मोबाइल फोन अब लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं. खास तौर पर स्मार्टफोन दिनचर्या में शामिल हो चुके हैं, क्योंकि इसके साथ आने वाली सुविधाएं का हम रोज इस्तेमाल करते हैं. ये सिर्फ फोन पर बात करने तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि न्यूज अपडेट चेक करना, मैच स्कोर देखना या सीधे लाइव मैच, फिल्म देखना या वीडियो कॉलिंग करने में रोजाना इस्तेमाल होता है. ये जितनी सुविधाएं लेकर आता है उतनी ही परेशानी भी बढ़ा रहा और छोटे बच्चों में ये सबसे ज्यादा देखा जा रहा है, जहां फोन एक लत की तरह बनता जा रहा है.
स्मार्टफोन की लत बड़ों से लेकर छोटे बच्चों तक एक जैसी है और इसके असर हर उम्र पर पड़ रहा है, लेकिन बच्चों पर इसके असर पर ज्यादा ध्यान इसलिए दिया जाता है क्योंकि छोटी उम्र में बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास में वक्त लगता है और किसी भी आदत या शौक के लत में बदलने के गंभीर नतीजे दिखते हैं.
आज के दौर में बच्चों के हाथों में आसानी से पहुंच रहे स्मार्टफोन के कई नुकसान हो रहे हैं-
गुस्सा और चिढ़चिढ़ापन बढ़ना- छोटी उम्र में गुस्सा या चिढ़ना आम बात है क्योंकि उस उम्र में चीजों को समझने और उनका विश्लेषण करना आसान नहीं होता. स्मार्टफोन की लत के कारण ये और बढ़ रहा है. अगर बच्चे को फोन का इस्तेमाल करने से रोका जाए, तो उनमें गुस्सा होने की प्रवृति बढ़ रही है. साथ ही ये बच्चों को पहले से ज्यादा चिढ़चिढ़ा बना रहा है. मसलन, नेटवर्क न आना या फोन की बैटरी खत्म होने पर अक्सर ये रूप दिखता है.
फोन पर निर्भरता बढ़ना- टेक्नोलॉजी पर इंसानी निर्भरता लगातार बढ़ रही है. स्मार्टफोन के मामले में भी यही है. सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, बल्कि पढ़ाई से जुड़ी चीजें हो या ऑनलाइन शॉपिंग या फिर अन्य कोई काम, उसके लिए सामान्य तरीकों के बजाए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने के कारण निर्भरता बढ़ रही है और कई बार फोन की अनुपस्थिति में ये मुश्किल में डालने वाली है.
खेल-कूद में रुचि कम होना- घर से बाहर जाकर पार्क में दोस्तों के साथ क्रिकेट, फुटबॉल, बैडमिंटन या कई तरह के गेम खेलना बचपन का अहम हिस्सा होता है. ये न सिर्फ बच्चों के शारीरिक विकास में सहायक होता है, बल्कि उनके व्यवहार और मानसिकता को भी बेहतर करता है, लेकिन मोबाइल फोन पर वक्त गुजारने के कारण बच्चे अहम पहलू से दूर हो रहे हैं. मनोरंजन के लिए फोन में गेम से लेकर फिल्में और वीडियो तो हैं, लेकिन वो शारीरिक और मानसिक विकास को बाधित कर रहा है.
घरवालों से छुपकर इस्तेमाल करना- बचपन में कई बच्चे अपने घर से छुपकर छोटे-मोटे काम करते हैं, लेकिन ज्यादातर ऐसे होते हैं, लेकिन स्मार्टफोन के दौर में ये और ज्यादा बढ़ गया है. फिर चाहे वो रात में तय वक्त के बाद भी फोन का इस्तेमाल हो या घर से छुपाकर स्कूल में फोन ले जाना हो.
गलत कामों की बढ़ती प्रवृति- ये सबसे बड़ा पहलू है, जिसने अभिभावकों को परेशान किया है. बच्चों में छोटे-मोटे गलत कामों से लेकर बड़े अपराध की ओर जाने की प्रवृति बढ़ी है. हाल ही में पंजाब में दो ऐसे मामले आए थे, जिनमें 16 और 17 साल के लड़कों ने अपने घरवालों से छुपकर PUBG मोबाइल गेम में लाखों रुपये उड़ा दिए थे. इसके अलावा 2-3 साल पहले ब्लू व्हेल गेम के कारण कई बच्चों ने आत्महत्या कर ली थी, जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाला मामला था.
साइबर अपराध के शिकार- आधुनिक दौर में साइबर अपराध सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रही है और बच्चों के मामले में ये और भी खतरनाक है, क्योंकि ऐसे अपराधी स्मार्टफोन को भेदकर अहम जानकारी चुरा सकते हैं, जो बच्चों के जीवन और भविष्य को नुकसान पहुंचा सकता है.
इनके अलावा भी कई ऐसी समस्याएं हैं, जो स्मार्टफोन के कारण बच्चों में देखी गई है. फिर चाहे वो आखों पर उसका असर पड़ना हो या याद करने और कैलकुलेशन की क्षमता पर भी बड़ा असर पड़ा है, जो बच्चों के भविष्य के लिए घातक हो सकता है.
खुद उदाहरण पेश करें परिजन
ऐसे में हर परिवार में माता-पिता या अन्य परिजनों को घर में मौजूद बच्चों को इसके अति-इस्तेमाल से रोकना चाहिए. इसके लिए उन्हें उदाहरण पेश करते हुए खुद भी घर में कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि बच्चों के साथ ज्यादा बात कर सकें और साथ ही उनकी गतिविधियों पर भी नजर रख सकें.
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