सिलिकॉन वैली: हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, कोई भी हो अब हर युवा का यही है नया मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजा- जानिए क्यों?
लाखों युवा सिलिकॉन वैली में काम करने का सपना पाले हुए हैं. दुनिया भर की बड़ी टेक कंपनियां जैसे गूगल, फेसबुक, इंटेल, ओरेकोल, एपल के हेड ऑफिस भी सिलिकॉन वैली में ही हैं.
अमेरिका का सिलिकॉन वैली, यहां बात लाखों या करोड़ों की सलाना पैकेज वाली सैलरी की नहीं होती है, अगर आपके पास आइडिया है, टैलेंट है या फिर तकनीकी की दुनिया में कुछ कर गुजरने की चाहत है तो कंपनियां आपको सोने से भी तौलने को तैयार हैं. दुनिया का हर बड़ा टेक्नोक्रेट है और जिनका सपना है वो पहले इसी शहर में आना चाहते हैं.
कांच से बनीं बड़ी-बड़ी बिल्डिंगे, दुनिया की अर्थव्यवस्था को अपनी उंगलियों पर नचाने वाली बड़ी बिजनेस डीलें और ऐसी नवाचार जो सिलिकॉन में बैठ-बैठे आपके किचन और बेडरूम की जरूरतें उपलब्ध करा रहे हैं. यहां एक बिल्डिंग में लगीं आर्टिफिशियल मशीनें हजारों किलोमीटर दूर भारत के किसी गांव में बैठे युवा की मनोदशा को समझ रही हैं.
अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि जैसे ही आप अपने घर में एसी, टीवी या मोबाइल की चर्चा करते हैं तो ये प्रोडक्ट आपके मोबाइल पर दिखने लगतें हैं. ई-कॉर्मस साइट फ्लिपकॉर्ट, एमेजन अपने प्रचार से आपको प्रोडक्ट रीदने के लिए मजबूर कर देते हैं. ऐसी ही तमाम कंपनियां हर सेक्टर के बिजनेस को इस सिलिकॉन वैली से चला रही हैं. इनमें से कई बड़े नाम हैं जैसे गूगल, फेसबुक, जूम, नेटफ्लिक्स, एडोब, एपल..यानी ऐसी तमाम कंपनियां जो आपकी जिंदगी का हिस्सा हैं.
अब आपके मन में आ रहा होगा कि आखिर ये सिलिकॉन वैली है क्या और इसके पीछे का क्या इतिहास है. इस सवाल का जवाब अगर सीधे शब्दों में समझें तो यही कहा जा सकता है कि सिलिकॉन वैली आधुनिक विज्ञान का तीर्थस्थल है जहां हर धर्म का युवा जाने के ख्वाब देख रहा है. ये शहर अब पूरी दुनिया का टकसाल है. जहां टैलेंट है तो यहां आपकी हर सेकेंड को डॉलरों से तौल दिया जाएगा.
लेकिन इसी शहर के नाम से जुड़ा सिलिकॉन वैली बैंक इस समय चर्चा में है. इसकी बड़ी वजह है इस बैंक का दिवालिया हो जाना. सिलिकॉन वैली बैंक के फेल होने की खबर ने जमाकर्ताओं, स्टार्टअप्स और अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली में दहशत और डर का माहौल पैदा कर दिया है. इसी के साथ सिलिकॉन वैली में जो बड़ी टेक कंपनियां हैं उनको भी चिंता हो रही है. यहीं से सभी मॉडर्न माइक्रोप्रोसेसर सिलिकॉन कंपनियों ने अपनी पहचान बनाई. बड़ी-बड़ी टेक कंपनियों के हेड ऑफिस यहीं पर है. इसमें फेसबुक. अमेजन, गूगल जैसी कंपनियां भी शामिल हैं. यूं समझ लें कि सैंकड़ों टेक कंपनियां सिलिकॉन वैली को अपना घर कहती हैं.
सिलिकॉन वैली को आप एक शहर मान सकते हैं जहां पर बड़ी टेक दिग्गज कंपनियों के हेड ऑफिस हैं. यहीं पर गूगल, मेटा जैसी कंपनियों का भी मुख्यालय है. हाल में डूबी एसवीबी बैंक भी यहीं पर है. 31 दिसंबर 2022 तक इस बैंक के खाते में कुल 1743.4 अरब डॉलर जमा थे, और इस बैंक की संपत्ति 209 अरब डॉलर थी.
