Magnetogenetics: सच में! इंसानी दिमाग को कंट्रोल करेगी ये टेक्नोलॉजी? जानिए कैसे करती है काम
वैज्ञानिकों ने इंसानी दिमाग को समझने के लिए कई टेक्नोलॉजी पर काम किया है, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पाई. अब मैग्नेटोजेनेटिक्स टेक्नोलॉजी को विकसित किया गया है. इसमें मैग्नेट्स का इस्तेमाल होगा.
Magnetogenetics Technology : सालों से वेज्ञानिक इंसानी दिमाग को समझने और उसे कंट्रोल करने के लिए कई टेस्ट कर चुकें हैं. लेकिन अभी कर उनको इसमें सफलता नहीं मिली है. आप लोगों ने फिल्मों में देखा होगा कि कैसे भारी-भरकम मशीनों से इंसानों के ऊपर टेस्ट किए जाते हैं, जिससे दिमाग कैसे फंक्शन करता है ये जाना जा सकें. फिलहाल वैज्ञानिकों ने एक कई दशकों के बाद एक नई टेक्नोलॉजी विकसित की हैं. इसमें वैज्ञानिक इंसानी दिमाग को समझने के लिए मैग्नेट्स यानी चुंबकों का यूज करेंगे. इससे पहले तक इलेक्ट्रिसिटी का यूज किया जा रहा था.
क्या इंसानी दिमाग को कंट्रोल कर पाएगी ये टेक्नोलॉजी?
इस टेक्नोलॉजी से पहले भी कई योजनाओं पर वैज्ञानिक काम कर चुके हैं. लेकिन या तो वो योजनाएं असफल रहीं या तो उन योजनाओं से वैज्ञानिकों के मन मुताबिक रिजल्ट नहीं मिल पाया हैं. इस टेक्नोलॉजी को लेकर भी कहा जा रहा है कि ये फिलहाल के लिए जानवरों के दिमाग को तो कंट्रोल कर ले रहे हैं. लेकिन इंसानों पर इसका असर नहीं हो रहा है.
Minimally invasive cellular-level target-specific neuromodulation is needed to decipher brain function and neural circuitry. Here nano-magnetogenetics using mag…
— Longevity (@LongevityTao) July 21, 2024
Source: Nature https://t.co/vGA6alBF2C
कैसे काम करती है ये मैग्नेटोजेनेटिक्स टेक्नोलॉजी
वैज्ञानिकों के मुताबिक ये टेक्नोलॉजी दिमाग में मैग्नेटिक नैनोपार्टिकल्स और क्लोज रेंज वाली मैग्नेटिक फील्ड्स पर निर्भर करती है. इस नई टेक्नोलॉजी के काम करने का तरीका भी बाकि टेक्नोलॉजी से अनोखा है. इसमें एक मैग्नेटिक नैनोपार्टिकल के साथ पिएजो (ग्रीक शब्द है जिसका अर्थ प्रेशर) नाम का एक मेकेनिकोसेंसिटिव प्रोटीन होता है. इस नैनोपार्टिकल का आकार 200 नैनोमीटर यानी 0.0002 मिलीमीटर होता है. जब रोटेटिंग मैग्नेटिक फील्ड मैग्नेटिक नैनोपार्टिकल को मूव कराती है. तो इससे टॉर्क जेनरेट होता है.
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इस टेक्नोलॉजी का यूज चूहे पर किया गया, जिसमें ये सामने निकल कर आया कि चूहे उतना ही खा रहे थे जितना कि वैज्ञानिक चाहते थे. इस टेक्नोलॉजी की मदद से न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स के लिए नए ट्रीटमेंट भी डेवलप किए जा सकेंगे.
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