क्राइस्टचर्च: न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में एक हमलावर ने एक मस्जिद में घुसकर अंधाधुंध फायरिंग की और 49 लोगों की हत्या कर दी. हमलावर ने इस घटना को लाइव स्ट्रीम के जरिए सोशल साइट फेसबुक पर शेयर भी किया. इस घटना के कई घंटों के बाद भी ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस वीडियो को हटाने में नाकाम रहे. जिससे ये वीडियो हर तरफ फैल गया.
इस हमले के बाद एक बार फिर से दुनिया के सबसे बड़े सोशल प्लेटफॉर्म फेसबुक के साथ ट्विटर और यूट्यूब पर सवाल उठ रहा है. सवाल ये है कि आखिर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस वीडियो को हटाने में कैसे नाकाम हुए. कैसे ये वीडियो लगातार 90 मिनट तक ऑनलाइन चलता रहा और लोग इसे शेयर करते रहे. इस वजह से ये वीडियो काफी हद तक वायरल हो गया. जवाब है कि ये जितना कठिन दिखता है उनता है नहीं.
दरअसल यूट्यूब पर ये वीडियो कुल 8 घंटों तक चलता रहा, जहां कई लोगों ने इस वीडियो को इस प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया था. यूट्यूब की प्रवक्ता ने इसका जवाब देते हुए कहा कि, "हिंसा और दिल दहलाने वाला ये वीडियो काफी खतरनाक और डरावना है. ऐसे वीडियो की हमारी प्लेटफॉर्म पर कोई जगह नहीं है. हम फिलहाल इस पर काम कर रहे हैं, जिससे ऐसे वीडियो को रोका जा सके. हम प्राधिकारी के साथ पूरा सहयोग करने के लिए तैयार हैं."
प्राइवेसी को लेकर क्या फेसबुक गुमराह करता है?
कैंब्रिज एनालिटिका विवाद के बाद से फेसबुक पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. जिसमें कहा जा रहा है कि ये प्लेटफॉर्म लोगों की प्राइवेसी के साथ खिलवाड़ करता है. इस मामले में फेसबुक, यूएस कांग्रेस के साथ मीटिंग भी कर चुका है और जवाब भी दे चुका है. कई बार कंपनी पर ये भी आरोप लगे हैं कि यूजर्स की निजी जानकारी को थर्ड पार्टी कंपनियों को बेचा जा रहा है. लेकिन अब न्यूजीलैंड शूटिंग के बाद लोग फेसबुक से ये सवाल पूछ रहे हैं कि, इतना बड़ा प्लेटफॉर्म हमारे कंटेंट या वीडियो को हटा देता है तो आखिर 1 घंटे से ज्यादा देर तक चले शूटिंग को फेसबुक ने क्यों नहीं हटाया? लोगों का सवाल है कि प्राइवेसी को लेकर जब फेसबुक हमेशा से ही अपने आप को सतर्क बताता रहा है तो ऐसे में वो कैसे फेल हो गया.
शूटिंग जैसे वीडियो पर कारवाई कर रहा है फेसबुक
इस मामले में फेसबुक न्यूजीलैंड के प्रवक्ता मिया गारलिक ने कहा कि, "हम पीड़ितों के परिवार के साथ खड़े हैं और इस हमले की निंदा करते हैं. पुलिस ने हमें इस वीडियो के बारे में सूचना दी जिसके तुरंत बाद हमने हमलावर के वीडियो को फेसबुक से हटा दिया. हमने हमलावर के इंस्टाग्राम और फेसबुक अकाउंट को हमेशा के लिए ब्लॉक कर दिया. हम ऐसे वीडियो को भी लगातार हटा रहे हैं, जिसमें इस शूटिंग से जुड़ा कुछ भी है और वो नफरत फैला रहा है.