क्या है सिलिकॉन वैली के बनने की कहानी
सिलिकॉन वैली शब्द का पहली बार इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक न्यूज ने 10 जनवरी, 1971 के अपने एक कवर पर किया. तब जर्नलिस्ट डॉन होफ्लर एक कवर स्टोरी कर रहे थे. धीरे-धीरे ये शब्द इस्तेमाल में आने लगा.
आज सिलिकॉन वैली 1, 854 वर्ग मील के क्षेत्र में फैली है. यहां पर 3 मिलियन से ज्यादा लोगों का घर भी है. यह कैलिफोर्निया के खाड़ी क्षेत्र में स्थित है. सिलिकॉन वैली में ही सांता क्लारा और सैन मेटियो काउंटी के सभी क्षेत्र हैं. इसके अलावा अलामेडा काउंटी का पश्चिमी किनारा और सांता क्रूज़ काउंटी का स्कॉट्स वैली इसी में आती है. सिलिकॉन वैली का सबसे बड़ा शहर सैन जोस है. यहीं पर स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी भी है.
तो इसलिए दुनिया भर टेक्नोक्रेट यहां जाने का सपना देखते हैं
बड़ी हाई प्रोफाइल टेक कपंनियां सिलिकॉन वैली में ही बनीं और विकसित हुई हैं. यही वजह है कि यहां पर सारे टेक स्टार और निवेशक अपना पैसा लगाते हैं. दिसंबर 2020 की शुरुआत तक इस क्षेत्र में 117 टेक और उद्यम कपंनियों के ऑफिस खुल चुके थे. इनका कारोबार 253 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. इन कंपनियों में ऐप्पल, अल्फाबेट की Google, मेटा (पहले फेसबुक), और नेटफ्लिक्स, सिस्को सिस्टम्स, इंटेल, ओरेकल और एनवीडिया जैसी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर कंपनियां वीज़ा और शेवरॉन सहित कई बड़ी कंपनियां शामिल हैं. 2020 तक, सिलिकॉन वैली की कंपनियों ने औसतन बिलियन 138,100 डॉलर की कमाई की है.
सिलिकॉन वैली दुनिया के सबसे अमीर क्षेत्रों में से एक है. फोर्ब्स मैगजीन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में कंप्यूटर टेक्नॉलजी से जुड़े 365 अरबपति थे, जिनकी कुल संपत्ति 2.5 ट्रिलियन थी. साल 2020 में, 81 अरबपति कथित तौर पर सिलिकॉन वैली में रह रहे थे.
हालांकि कई बड़े बिजनेस मैन ने हाल ही में इसे छोड़ने का फैसला लिया और अपनी कंपनियों को संयुक्त राज्य अमेरिका के दूसरे हिस्सों या विदेशों में ले गए हैं. टेस्ला (टीएसएलए) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एलोन मस्क ने घोषणा की कि वह दिसंबर 2020 में टेक्सास जा रहे हैं. इसके बाद हेवलेट पैकर्ड एंटरप्राइज (एचपीई) और ओरेकल ने भी ऐसा ही किया.
क्या है सिलिकॉन और वैली का इतिहास
1939 में विलियम हेवलेट और डेविड पैकर्ड ने एक ऑडियो ऑसिलेटर की मदद से हेवलेट-पैकर्ड कंपनी की नींव रखी थी. इसके बाद 1940 के दशक में विलियम शॉकले, जॉन बर्डीन और वाल्टर एच ब्रैटन ने लैब में काम करने वाले एक ट्रांजिस्टर को बनाया. इस ट्रांजिस्टर में सिलिकॉन धातु का इस्तेमाल किया गया था. ये दोनों खोज सैन फ्रांसिस्को क्षेत्र में ही हुई. जो आज सिलिकॉन वैली के नाम से मशहूर है. लेकिन सैन फ्रांसिस्को क्षेत्र का सिलिकॉन वैली बनने का किस्सा कई खोजों के बाद गढ़ा गया था.
1951 में फ्रेड टर्मन ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और पालो अल्टो शहर के बीच स्टैनफोर्ड रिसर्च पार्क की स्थापना की. ये दोनों भी सैन फ्रांसिस्को क्षेत्र में ही बनाए गए थे.
