(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
क्यों भारतीयों के डेटा को है सबसे ज्यादा खतरा?
यूजर्स के डेटा को संभालने और प्रोसिड करने कैे मामले में भारत काफी पीछे है. हमारे पास डेटा प्रोटेक्शन कानून नहीं है.
नई दिल्ली: साल 2015 के सितंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैलिफोर्निया के मेनलो पार्क स्थित सोशल मीडिया फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग के साथ टाउन हॉल किया था और इस दौरान पीएम उनसे गले मिलते हुए तस्वीरें खिंचवाई थी. लेकिन अब फेसबुक बड़े पैमाने पर डेटा चोरी के विवाद में उलझा हुआ है और आलम यह है कि भारत मार्क जुकरबर्ग को कड़ी कार्रवाई करने की चेतावनी दे रहा है, जिसमें डेटा के दुरुपयोग को लेकर समन भेजने की कार्रवाई भी शामिल है.
जकरबर्ग ने हाल ही में कहा था कि फेसबुक यह तय करेगा कि उसके प्लेटफार्म का इस्तेमाल भारत समेत दुनिया के किसी भी हिस्से में चुनावों को प्रभावित करने के लिए नहीं हो. लेकिन 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और ब्रिटेन में ब्रेक्जिट वोट (यूरोपीय संघ से अलग होने को लेकर की गई वोटिंग) के दौरान सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की घुसपैठ जिस तरह से हुई है, उसे देखने के बाद, इस समय कुछ भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती.
क्या भारत नागरिकों के डेटा सुरक्षा के लिए तैयार है?
साइबर कानून विशेषज्ञों के मुताबिक भारत इस मामले में काफी पीछे छूट गया है. साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने बताया, "यहां मुद्दा यह है कि यूजर्स के डेटा को संभालने और प्रोसिड करने के मामले में हम मोबाइल एप प्रोवाइडर्स, सोशल मीडिया कंपनियों और मीडिएटर्स को कैसे नियंत्रित करते हैं? हमारे पास डेटा प्रोटेक्शन कानून नहीं है. हमारे पास साइबर सुरक्षा पर कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है और न ही प्राइवेसी पर कोई राष्ट्रीय कानून है."
इन महत्वपूर्ण कानूनों की गैर मौजूदगी ने सर्विस प्रोवाइर्स को यूजर्स डेटा के दुरुपयोग और अन-ऑथराइज एक्सेस के मामलों को बढ़ावा दिया है.
दुग्गल ने कहा, "आलम यह है कि सर्विस प्रोवाइडर्स आंकड़ों को देश की भौगोलिक सीमा से बाहर ले जा रहे हैं. क्योंकि देश सो रहा है. एक बार जब डेटा देश से बाहर चला जाता है, तो सरकार का उस पर से नियंत्रण खत्म हो जाता है. इससे लोगों की डेटा सीक्रेसी और प्राइवेसी के प्रोटेक्शन का मजाक बनकर रह गया है.
उन्होंने कहा कि भारत को यूरोपीय संघ (ईयू) से सीखना चाहिए कि डेटा की सुरक्षा के लिए कानूनी ढांचा कैसे तैयार करते हैं. ईयू ने नया प्रइवेसी कानून, जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (जीडीपीआर) लागू किया है, जो इस साल 25 मई से प्रभावी होगा और यह दुनिया भर के सर्विस प्रोवाइडर्स पर लागू होगा.
चार सालों तक चली बहस के बाद ईयू संसद ने 14 अप्रैल, 2016 को इस कानून को मंजूरी दी थी और इसे नहीं मानने वाली कंपनियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी. हालांकि भारत ने डेटा सुरक्षा विधेयक पर एक श्वेत पत्र जारी किया है, लेकिन अभी तक यह कानून नहीं बन पाया है.
दुग्गल ने कहा, "भारत को देश से बाहर डेटा कलेक्ट करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए और इसे नहीं माननेवाली कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाना चाहिए, चाहे वह देश में रहकर काम कर रही हों या देश से बाहर काम कर रही हों."