नई दिल्लीः मोबाइल वॉलेट में जमा रकम के साथ अगर धोखाधड़ी हो जाती है तो परेशान होने का जरुरत नहीं है. जल्द ही इसकी भरपाई बीमा सुरक्षा के जरिए संभव हो सकेगी. मोबाइल वॉलेट में ग्राहकों के हितों और सुरक्षा के लिए सूचना तकनीक मंत्रालय नियमों का मसौदा जारी करने की तैयारी में है. आम राय जुटाने के बाद इसे अंतिम रुप दिया जाएगा.
पेटीएम और मोबीक्विक जैसे मोबाइल वॉलेट की शुरुआत नोटबंदी के काफी पहले हो चुकी थी लेकिन 8 नवंबर यानी नोटबंदी के दिन से इनके कारोबार में खासी बढ़त देखने को मिली. रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि सितम्बर में मोबाइल वॉलेट के जरिए 7 करोड़ 53 लाख लेन-देन किया गया जिनकी कीमत 3192 करोड़ रुपये थी, नवम्बर में लेन-देन की संख्या 13 करोड़ 80 लाख पर पहुंची जिसकी कीमत थी 3305 करोड़ रुपये रही वहीं जबकि दिसंबर में लेन-देन की संख्या 21 करोड़ 31 लाख पर पहुंच गयी जिसकी कीमत 7448 करोड़ रुपये थी.
संख्या बढ़ने के साथ ही मोबाइल वॉलेट में धोखाधड़ी यानी बगैर जानकारी के पैसे निकाल लेने की शिकायतें बढ़ी हैं. अब ऐसी ही शिकायतों के निबटारे के लिए सूचना तकनीक मंत्रालय आम चर्चा के लिए नए नियमों का मसौदा जारी करने वाला है.
कानून और सूचना तकनीक मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि 'ग्राहकों के हितों और सुरक्षा के लिए नियमों का ड्राफ्ट जल्द ही पब्लिक डोमेन में रखा जाएगा. इस पर आम राय बनने के बाद ही अंतिम रुप दिया जाएगा.'
सूत्रों की मानें तो नए दिशानिर्देश में ये हो सकता है खास
- सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बटुए में जमा पैसे की धोखाधड़ी होने के बाद ग्राहकों को मुआवजा दिलाने का इंतजाम होगा.
- इसके लिए बीमा सुरक्षा की व्यवस्था करने की योजना है जिससे नुकसान की भरपाई हो सके.
- इसके अलावा साइबर सिक्यूरिटी के मामले में विस्तृत दिशानिर्देश होंगे।.
वैसे तो मोबाइल वॉलेट के लिए अभी दिशानिर्देश रिजर्व बैंक जारी करता है. लेकिन सरकार ने साफ किया कि रिजर्व बैंक और सूचना तकनीक मंत्रालय की अलग-अलग भूमिका होगी. रिजर्व बैंक जहां ये तय करेगा कि एक समय में वॉलेट में कितना पैसा ऱखा जा सकता है और वॉलेट कौन जारी कर सकता है. वहीं साइबर कानून के तहत ग्राहकों के हित में नियम बनाने की जवाबदेही सूचना तकनीक मंत्रालय की होगी.
इस बीच, सरकार ने कहा है कि एच 1बी वीजा को लेकर अमेरिकी संसद में लाए गए नए बिल से भारतीय कंपनियों की चिंता से वो अवगत है. नए बिल में कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन दोगुना कर 1.30 लाख डॉलर करने का प्रस्ताव है. कानून बनने पर अमेरिका में कारोबार कर रही भारतीय कंपनियों के लिए भारतीय कर्मचारियों को वहां रखना संभव नहीं हो सकेगा. इंफोसिस, विप्रो और टीसीएस समेत भारतीय आईटी कंपनियां फॉरच्यून 500 अमेरिकी कंपनियों को सेवा मुहैया कराती हैं. साथ ही ये कंपनियां हर साल अमेरिकी सरकार को 20 अरब डॉलर बतौर टैक्स चुकाती हैं साथ ही उन्होंने 4 लाख लोगों को अमेरिका में रोजगार दिया है. ट्रम्प प्रशासन की नयी सोच से इन कंपनियों पर काफी बुरा असर पड़ने की आशंका है.