साल 1955 में विलियम शॉकले ने माउंटेन व्यू में अपनी खुद की फर्म, शॉकले सेमिकंडक्टर लेबोरेटरी खोली. साल 1957 में शॉकले के कई कर्मचारियों ने इस्तीफा दे दिया और एक प्रतिस्पर्धी फर्म, फेयरचाइल्ड सेमीकंडक्टर शुरू की. फेयरचाइल्ड के कर्मचारियों ने बाद में इंटेल और एएमडी सहित कई दूसरी कंपनियां सैन फ्रांसिस्को क्षेत्र में ही खोली.
1958 से 1960 के बीच सिलिकॉन धातु का इस्तेमाल सिर्फ ट्रांजिस्टर बनाने में ही किया जाता था. बाद के सालों में इस धातु का इस्तेमाल बढ़ता गया और सिलिकॉन धातु बड़े इस्तेमाल की चीज बन गई. आज सिलिकॉन का इस्तेमाल सभी माइक्रोप्रोसेसरों में किया जाता है. जिसकी खोज तब के सैन फ्रांसिस्को क्षेत्र और अब के सिलिकॉन वैली में ही हुई थी.
अब बात कैलिफोर्निया के सैन फ्रांसिस्को क्षेत्र की जो आज सिलिकॉन वैली के नाम से जाना जाता है.
- कैलिफोर्निया के सैन फ्रांसिस्को खाड़ी क्षेत्र के दक्षिणी हिस्से में 1961 में पूर्व फेयरचाइल्ड बैकर आर्थर रॉक ने डेविस एंड रॉक की स्थापना की, जिसे दुनिया की पहली टेक फर्म माना जाता है. इसी से एक नए तरह की निवेश टेक की खोज हुई.
- 1969 में अर्पानेट कंप्यूटर नेटवर्क ने अलग-अलग चार नोड्स स्थापित किये, जिसमें स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय शामिल था. Arpanet इंटरनेट की नींव भी यहीं से पड़ी. ये कंपनियां खूब मशहूर हुई.
- 1971 में पत्रकार डॉन होफ्लर ने इलेक्ट्रॉनिक न्यूज में इस क्षेत्र को तकनीकी विकास के लिए नील का पत्थर कहा. और इसी दौरान उन्होंने इस क्षेत्र को "सिलिकॉन वैली, यू.एस.ए." करार दिया.
- 1970 के दशक में यहीं पर अटारी, एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट और ओरेकल की स्थापना हुई.
- 1980 के दशक यहां सिस्को, सन माइक्रोसिस्टम्स और एडोब की स्थापना की गई.
- 1990 के दशक में नेटस्केप, गूगल, याहू, अमेज़ॅन, PayPal और नेटफ्लिक्स की स्थापना सिलिकॉन में की गई.
- 2000 से 2010 के दशक में मेटा, ट्विटर और Uber की स्थापना भी यहीं पर की गई.
सिलिकॉन वैली में बड़ी टेक कंपनियों पर एक नजर
- Apple (AAPL): स्टीव जॉब्स ने इसे साल 1976 में बनाया.
- अल्फाबेट (गूग): इस कंपनी का मुख्यालय सांता क्लारा काउंटी के माउंटेन व्यू में है. इसे गूगलप्लेक्स भी कहा जाता है.
- शेवरॉन (सीवीएक्स): ये कॉन्ट्रा कोस्टा काउंटी में है. शेवरॉन ने 2021 में 155.61 बिलियन की कमाई की थी. इसका मार्केट कैप 332.84 बिलियन है
- मेटा (मेटा): दुनिया के सबसे बड़े सोशल मीडिया नेटवर्क में से एक है. मेटा का मुख्यालय सैन मेटियो काउंटी के मेनलो पार्क में है. कंपनी का मार्केट कैप 510.66 अरब डॉलर और पी/ई रेशियो 13.62 अरब डॉलर है.
- वीजा (V): वीज़ा भुगतान सेवाएं देता है. इसका मुख्यालय सैन फ्रांसिस्को में है. कंपनी ने 2021 में 24.11 बिलियन कमाए. इसका मार्केट कैप 425.98 बिलियन डॉलर है और इसका पी/ई रेशियो 32.59 है.
- वेल्स फार्गो (डब्ल्यूएफसी): इस वित्तीय सेवा कंपनी की स्थापना 1852 में हुई थी. यह सैन फ्रांसिस्को में स्थित है. कंपनी ने 2021 में 78.5 बिलियन कमाए. इसका मार्केट कैप 184.89 अरब डॉलर और पी/ई रेशियो 9.79 अरब डॉलर है.
