Gaming Industry: गेमिंग इंडस्ट्री ने पिछले कुछ सालों से पूरी दुनिया में अपने पैर पसारे हैं. खासतौर पर भारत में पिछले कुछ सालों में मोबाइल गेमिंग का क्रेज काफी तेजी से बढ़ा है. भारत में 15-25 साल उम्र की आबादी काफी ज्यादा है, जो मोबाइल गेमिंग के प्रति काफी ज्यादा आकर्षित है.
भारत के ये गेमर्स फ्री फायर मैक्स, बीजीएमआई, कॉल ऑफ ड्यूटी, जीटीए 5, इंडियन बाइक ड्राइविंग 3डी जैसे कई गेम्स खेलते हैं. हालांकि, इस बढ़ती गेमिंग इंडस्ट्री ने छोटे और किशोर अवस्था के बच्चों के लिए खतरा भी पैदा कर दिया है.
वीडियो गेम के चक्कर में गई जान
पिछले 5-6 सालों में अलग-अलग मोबाइल गेम्स की लत में फंसकर कई बच्चों ने अपनी जान दे दी है और कई बच्चों ने अपनी जान को खतरे में भी डाला है. ऐसा ही एक नया मामला महाराष्ट्र के शहर पुणे से आया है. पुणे में रहने वाले आर्य श्रीराव दसवीं क्लास में पढ़ते थे और उन्हें मोबाइल गेम की काफी ज्यादा लत गई थी.
आर्य की लत इतनी ज्यादा खतरनाक थी कि उसने उनकी जान भी ले ली. आर्य ने मोबाइल गेम खेलते-खेलते 14वीं मंजिल से छलांग लगा दी और उनकी मौत हो गई. बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बच्चे के माता-पिता ने बताया कि पिछले कुछ महीनों से वह एक वीडियो गेम खेल रहा था. वह दिन-रात, सुबह-शाम, सोते-जागते सिर्फ उसी वीडियो गेम को खेलता रहता और उसी के बारे में सोचता रहता था.
माता-पिता ने बताया कि वीडियो गेम की लत उनके बच्चे को इतनी ज्यादा लग गई थी कि उन्हें अपने बच्चे के व्यवहार में बदलाव भी नज़र आ रहा था. उन्होंने आर्य को समझाने की काफी कोशिश की लेकिन वो उस लत से बाहर नहीं निकल पाया और अंत में गेम खेलते-खेलते ही 14वीं मंजिल से कूद गया और अपनी जान दे दी.
गेम्स की जानलेवा आदत से बच्चों को कैसे बचाएं
समय-सीमा निर्धारित करें: अगर आपका बच्चा वीडियो गेम खेल रहा है तो उसके लिए एक तय समय-सीमा तय करें और यह सुनिश्चित करें कि आपका बच्चा उस समय के बाद गेम न खेले.
आउटडोर गेम्स के लिए प्रेरित करें: बच्चों को घर में बैठकर वीडियो गेम खेलने देने के बजाय उसे घर से बाहर भेजकर आउटडोर गेम जैसे क्रिकेट, बैटमिंटन, कबड्डी, खोखो, फुटबॉल, टेनिस आदि खेलने के लिए प्रेरित करें. इससे बच्चे की फिटनेस भी अच्छी रहेगी.
पेशेवर की मदद लें: अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे को वीडियो गेम की बुरी और खतरनाक लत लग चुकी है तो आप सिर्फ खुद ही बच्चों को समझाते न रहें बल्कि किसी पेशेवर काउंसलर की मदद लें और बच्चों को रोजाना काउंसलर के पास लेकर जाएं.
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