कैंब्रिज एनालिटिका विवाद में फंसने वाले इस सोशल मीडिया जाएंट से जब 10-year challenge के बारे में पूछा गया तो फेसबुक ने कहा कि, ' इसमें उसका कोई योगदान नहीं है और लोगों ने इसे खुद ही बनाकर वायरल किया है है जो अब धीरे धीरे पूरी तरह से फैलता जा रहा है. लेकिन अगर फैक्ट्स पर बात की जाए तो क्या सच में फेसबुक को इस डेटा की जरूरत है. अगर हां तो क्यों?
30 अप्रैल 2009 को फेसबुक ने कहा था कि उसके पास 15 बिलियन फोटो है जिसे यूजर्स के जरिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया गया है. लेकिन इसके बाद हर हफ्ते 220 मिलियन फोटो को और जोड़ा गया. यानी की साल 2009 में ये आंकड़ा कुल 15 बिलियन का हो गया. हालांकि अब हम साल 2019 में हैं और हमें ये नहीं पता कि अभी तक इस प्लेटफॉर्म पर कितने सारे फोटो को अपलोड किया जा चुका है. लेकिन एक बात तो तय है कि अब एआई (AI) आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस काफी स्मार्ट हो चुका है. बता दें कि अब हर कंपनी फेशियल रिकॉग्निशन का इस्तेमाल कर रही है. एपल का फोटो एप भी फेशियल रिकॉग्निशन करता है. वहीं एंड्रॉयड फोन पर भी गूगल फोटो एप कॉंटैक्ट और लोगों के फोटो को मैच करवाता है. इससे एक बात तो तय है कि फेसबुक अपने फेशियल डेटा रिकॉग्निशन को और मजबूत बनाने के लिए लोगों के फोटो का इस्तेमाल कर रहा है.
लेकिन आखिर इस डेटा की जरूरत क्यों?
आसान सा जवाब है कि फेसबुक को इस डेटा की जरूरत अपने फेशियल रिकॉग्निशन एलगोरिदम को मजबूत करने के लिए चाहिए. जिसमें व्यक्ति का फेशियल स्ट्रक्चर, तव्चा, रंग और दूसरी चीजें शामिल है. इससे एक बात तो तय है कि अगर आपको किसी बेहतर डेटा की जरूरत है तो आपको इस बात का पता लगाना होगा कि कौन से साल में इस फोटो को खींचा गया था तो वहीं उस समय आप कैसे दिखते थे.
बता दें कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिदम को मजबूत बनाने के लिए हमें कई सारे फोटो की जरूरत होती है जहां सैंपल साइज जितना बड़ा हो उतना बेहतर होता है. अगर हम गूगल से इस मामले में पूछें तो आपको पता चलेगा कि गूगल फोटो एल्गोरिदम को और मजबूत बनाने के लिए कितनी मेहनत की जरूरत होती है. अगर आप आईफोन का इस्तेमाल करते हैं तो आपको पता होगा कि फोटो एप में लोग और जगह सेक्शन हमेशा हमेशा आपसे और फोटो को जोड़ने के लिए कहता है जिससे उस व्यक्ति की पूरी तरह से पहचान की जा सके.
केट ओ नील का चौंकाने वाला खुलासा
टेक्नॉलजी ऑथर केट ओ-नील ने इस वायरल चैलेंज पर सवालिया निशान लगाए हैं और एक नई बहस को जन्म दिया है. उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखते हुए शक जाहिर किया कि यह चैलेंज फेसबुक के उस एआई मैकेनिज्म के लिए लर्निंग का तरीका है जो चेहरों को पहचानता है. इसके बाद सवाल उठे कि कहीं यह चैलेंज फेशियल डेटा कलेक्शन का तरीका तो नहीं.
केट ने सबसे पहले 13 जनवरी को ट्वीट कर लिखा, ‘‘10 साल पहले फेसबुक और इंस्टाग्राम पर चल रहे इस एजिंग मीम के साथ मैं शायद खेलती, लेकिन अब मैं सोच रही हूं कि फेशियल रिकग्निशन एल्गोरिदम को इंप्रूव करने के लिए एज प्रोग्रेसन और एज रिकग्निशन के डेटा का कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है?" wired.com में लिखे आर्टिकल में केट ने कहा कि इस ट्वीट के जरिए उनका इरादा इस मीम (चैलेंज) को खतरनाक बताने का नहीं था, पर फेशियल रिकग्निशन के बारे में जानने के बाद लोगों को इस बारे में पता होना भी जरूरी है.’’
केट ने लिखा, "फेसबुक के #10YearChallenge में लोग अपनी फोटो के साथ साल भी लिख रहे हैं, जैसे 'मी इन 2008 और मी इन 2018.' इसके अलावा कुछ यूजर्स अपनी फोटो की लोकेशन भी बता रहे हैं, जिससे एक चैलेंज के जरिए ही एक बड़ा डेटा तैयार हो गया है कि लोग 10 साल पहले और अब कैसे दिखते हैं.’’ उन्होंने बताया कि इस डेटा का इस्तेमाल फेशियल रिकग्निशन एल्गोरिदम को ट्रेन्ड करने में किया जाता है.
इस चैलेंज से एक बात तो तय है कि ये एक तरह से आपकी पहचान चोरी करने का माध्यम बन सकता है.