इतनी मशहूर कैसे हुई सिलिकॉन वैली
बड़ी टेक कंपनियों ने धीरे-धीरे करके सिलिकॉन वैली में ही पंख पसारने शुरू किए. ऐप्पल, मेटा, सिस्को और वीज़ा और शेवरॉन जैसी बड़ी कंपनियों के यहीं पर खोले जाने के बाद ये और मशहूर हुआ. दुनिया के कुछ सबसे अमीर लोगों का घर भी यहीं पर है.
अब सिलिकॉन वैली बैंक के डूबने की कहानी समझिए
रिपोर्ट ये बताती हैं कि ये बैंक 2500 से ज्यादा वेंचर कैपिटल फर्म्स को बैंकिंग सुविधाएं देता था. बैंक की वेबसाइट के मुताबिक मौसम तकनीक और सस्टेनेबिलिटी सेक्टर में इसके 1,550 से ज्यादा प्रमुख ग्राहक थे. अब इसको लेकर एक सवाल ये है कि आखिर ये बैंक इतना बड़ा बैंक कैसे बना और इसके पीछे दिवालिया होने की जड़े कहां से पनपी . क्या सिलिकॉन वैली बैंक के बंद होने से सिलिकॉन वैली में मौजूद टेक कंपनियों पर कोई असर पड़ेगा.
बैंक से निकासी की शुरुआत और दिवालिया होने की कहानी
सिलिकॉन वैली बैंक अमेरिका का 16वां सबसे बड़ा बैंक है. टेक स्टार्टअप्स को उधार देने के लिए इस बैंक का बड़ा नाम रहा है. जिसमें Pinterest Inc, Shopify Inc, और CrowdStrike Holdings Inc जैसी बड़ी कंपनियों ने यहां से उधार लिया है.
पिछले दिनों बैंक में डिपॉजिट कम होने लगे. इसकी वजह थी यूएस में स्टार्टअप्स चला रही ‘फंडिंग विंटर’ स्टार्टअप्स के लिए अपने बचत निकालने की शुरुआत कर दी. इन स्टार्टअप्स कपंनियों ने एक्सटेंडेड पीरियड से निकलने के लिए भी ऐसा किया.
स्टार्टअप्स कपंनियों को ऐसा करने से बैंक की जमा राशि में गिरावट दर्ज की जाने लगी. इस मुसीबत को देखते हुए पिछले दिनों बैंक ने का कि वह शेयर बिक्री से 2.25 बिलियन डॉलर जुटा रहा है और उसने अपने मौजूदा पोर्टफोलियो से 21 बिलियन डॉलर मूल्य की प्रतिभूतियां भी बेची हैं. बैंक ने ये कदम नकदी जुटाने के लिए उठाया.
उसी समय एसवीबी ने अपने बॉन्ड भी बेचने शुरू कर दिए. और यही वो समय था जब पता चला कि एसवीबी बैंक ने अपने पास जमा राशि का बड़ा हिस्सा बॉन्ड में निवेश किया हुआ है. ये बॉन्ड एसवीबी ने तब खरीदा था जब अमेरिका में ब्याज दरें अपेक्षाकृत कम थीं. अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 2022 की शुरुआत से लगातार ब्याज दरों में 450 आधार अंकों की बढ़ोतरी की जिससे इन बांडों का मूल्य तेजी से गिरना शुरू हो गया.
परेशान करने वाली बात ये थी कि एसवीबी की वित्तीय तंगी की खबर के बाद से बैंक से पैसे की निकासी तेज हो गई. जमाराशियों की बड़े पैमाने पर निकासी से वेंचर कैपिटलिस्ट और स्टार्टअप काफी डर गए. इसी के साथ कंपनी के शेयर के दामों में तेजी से गिरावट शुरू हो गई. जिससे बैंक का कारोबार ठप होने लगा.
9 मार्च, 2023 तक बैंक के पास 958 मिलियन डॉलर का नेगेटिव कैश बैलेंस था. 9 मार्च, 2023 से पहले बैंक की वित्तीय स्थिति अच्छी थी, लेकिन इसके बावजूद निवेशकों और जमाकर्ताओं ने 9 मार्च, 2023 को बैंक से 42 बिलियन डॉलर की निकासी शुरू कर दी.इससे बैंक पर उल्टा और गहरा असर पड़ने लगा. इस वजह से टेक इंडस्ट्री में हलचल मच गई.