फेसबुक ने शनिवार को एक बयान में कहा कि हम अभी तक 1.5 मिलियन वीडियो को हटा चुके हैं. जिसमें से 1.2 मिलियन वीडियो को अपलोड के दौरान ही ब्लॉक कर दिया गया. वहीं फेसबुक ने कहा कि उन्होंने इन वीडियो का एडिटिंग वर्जन भी हटा दिया है. जिससे लोगों के बीच नफरत फैलाने की कोशिश की जा रही है.
हारवर्ड केनेडी स्कूल के टेक्नॉलजी और सोशल चेंज रिसर्च प्रोजेक्ट डायरेक्टर Joan Donovan का कहना है कि, "जिस तरह से इस घटना को अंजाम दिया गया है उससे एक बात तो साफ है कि इतने बड़े टेक्नॉलजी ग्रुप अभी ऐसी चीजों को रोकने में काफी हद तक नाकाम और दूर हैं." उन्होंने आगे कहा कि फेसबुक यूजर्स के लाइवस्ट्रीम को देखता है और उसे दूसरों तक पहुंचाता है.
वहीं इस मामले में फेसबुक के पूर्व चीफ इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी ऑफिसर एलेक्स स्टामोस ने कहा कि ये वीडियो इसलिए वायरल हुआ क्योंकि इसपर लोग काफी ज्यादा आने लगे थे. कारण है शूटर एक ऑनलाइन कम्यूनिटी का एक्टिव मेंबर था. हमलावर इस तरह की चीजों का सपोर्ट करता था. उसने ऐसा इसलिए किया जिससे वो कई हजारों लोगों तक अपनी नापाक हरकत को जल्द से जल्द पहुंचा सके.
लाइव और रिकॉर्ड वीडियो का फर्क जो इसे हटाने में बनाता है मुश्किल
स्टामोस ने आगे कहा कि, "हमारे पास कई करोड़ों यूजर्स हैं जो कई तरह की चीजें फेसबुक पर डालना चाहते हैं. इनके बीच आती हैं बड़ी टेक कंपनियां. यूट्यूब, फेसबुक और इंस्टाग्राम के पास डिजिटल फिंगरप्रिंट्स है जिन्हें ISIS संकट के दौरान बनाया गया था. डिजिटल फिंगरप्रिंट और ऑडियो फिंगरप्रिंटिंग दोनों काफी नाजुक हैं. जहां कई इस तरह के लोगों को कॉपीराइट कंटेंट को अपलोड करने में दिक्कत आई है. क्योंकि जितनी बार ये होता है उतनी बार कंपनी इसे पकड़ती है और नया फिंगरप्रिंट बनाती है.
स्टामोस ने आगे कहा कि अगर हम ISIS और न्यूजीलैंड शूटिंग के वीडियो की तुलना करें तो ISIS वीडियो को इसलिए क्रैक कर लिया गया था क्योंकि टेक कंपनियों ने उनके टेलीग्राम चैनल पर छापा मार लिया था. यानि की आप ऐसे वीडियो को अपलोड से पहले ही रोक सकते हैं. वहीं दूसरी प्रॉब्लम ये है कि मर्डर जैसी चीजों का लाइव स्ट्रीम ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर निर्भर करता है. जहां इसे रोक पाना थोड़ा मुश्किल होता है. यानि अगर प्रोग्राम इसे पकड़ता है और कुछ पाता है तो वो इसपर डिजिटल फिंगरप्रिंट लगा देता है.
फेड्रल चीफ कमिशन के पूर्व चीफ टेक्नॉलजिस्ट अश्कान सोलतानी ने कहा कि, "कोई भी किसी चीज पर फिंगरप्रिंट लगा सकता है लेकिन ये सिर्फ पहले से रिकॉर्ड किए हुए वीडियो पर ही लगाया जा सकता है. लेकिन ऐसा लाइव कंटेंट पर मुमकिन नहीं है."
'मिस्टर क्लीन' के नाम से मशहूर मनोहर पर्रिकर के जीवन की बड़ी बातें