पिछले कुछ वक्त से आपने डेटा लीक होने के बारे में कई बार सुना होगा. डिजिटल युग में अब हर काम ऑनलाइन तरीके से हो रहा है. ऐसे में बहुत सारे प्लेटफॉर्म पर रजिस्ट्रेशन के लिए आपका डेटा मांगा जाता है. जिसमें आपका नाम, फोन नंबर, ऐड्रेस, लोकेशन और यूज़र आईडी शामिल होते हैं. कई वेबसाइट्स पर भी आपका डेटा रजिस्टर किया जाता है. ऐसे में अक्सर डेटा लीक होने की खबरें आती रहती है.
खबर है कि करीब 10 करोड़ लोगों के डेबिट और क्रेडिट कार्ड्स का डेटा डार्क वेब पर लीक हो गया है. इसमें कार्ड होल्डर की डिटेल्स जैसे नाम, फोन नंबर, ईमेल, कार्ड की आखिरी और पहली 4 डिजिट्स दी गई हैं. कहा जा रहा है कि ये डेटा लीक Juspay जैसे डेटा पेमेंट प्लेटफॉर्म से जुड़ा है. जो एक पेमेंट गेटवे है. इसके जरिए अमेजन, स्विगी और मेकमायट्रिप जैसे भारतीय और ग्लोबल मर्चेंट्स के ट्रांजेक्शन प्रोसेस होते हैं.
आपको बता दें कि बड़ी संख्या में डेटा लीक होने से एक आम यूज़र को इतनी जल्दी असर नहीं पड़ता. लेकिन इसके लॉन्ग टर्म इफ़ेक्ट होते हैं. सही मायनों में देखा जाए तो डेटा लीक काफी खतरनाक भी होता है.
डेटा लीक से यूज़र्स को क्या नुकसान
डेटा लीक होने का नुकसान यूजर्स को तुरंत नज़र नहीं आता लेकिन लॉन्ग टर्म में इससे आपको नुकसान हो सकता है. हैकर के पास आपका नाम है, लोकेशन है, ऐड्रेस है, फ़ोन नंबर है और इस आधार पर हैकर्स के लिए कई चीज मुमकिन है. इन सब जानकारियों से वो आपकी कुछ और संवेदनशील जानकारी कलेक्ट करके आपको कई तरीके का नुकसान पहुंचा सकते हैं. आपके साथ किसी तरह का बैंक फ्रॉड हो सकता है. आपके घर तक पहुंच कर आपका नुकसान कर सकते हैं. सोशल मीडिया अकाउंट में सेंध लगा सकते हैं या फिर आपकी पर्सनल लाइफ में झांक सकते हैं, रैंसम ले सकते हैं.
कैसे होते हैं डेटा लीक?
डेटा लीक कई तरीके से हो सकते हैं. कई बार कंपनियां यूज़र डेटा को स्टोर करने में कोताही करती हैं और इस वजह से डेटा लीक होता है. कई बार हैकर्स जानबूझ कर कंपनियों के सर्वर पर साइबर अटैक करके यूज़र डेटा हासिल करते हैं. साइबर क्रिमिनल्स डेटा लीक या तो कंप्यूटर नेटवर्क का फ़िज़िकल ऐक्सेस ले कर करते हैं या रिमोटली ऐक्सेस लिया जाता है. सबसे पहले हैकर्स कंपनी के सर्वर्स के बारे में रिसर्च करते हैं और किसी कॉन्टैक्ट के ज़रिए पहुंचने की कोशिश करते हैं. नेटवर्क अटैक की बात करें तो हैकर्स उस कंपनी के डेटा सर्वर की ख़ामियों को ढूंढते हैं और इसके बाद किसी कर्मचारियों को बेट के तौर पर यूज करके डेटा हासिल करते हैं. गौतलब है कि हैकिंग का कोई नियम नहीं होता है और साइबर क्रिमिनल्स हर बार अलग अलग मेथड का सहारा लेकर साइबर अटैक करते हैं. डेटा लीक करने के बाद इन्हें डार्क वेब में बेच कर या तो हैकर्स पैसे कमाते हैं, या फिर उस डेटा को यूज करके यूज़र्स का नुक़सान करते हैं.
क्या है डार्क वेब?
सिंपल भाषा में कहें तो डार्क वेब भी इंटरनेट की तरह ही होता है, लेकिन यहां इंडेक्सिंग नहीं होती. यानी आप ऐसे ही इंटरनेट पर जा कर डार्क वेब के कंटेंट सर्च नहीं कर सकते हैं. डार्क वेब ऐक्सेस के एनोनिमाइजिंग ब्राउज़र यूज़र किया जाता है. इनमें से पॉपुलर टॉर है जिसे यूज करके इसे ऐक्सेस किया जा सकता है. डार्क वेब वेबसाइट को टॉर डिडेन सर्विस भी कहा जाता है. डार्क वेब में वेबसाइट के नाम के आखिर में .com या .org नहीं लगते, बल्कि यहां .onion जैसे नाम का यूज किया जाता है. ये गूगल सर्च में नहीं दिखते हैं.