लोकसभा चुनाव 2019 में फेक न्यूज की आ सकती है बाढ़, Whatsapp को उठाने होंगे कड़े कदम
इससे पहले ब्राजील के चुनावों में ये देखा गया है कि कैसे व्हॉट्सएप की मदद से वाम- पंथी प्रचार प्रसार को बढ़ावा दिया गया. लेकिन अब जैसे जैसे 2019 का लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे - वैसे व्हॉट्सएप का फेक न्यूज का स्कैंडल का असर भी दिखने लगा है.
नई दिल्ली: ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आज के जमाने में फेक न्यूज सबसे बड़ा मुद्दा है जहां कई यूजर्स पक्ष और विपक्ष में सिर्फ इसलिए हो जाते हैं क्योंकि वो फेक न्यूज के चंगुल में फंस जाते हैं. आनेवाले समय में अगर फेक न्यूज पर लगाम नहीं लगाया गया तो ये रियल वर्ल्ड को पूरी तरह से बर्बाद कर सकता है. फेक न्यूज तब सुर्खियों में आया जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का आयोजन किया जा रहा था. उस समय कई फेक अकाउंट्स की बदौलत फेक न्यूज को बढ़ावा दिया गया. कई पॉपुलर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इससे लड़ने के लिए जरूरी कदम उठा रहें हैं जहां वो अपने यूजर्स को इससे सुरक्षित रख सकें.
हालांकि कई जरूरी कदमों को उठाने के बाद सोशल मीडिया जाएंट्स को पता है है कि चुनाव में दखल देना अब कोई नई बात नहीं है. कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसुबक और ट्विटर अपने सिस्टम को फेक न्यूज से लड़ने के लिए विकसित कर रहें हैं जिससे उनके यूजर्स पर कोई प्रभाव न पड़े और न ही ये वेबासाइट्स फेक न्यूज के जाल में फंसे. हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक को अगर व्हॉट्सएप के गलत इस्तेमाल से बचाना है तो 2019 लोकसभा चुनाव के लिए उसे कुछ जरूरी कदम और प्लानिंग करनी होगी.
2019 के लोकसभा चुनाव में व्हॉट्सएप स्कैंडल
बता दें कि ऐसा कदम इसलिए उठाना जरूरी है क्योंकि इससे पहले ब्राजील के चुनावों में ये देखा गया है कि कैसे व्हॉट्सएप की मदद से वाम- पंथी प्रचार प्रसार को बढ़ावा दिया गया. लेकिन अब जैसे जैसे 2019 का लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे - वैसे व्हॉट्सएप का फेक न्यूज का स्कैंडल का असर भी दिखने लगा है.
बता दें कि भारत व्हॉट्सएप का सबसे बड़ा बाजार है जहां 200 मिलियन लोग इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं. वहीं ये प्लेटफॉर्म तब और खतरनाक हो जाता है जब पता चलता है कि यहां कोई डेटा प्रोटेक्शन कानून नहीं है. बता दें कि अगर भारत को फेक न्यूज से लड़ना है तो उसे जीडीपीआर यानी की जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन एक्ट का इस्तेमाल करना होगा और उसे काम में लाना होगा.
ये है दिक्कत
व्हॉट्सएप के फेक मैसेज और स्कैंडल के बारे में यहां के चुनाव आयोग को भी पता है जो हमेशा से ये कहती आई है कि चुनान निष्पक्ष ही करवाए जाते हैं. बता दें कि एक रिपोर्ट में चीफ इलेक्शन कमिश्नर इस बात का जिक्र भी कर चुके हैं.
बता दें कि 40 प्रतिशत गांव के यूजर्स व्हॉट्सएप के उस ग्रुप में जुड़े हुए हैं जिनके प्रतिनिधि किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए हैं. ये लोग हर दिन कुल 1 से 4 घंटों तक व्हॉट्सएप का इस्तेमाल करते हैं. बता दें कि इस रिपोर्ट का खुलासा डिजिटल एमपॉवरमेंट फाउंडेशन के जरिए किया गया है. वहीं साल 2014 में आए अगर एक सर्वे की बात करें तो लोकसभा चुनाव के समय इस बात का खुलासा हुआ था कि देश के 63 प्रतिशत लोग व्हॉट्सएप का इस्तेमाल नहीं करते. जबकि ग्रामीण इलाकों में व्हॉट्सएप इस्तेमाल करने वाले इन यूजर्स का आंकड़ा साल 2014 से तुलना करें तो ये साल 2017 तक आते आते दोगुना हो गया.
इन रिपोर्ट्स से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि कैसे साल 2014 से लेकर अभी तक व्हॉट्सएप यूजर्स में इजाफा हुआ है जहां राजनीतिक पार्टियां इन यूजर्स का इस्तेमाल फेक न्यूज फैलाने में धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहीं हैं. क्योंकि ज्यादातर यूजर्स गांव से है और उन्हें ये ही नहीं पता कि वो जिस चीज या मैसेज को व्हॉट्सप पर फॉर्वर्ड कर रहें हैं आखिर उसमें क्या है और वो दूसरे यूजर्स को कैसे नुकसान पहुंचा रहा है.