मोबाइल फोन में कितने तरह के सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम होते हैं? भारत का नाविक कैसे है सबसे अलग?
Satellite Navigation Systems: एप्पल ने अपनी नई iPhone सीरीज में NavIC नेविगेशन सिस्टम का सपोर्ट दिया है. ये देशी जीपीएस सिस्टम है जिसे ISRO ने तैयार किया है.
How Satellite Navigation Systems Are There? हम सभी जिन स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं इनमें अमेरिका का जीपीएस सिस्टम लगा हुआ है जो हमे एक लोकेशन से दूसरे लोकेशन की जानकरी देता है. जीपीएस सिस्टम अमेरिकी सरकार के अधीन है. आज हम आपको ये बताएंगे कि मोबाइल फोन्स में कुल कितने तरह के जीएनएसएस होते हैं. जीएनएसएस से हमारा मतलब ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम से है. यानि जिस तरह अमेरिका का जीपीएस है, इसी तरह दूसरों देशों के भी ग्लोबल नेविगेशन सिस्टम हैं. आइए जानते है इस बारे में
कुल 4 GNSS है (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम)
दुनियाभर में कुल 4 ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम है जिसमें अमेरिका का जीपीएस, रूस का ग्लोनास, यूरोपियन यूनियन का गैलीलियो और चीन का बेईडौ है. इसके अलावा 2 रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम है जिसमें भारत का नाविक या IRNSS और जापान का QZSS. रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम सिर्फ कुछ ही सीमा को कवर करता है जबकि ग्लोबल सिस्टम पूरे देश में आपको लोकेशन की जानकारी देता है.
मोबाइल कंपनियां ज्यादातर अपने स्मार्टफोन में अमेरिका का जीपीएस सिस्टम यूज करती हैं. इसकी मदद से हमें लोकशन आदि की जानकारी मिलती है. हालांकि इस बार एप्पल ने अपनी नई iPhone सीरीज में भारत का देसी जीपीएस सिस्टम दिया है. iPhone 15 Pro और Pro max में नाविक का सपोर्ट दिया गया है. पीएम मोदी ने नए जीपीएस सिस्टम को भारतीय मछुआरों को समर्पित करते हुए इसका नाम नाविक रखा है. एप्पल के अलावा कुछ चीनी स्मार्टफोन ब्रांड ने भी अपने डिवाइसेस में नाविक का सपोर्ट देना शुरू किया है. केंद्र सरकार ने सभी मोबाइल निर्माताओं से 2025 तक अपने मोबाइल फोन्स में देसी जीपीएस सिस्टम देने के लिए कहा है.
जीपीएस और नाविक में क्या है अंतर
जीपीएस और नाविक में अंतर ये है कि जीपीएस पूरी पृथ्वी को कवर करता है जबकि नाविक सिर्फ भारत और इसके आस-पास के एरिया को कवर करता है. बता दें, नाविक को विकसित करने के लिए मंजूरी 2006 में मिल गई थी लेकिन ये प्रोजेक्ट लेट होते गया और 2018 में इसका काम शुरू हुआ. देसी सिस्टम 7 सैटेलाइट्स की मदद से काम करता है और ये हिंदुस्तान के सारे भू-भाग को कवर करता है.भारत के अलावा ये देसी सिस्टम आस-पास के देशों को भी लोकेशन बेस्ड सही जानकारी प्रदान कर सकता है.
नाविक की खासियत
- नाविक में 3 रूबीडियम अटॉमिक क्लॉक लगी हुई हैं, जो पृथ्वी पर हमारी दूरी, समय और लोकेशन की सही जानकारी देती है
- नाविक सैटेलाइट्स पृथ्वी का चक्कर लेने में 23 घंटे, 56 मिनट और 4 सेकंड का समय लेते हैं और ये सभी सैटेलाइट्स भारत के साथ एक सीधी रेखा में हैं
- NavIC सैटेलाइट्स ड्यूल फ्रीक्वेंसी बैंड्स (L5-बैंड और S-बैंड) का इस्तेमाल करते हैं जिसके कारण ये जीपीएस से भी ज्यादा एक्यूरेट इनफार्मेशन हमे देते है. जीपीएस सर्फ सिंगल बैंड पर बेस्ड है जिसमें वातावरण द्वारा सिग्नल खराब होने के कारण त्रुटि हो सकती है
बेहतर क्या है, GPS या NavIC?
देसी सिस्टम NavIC 5-10 मीटर तक की सटीकता तक पहुँच सकता है जबकि GPS की सटीकता आमतौर पर 20 मीटर तक मानी जाती है. न केवल सटीकता, बल्कि NavIC के बारे में कहा जाता है कि इसमें तेज़ लैच-ऑन टाइम होता है, जिसे टेक्नोलॉजी टर्म में टाइम टू फ़र्स्ट फ़िक्स (TTFF) कहा जाता है. नाविक को अमेरिका के जीपीएस सिस्टम के बराबर माना जा रहा है जो देशवासियों को एकदम सटीक जानकारी दे सकता है.
आर्मी, NDMA और INCOIS पहले से कर रही इस्तेमाल
फिलहाल देसी जीपीएस का इस्तेमाल आर्मी और NDMA द्वारा किया जा रहा है. NDMA नाविक का इस्तेमाल भूस्खलन, भूकंप, बाढ़ और हिमस्खलन जैसी प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं के लिए चेतावनी प्रसार प्रणाली के लिए कर रही है. इसके अलावा गहरे समुद्र में जाने वाले मछुआरों को चक्रवात, ऊंची लहरें और सुनामी से जुडी चेतावनी देने के लिए भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना प्रणाली केंद्र (INCOIS) भी इसका इस्तेमाल कर रहा है.
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