना इस्तेमाल किया.


ये बात एपल को बाकियों से अलग करती है


एक ऐसा वक्त जहां कंपनियां ये बताती है कि उनका फोन कितना हैंडी है, कितना इजी टू कैरी है , तो वहीं एपल ये बता रहा है कि फोन को जरुरत से ज्यादा इस्तेमाल ना करें. फोन और ऑनलाइन दुनिया को अपनी आदत ना बनाएं. ये कदम एपल को बाकी स्मार्टफोन मेकर कंपनियों से अलग करता है.


साल 2018 का सबसे बड़ा मुद्दा डेटा है. फेसबुक इन दिनों डेटा को लेकर नए विवाद में है. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक ने एपल सैमसंग सहित कुल 60 कंपनियों से यूजर्स ही नहीं बल्कि उनके दोस्तों का डेटा भी शेयर किया है. ये खबरें आम यूजर्स के लिए डेटा को लेकर डर पैदा करने वाली हैं. जिसके बाद इस वक्त में एपल यूजर्स को और भी इंपावर्ड (शक्तिशाली) बनाता है. iOS 12 और MacOS के लिए एपल blocking trackers फीचर लेकर आया है. जिसमें थर्ड पार्टी एप बिना यूजर्स की इजाजत उनका डेटा नहीं पा सकेंगे. एपल ने इन कदमों से ये सिद्ध किया है कि कंपनी यूजर्स प्राइवेसी को तकनीक के पिरामिड में सबसे ऊपर रखती है.