भारतीय स्टार्ट-अप कंपनियां इससे अछूती नहीं रही. बैंक के दिवालिया होने से कंपनियों को ये चिंता सताने लगी बैंक के डूबने के बाद अपने कर्मचारियों को तनख्वाह कैसे दे पाएंगी. ऐसे समय में उनके लिए तो अपना खर्चा उठाना भी मुश्किल लगने लगा था.
भारतीय स्टार्टअप्स ने सिलिकॉन वैली बैंक में कितना निवेश किया है ये अंदाजा अभी नहीं लग पाया है. इसलिए फिलहाल ये पता लगाना मुश्किल है कि बैंक के बंद हो जाने से भारतीयों पर कितना गहरा असर पड़़ेगा.
बैंक का खत्म होने की कहानी जानिए
बीते शुक्रवार को कैलिफोर्निया डिपार्टमेंट ऑफ प्रोटेक्शन एंड इनोवेशन विभाग (FDIC )ने सिलिकॉन वैली बैंक को बंद करने का फैसला लिया. इस सिलसिले में FDIC ने ये ऐलान किया था कि जमाकर्ताओं की अपनी बीमाकृत जमा राशि अगले कुछ दिनों में दे दी जाएगी.
FDIC ने अपने बयान में कहा था कि , ‘सोमवार सुबह 13 मार्च, 2023 तक सभी इंश्योर्ड डिपॉजिटर्स को उनकी बीमित राशि मिल जाएगी. FDIC ने ये भी बताया था कि सभी बीमित जमाकर्ताओं की सुरक्षा के लिए डिपॉजिट इंश्योरेंस नेशनल बैंक ऑफ सांता क्लारा यानी DINB बनाया गया है जो ऐसे मौकों पर जरूरी कदम उठाता है. FDIC के नए नियमों के मुताबिक, जमाकर्ता 250,000 डॉलर तक की जमा राशि का बीमा कर सकते है.
ये भी बताया गया कि बीटीएफपी के लिए बैकस्टॉप की तर्ज पर एक्सचेंज स्टेबिलाइजेशन फंड से 25 बिलियन डॉलर उपलब्ध कराया जाएगा. इसके लिए अमेरिकी ट्रेजरी सचिव की मंजूरी ले ली गई है. बता दें कि स्टेबिलाइजेशन फंड एक इमरजेंसी रिजर्व है जिसका इस्तेमाल अलग-अलग वित्तीय क्षेत्रों में अस्थिरता को कम करने के लिए किया जा सकता है.
ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन, फेडरल रिजर्व बोर्ड के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल और फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (FDIC) के अध्यक्ष मार्टिन ग्रुएनबर्ग ने अपने एक संयुक्त बयान में कहा था कि ‘सिलिकॉन वैली बैंक, सांता क्लारा, कैलिफॉर्निया की समस्या से निपटने के लिए एफडीआईसी और फेडरल रिजर्व के बोर्डों से एक सिफारिश की गई थी जिसे उसे मंजूरी मिल गई है.
वहीं, ट्रेजरी सचिव, फेडरल रिजर्व बोर्ड के अध्यक्ष और एफडीआईसी के अध्यक्ष के एक बयान के मुताबिक जमाकर्ताओं को सिर्फ अपनी बीमा राशि ही नहीं बल्कि उनकी सभी जमा राशि पहुंचाई जाएगी.
बता दें कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन ने भी बैंकिंग संकट के पीछे जुड़े लोगों को ‘पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी लेने और जवाबदेह ’ ठहराने का वादा किया है. बिडेन अपने एक भाषण में कहा था कि, ‘वे विश्वास कर सकते हैं कि अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली अभी भी सुरक्षित है. बैंकिंग प्रणाली के सुरक्षित होने से मतलब ये है कि आपकी जमा राशि पूरी तरह से महफूज है. आपको जब भी उसकी जरूरत होगी वह आपके पास पहुंचा दी जाएगी.
इस बीच, एचएसबीसी होल्डिंग्स ने सोमवार को ऐलान किया था कि एचएसबीसी यूके बैंक एसवीबी की यूके शाखा, सिलिकॉन वैली बैंक यूके लिमिटेड का अधिग्रहण सिर्फ एक पाउंड में कर रही है.
