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आठवीं ड्रॉपआउट त्रिश्नीत 25 की उम्र में हैं इस कंपनी के CEO, फोर्ब्स एशिया में भी नाम है शामिल
त्रिश्नीत अरोड़ा का अपनी कामयाबी पर कहना है कि किसी भी शख्स की कामयाबी के पीछे एक शख्स नहीं बल्कि बहुत सारे लोग होते हैं. और मेरे साथ भी ऐसा ही है.
डिजिटल दुनिया की इस चमक दमक के दौर में हैकिंग आम बात हो गई है, लेकिन ऐसा नहीं है हैकिंग सिर्फ बुरी चीज़ है, बल्कि सुरक्षा के लिहाज़ से ये एक बेहद जरूरी हथियार है. आखिर क्या है हैकिंग, कब ये बुरी चीज़ होती है और कैसे इससे लोगों को फायदा पहुंचाया जा सकता है. कैसे हैकिंग ने त्रिश्नीत अरोड़ा की जिंदगी बदल दी और उन्हें बुलंदियों के मुकाम पर पहुंचा दिया.
इन सभी मुद्दों पर हमारे संवाददाता आकाश बेनी चौरसिया ने बात की जाने माने एथिकल हैकर त्रिश्नीत अरोड़ा से.
त्रिश्नीत अरोड़ा का अपनी कामयाबी पर कहना है कि किसी भी शख्स की कामयाबी के पीछे एक शख्स नहीं बल्कि बहुत सारे लोग होते हैं. और मेरे साथ भी ऐसा ही है.
सवाल- कब और क्यों लगा कि आप अपना बेहतर सिर्फ हैकिंग में दे सकते हैं?
जवाब. मुझे ऐसा नहीं लगा कि इसमें ही अच्छा कर सकता हूं या फिर कुछ और करने की कोशिश नहीं की. मैंने अपना 100 फीसद दिया जिससे कि आज मैं यहां तक पहुंचा हूं. ऐसा कुछ पहले से डिसाइडड नहीं था, लेकिन चीज़ें आगे बढ़ती गई और होती गईं. ऐसा कुछ डिसाइडड नहीं था कि किसी और फिल्ड में कुछ नहीं करना है.
सवाल- 8वीं में असफल होने के बाद क्या आपने आगे की पढ़ाई नहीं की?
जवाब. उस वक्त इंट्रेस्ट कुछ और था जैसे हर एक टीएनेजर का होता है. कुछ ऐसा ही मेरा भी था. कुछ और काम करना जमा नहीं तो फिर इसकी शुरुआत की.
सवाल- कभी लगा कि जो फैसला ले रहे हैं वो सही है या गलत?
जवाब. उस वक्त इतनी समझ नहीं थी, टीनेएज में आप इतना समझ नहीं रखते कि आपको ये करना चाहिए या नहीं. फैसला लिया और अच्छा हुआ.
सवाल- आपकी कंपनी के ज़्यादातर ग्राहक विदेशी हैं तो डेटा ब्रीच जैसी घटना का असर आपके ग्राहक पर कितना पड़ा?
जवाब. साइबर सिक्योरिटी की समस्या अभी शुरुआती चरण में है. अभी कंपनियां इस मद में जीरों रुपये इंवेस्ट कर रही हैं. ये समस्या भारत या फिर एशिया की नहीं है ये पूरे विश्व की है. हर कंपनी को टैक्नोलॉजी सिक्योरिटी की जरूरत है. धीरे-धीरे इसकी मांग बढ़ रही है. मेरी कंपनी 5 साल पुरानी है. हम अभी स्टार्ट-अप हैं. हमें हर तरह और हर जगह के ग्राहक चाहिए, ताकि हमारा ग्रोथ हो.
सवाल- क्या है एथिकल हैकिंग?
जवाब. एथिकल हैकिंग का मतलब सीधे शब्दों में ये है कि आईटी इंफ्रास्ट्रकचर आपको परमिशन देगा और आप उसकी कमियां ढूंढिए. हमारा एथिकल हैकर के नाते ये फर्ज बनता है कि हम उसकी कमजोरियों को ढूढ़ें फिर उसकी समस्या को हल करें.
सवाल- थर्ड पार्टी द्वारा चुराए गए डेटा से फेसबुक जैसी कंपनी नहीं पार पाई तो इसमें कमी कहां रह गई?
जवाब. सबसे पहले हमें टैक्नॉलोजी को समझना होगा. हमारे यूजर्स की अवेयरनस कम है, इसलिए ये बड़ी समस्या है. ऐसा एप जो बताता है कि आप कब पैदा हुए, आपकी कब मृत्यु होगी, आप की कब शादी होगी और आप कब हनीमून पर जाओगे? तो ये सारी चीजें यूजर्स को एट्रेक्ट करती हैं और फिर लोग उस एप्लीकेशन पर क्लिक करते हैं अपने प्रोफाइल का पूरा एक्सेस उस एप्लीकेशन को दे देते हैं. यहीं गलती होती है. जिसका कंपनी गलत इस्तेमाल करती है. आपकी निजी जानकारी ले लेती है. ये डेटा-बेस हुआ ये न डेटाब्रीच है.
सवाल- ऐसी डेटा का इस्तेमाल देश की राजनीतिक पार्टियों ने भी किया तो इसपर आपका क्या कहना है.
जवाब. ऐसे एप्लीकेशन से उनको फायदा हो रहा हो फिर वो चाहे एथिकल हो या अन-एथिकल. इसके आगे उनके एथिक्स और मोरल पर निर्भर करता है वो उसका इस्तेमाल कैसे करते हैं.
सवाल- क्या आपने कभी सोचा था कि फोर्ब्स एशिया- 30 में आपका नाम होगा?
जवाब. ऐसा कभी सोचा तो नहीं था लेकिन ग्राहक की शुभकामनाएं और जनता के साथ ने इस मुकाम तक पहुंचाया.
सवाल- आपकी कंपनी देश की बड़ी कंपनियों और कई सरकारी एजेंसियों को सेवा दे रही है. क्या आप पुख्ता साइबर सिक्योरिटी दे रहे हैं.
जवाब. देखिए सिक्योरिटी अलग समस्या होती है हर ऑर्गनाइजेशन सिक्योरिटी पर अपने हिसाब से काम करता है.
सवाल- आपकी मांग देश ही नहीं विदेश में भी हो रही है. ऐसा कैसे संभव हुआ
जवाब. इसमें कंपनी के कर्मचारियों का बड़ा योगदान है. उनकी कड़ी मेहनत है. सफलता के पीछे एक शख्स नहीं होता उसके पीछे बहुत सारे लोग होते हैं. बहुत सारी चीज़ें होती हैं.
सवाल- इतनी बड़ी कामयाबी में आपके पैरेंट्स का क्या रोल रहा हैं-
जवाब. सारा क्रेडिट उनको ही जाता है. परिवार से हटकर मैं कुछ कर ही नहीं सकता था. पैरेंट्स का फर्ज है हर हाल में साथ देना और ठीक रास्ते पर लेकर आना. मेरा सारा क्रेडिट उनको ही जाता है.
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