नई दिल्लीः यूं तो हर दिन सोशल मीडिया पर लोग अपना ज्यादा विक्त बिताते हैं लेकिन साल में एक दिन ऐसा आता है जब हम मदर्स डे, फादर्स डे और लेबर डे जैसे दिन खास तौर पर सेलिब्रेट करते हैं. ठीक उसी तरह आज सोशल मीडिया को सेलिब्रेट करने का दिन है यानी 'ग्लोबल सोशल मीडिया डे' है. 30 जून यानी आज सोशल मीडिया डे मनाया जाता है और इस बार 9वां ग्लोबल सोशल मीडिया डे मनाया जा रहा है. सोशल मीडिया ने ना सिर्फ लोगों को अपनी बात रखने का स्वतंत्र मंच दिया है बल्कि ये सारी भौगोलिक सीमाओं को लांघते हुए दुनिया भर के लोगों को एक दूसरे से जोड़ता है.


आखिर कैसे हुई इसकी शुरुआत
ग्लोबल सोशल मीडिया डे की शुरुआत मशहूर टेक कंपनी मैशाबेल ने 30 जून 2010 को की थी. आज 9वां सोशल मीडिया डे मनाया जा रहा है. इस दिन सोशल मीडिया के प्रभाव को सेलिब्रेट किया जाता है. ये एक वर्चुअल दुनिया है लेकिन इस वर्जुअल दुनिया में भी लोग अपने मन की बात रखते हैं और इसने कम्यूनिकेशन को एक नए पायदान पर पहुंचाया है. सोशल मीडिया की मदद से लोग कल्चर, विचारों के जरिए लोगों से जुड़ते हैं.



कौन-कौन से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक ऐसी जगह है जहां आप लोगों से जुड़ते हैं. सोशल मीडिया का जिक्र आते ही सबसे पहला नाम दिमाग में फेसबुक का आता है. फेसबुक को साल 2006 में लॉन्च किय गया. शुरुआती दिनों में इसे कॉलेज कैंपस के लिए उतारा गया था जहां स्टूडेंट लोगों से जुड़ सकें लेकिन साल 2006 में इसका कमर्शिल ऑपरेशन शुरु हुआ और 13 साल की उम्र से ज्यादा का कोई भी व्यक्ति इस पर अपना अकाउंट खोल सकता है और इस वर्चुअल दुनिया में लोगों से जुड़ सकता है.


इसके बाद बात करते हैं ट्विटर की जिसे माइक्रो ब्लॉगिंग साइट का नाम दिया गया. पहले इसके लिए 140 शब्द की सीमा तय रखी गई जो अब बढ़ा कर 280 कर दी गई है. यानी इसका यूजर अपनी बात 280 शब्दों में पिरो कर रख सकता है. ट्विटर ने वर्चुअल दुनिया में हैशटैग को स्थापित किया. आज सबसे ज्यादा किस विषय पर चर्चा हो रही है इसका अंदाजा ट्रेंडिंग हैशटैग से लगाया जाता है. हैशटैग का अर्थ है कि दो से तीन शब्दों में किसी टॉपिक को बयां कर देना.


 


इस लिस्ट में इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, लिंक्डइन, व्हाट्सएप भी शामिल हैं. इंस्टाग्राम और स्नैपचैट एक फोटो सोशल मीडिया एप हैं वहीं लिंक्डइन खासतौर पर प्रोफेशनल सोशल प्लेटफॉर्म है.


क्या है सोशल मीडिया के फायदे?


सोशल मीडिया ने लोगों को अपने विचार साझा करने का स्वतंत्र मंच दिया है खासकर महिलाओं के लिए ये मंच एक नई क्रांति की तरह साबित हुआ है. जो लोग अपनी बात समाज के सामने रखने से महरुम हो रहे थे सोशल मीडिया ने ऐसी आवाजों को जगह दी. यही वजह रही कि बेहद कम वक्त में लोगों के बीच ये पॉपुलर हुआ. साल 2018 के पहले क्वार्टर में फेसबुक के मंथली एक्टिव यूजर 2.19 बिलियन रहे. वहीं, ट्विटर के यूजर 2018 के पहले क्वार्टर तक 336 मिलियन रहे. इन आंकड़ों को देखकर समझा जा सकता है कि कितने लोगों ने सोशल मीडिया को अपनी जिंदगी में शामिल किया और इसके जरिए लोगों से जुड़े.


सोशल मीडिया का दूसरा फायदा ये भी है कि ये 'वसुधैव कुटुम्बकम' की अवधारणा को कुछ-कुछ पूरा करता हुा साबित होता है. यहां किसी भी तरह के भौगोलिक बॉर्डर आपको नहीं रोकते. आप यहां बैठे दुनिया के किसी दुसरे कोने में बैठे शख्स से जुड़ सकते हैं उनके कल्चर के बारे में जान सकते हैं. आपके सोशल दायरे को ये प्लेटफॉर्म बढ़ाता है.



सोशल मीडिया के नुकसान?
जहिर सी बात है कोई भी चीज़ अपने साथ नफा-नुकसान लेकर आती है, सो सोशल मीडिया के साथ भी कुछ नुकसान जुड़े हुए हैं. जिनपर अब बात होनी बेहद जरुरी है. सबसे बड़ा सोशल मीडिया प्लेयर फेसबुक हाल ही में अपने यूजर्स की डेटा प्राइवेसी को लेकर घिर चुका है. ऐसे में अब हर सोशल मीडिया यूजर को इसके नुकसान से जागरुक रहना होगा.


सबसे पहला नुकसान है फेक मैसेज फैलने का. सोशल मीडिया पर कोई भी ऐसा टूल नहीं है जो किसी जानकारी को वैलिडेट करता हो या उसकी विश्वसनीयता को परखता हो. ऐसे कई बार इस तरह के मैसेज फैलाए जाते हैं जिनका कोई सिर-पैर नहीं होता. जो तथ्यात्मक मानकों पर पूरी तरह फेल होता है. ऐसे मैसेज कई बार समाज में अशांति का कारण बन जाते हैं और लोगों को मिस-इंफॉर्म्ड बनाते हैं. कई ऐसे पेज भी इन प्लेटफॉर्मों पर मिल जाएंगो जो झूठी जानकारियां ही शेयर करते हैं. ऐसे में ये हर यूजर की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह हर मैसेज या पोस्ट को अपने स्तर पर जांचे-परखे और अगल ये गलत साबित होता है तो लोगों तक सही जानकारी पहुंचाए.


इसका दूसरा सबसे बड़ा नुकसान है आपकी ज्यादतर जानकारी किसी कंपनी के पास जाना. जब भी हम किसी सोशल मीडिया वेबसाइट पर अपना अकाउंट बनाते हैं तो बहुत सी जानकारी साझा करनी होती है और कई बार यूजर की कुछ जरुरी जानकारियों को कंपनियां अपने प्रॉफिट के लिए इस्तेमाल कर लेती है या कभी कभी समुचित सुरक्षा की कमी से भी ऐसा होता है. हाल ही में सामने आया फेसबुक-कैम्ब्रिज एनालिटिका इसका सबसे ताजा उदाहरण है. इस स्थिति को देखते हुए ये समझना होगा कि हर यूजर अपनी सीमित जानकारी या जितनी कम हो सके उतनी जानकारी इन प्लेटफॉर्म्स को मुहैया कराए.