भारतीय स्टार्टअप के इस बैंक को चुनने की वजह समझिए
स्टार्ट-अप हार्वेस्टिंग फार्मर नेटवर्क के हेड रुचिर गर्ग ने बीबीसी से बातचीत में कहा है कि इस बैंक से जुड़े भारतीय स्टार्ट-अप्स की संख्या ज्यादा से ज्यादा 20-25 होगी. यहां पर एक सवाल ये भी उठता है कि किसी भारतीय स्टार्ट-अप को अमेरिका के बैंक में अकाउंट खुलवाने की जरूरत क्यों पड़ी. इसे आप ऐसे समझिए कि भारत में बहुत सारे स्टार्ट-अप्स को भारत से बाहर, जैसे जापान, सिंगापुर, अमेरिका या दूसरे देशों से फंडिग आती है. ऐसे में जब उनके निवेशक का अकाउंट भी एसवीबी में ही है तो उनके लिए बेहतर होता है कि वो भी इसी बैंक में अकाउंट खोलें.
रुचिर गर्ग ने बीबीसी को बताया कि बढ़ती हुई 50-60 बड़ी स्टार्ट-अप कंपनियों के अकाउंट इसी बैंक में हैं. वहीं अगर आपका बिजनेस अमेरिका में है तो आपको अमेरिका का लाइसेंस लेना होगा, आपको वहीं पर बैंक अकाउंट खुलवाना होगा.
जानकारों का कहना है कि, एसवीबी एक बैंक होने के साथ-साथ वेल्थ मैनेजर, फाइनेंशियल एडवाइजर, और एक नेटवर्कर भी था और ये स्टार्ट-अप्स का चहेता बैंक है. ये बैंक बैंकिंग के अलावा बैंक स्टार्ट-अप्स में भी इन्वेस्ट करता था. सिलिकॉन वैली बैंक उन्हें लोन भी देता था.
इस बैंक को स्टार्ट-अप और बिजनेस फ्रेंडली" बैंक भी माना जाता था. जिसमें आप भारत में बैठ कर सिर्फ पासपोर्ट की मदद से अकाउंट खुलवा सकते थे. साल 2014-15 से इस बैंक के ग्राहक रहे विनायक शर्मा ने बीबीसी को बताया था कि "हमारा बैंक के साथ शानदार अनुभव रहा है. छोटी से लेकर बड़ी बात तक के लिए बैंक ने हमारा साथ दिया था. आपको बैंक में कोई मिनिमम बैलेंस नहीं रखना है. बैंक जरूरी और बुनियादी गाइडेंस देता था.
बता दें कि इस बैंक में नॉर्थ अमेरिका, कैनेडा, यूरोप, कुवैत, और एशिया पेशिफिक जैसे देशों की कम से कम 43 से भी ज्यादा बड़ी स्टार्ट-अप कपंनियों ने अपना पैसा लगाया था .
दिवालिया हुए बैंक का बिजनेस समझिए
ब्लूमबर्ग न्यूज के मुताबिक एसवीबी का आधा बिजनेस यूएस वेंचर कैपिटल के इंवेस्ट वाली स्टार्टअप कंपनियों के साथ है. इसका 44 फीसदी बिजनस यूएस वेंचर के निवेश वाली टेक्नोलॉजी और हेल्थकेयर कंपनियों के साथ है.
आगे का रास्ता क्या है
इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्नॉलजी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने एसवीबी के टूटने के बाद एक ट्वीट में कहा था कि इस संकट से भारतीय स्टार्ट-अप्स को सबक लेने की जरूरत है कि वो भारतीय बैंकिंग सिस्टम पर भरोसा करें.
लेकिन स्टार्ट अप फाउंडर्स की मानें तो ये इतना भी आसान नहीं है. ये इसलिए क्योंकि स्टार्ट-अप फंडिंग करने वाली वेंचर कैपिटल कंपनियां ज्यादातर भारत से बाहर हैं. ऐसे में बाहर की कंपनियों की स्थितियों का ध्यान में रखना ही पड़ता है. कई बड़े स्टार्ट-अप के संस्थापक ये भी मानते हैं कि भारतीय कंपनियां एक से ज्यादा अकाउंट में पैसे रखें जमाकर्ताओं के पूरे पैसे वापस होने के ऐलान से फिलहाल परेशानी टल गयी है. इसी के साथ स्टार्ट-अप्स ने अभी बड़े बैंकों के साथ अकाउंट खोलने की शुरूआत कर दी है. लेकिन कंपनियों के लिए ये जख्म गहरा है जिसे भरने में सालों का वक्त लगेगा. इस घटना से संस्थापक, निवेशक और बोर्ड अपने कदम फूंक-फूंक कर रखेगें.