व्हाट्सएप ने केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों को हाईकोर्ट में दी चुनौती, कहा- नई गाइडलाइंस से यूजर्स के निजी हितों का होगा हनन
सरकार ने फरवरी सोशल मीडिया को लेकर नई गाइडलाइंस जारी की थी. इन गाइडलाइंस को लागू करने के लिए कंपनियों को तीन महीने का वक्त मिला था. लेकिन तीन महीने गुजर जाने के बाद फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर ने इसे लागू नहीं किया है. व्हाट्सएप ने कोर्ट में याचिका पेश करते हुए कहा है कि केंद्र सरकार की यह दिशानिर्देश व्हाट्सएप इस्तेमाल करने वाले लोगों की निजता का हनन है.
सरकार के नए दिशा निर्देशों को लेकर सोशल मीडिया कंपनियां और सरकार के बीच चल रहा गतिरोध अब दिल्ली हाईकोर्ट तक पहुंच गया है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर केंद्र सरकार के 25 फरवरी को जारी किए गए दिशा-निर्देशों को यह कहते हुए चुनौती दी है कि केंद्र सरकार की यह दिशानिर्देश व्हाट्सएप इस्तेमाल करने वाले लोगों की निजता का हनन है. ऐसे में सोशल मीडिया कंपनियों को बाध्य नहीं किया जाना चाहिए इन दिशा निर्देशों के पालन के लिए.
सामने आ रही जानकारी के मुताबिक दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की गई यात्रा में व्हाट्सएप की तरफ से कहा गया है कि सरकार के नए दिशा निर्देशों में चैट को ट्रेस करने की बात कही गई है. एक तरह से यह उसी तरह से है जैसे हमसे हमारे उपभोक्ताओं के फिंगरप्रिंट की जानकारी मांगी जा रही हो. ये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को तोड़ देगा और लोगों के निजता के अधिकार को मौलिक रूप से कमजोर कर देगा.
व्हाट्सएप कि तरफ से कहा गया है कि हम इस मामले पर सिविल सोसाइटी के साथ में है जो दुनिया भर में व्हाट्सएप इस्तेमाल करने वाले लोगों की निजता की बात करता है. इस बीच व्हाट्सएप की तरफ से जो जानकारी सामने आ रही है उसमें यह भी कहा जा रहा है कि व्हाट्सएप लोगों के हितों को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से व्यावहारिक समाधानों पर भारत सरकार के साथ बातचीत भी जारी रखेगा.
व्हाट्सएप ने कहा नहीं बचा था कोई और विकल्प
व्हाट्सएप ने कहा है कि तरफ से अपने पक्ष में दलील देते हुए लगातार कहा जा रहा है कि जब 2019 की शुरुआत में पहली बार "ट्रेसेबिलिटी" की बात की गई थी तो दर्जनों संगठनों ने भारत सरकार को लिखा था कि इस तरह के प्रावधान से भारतीय उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता का उल्लंघन होगा. इस साल की शुरुआत में जारी किए गए आईटी नियम के पालन न करने पर कार्रवाई की बात की गई है. ऐसे में हमारे पास अदालत का रास्ता खटखटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.
इससे पहले इसी साल 25 फरवरी को केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए निर्देश में कहा गया था कि इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को भारत में अपना ऑफिसर और कॉंटेक्स ऐड्रेस देना होगा, इसके साथ ही कंपलायंस अधिकारी की नियुक्ति करने के साथ ही शिकायत समाधान, आपत्तिजनक कंटेट की निगरानी, कंप्लायंस रिपोर्ट और आपत्तिजनक सामग्री को हटाना होगा. अभी तक इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी ऐक्ट की धारा 79 के तहत इन सोशल मीडिया कंपनियों को इंटरमीडियरी के नाते किसी भी तरह की जवाबदेही से छूट मिली हुई थी. जिसका मतलब यह था कि इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अगर कोई आपत्तिजनक जानकारी भी आती थी तब भी यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उसकी जिम्मेदारी लेने से बच सकते थे और इनके खिलाफ कोई कार्रवाई की नहीं हो सकती थी. लेकिन सरकार द्वारा जारी किए गए दिशा- निर्देशों से साफ है कि अगर ये कंपनियां इन नियमों का पालन नहीं करती हैं तो उनका इंटरमीडियरी स्टेटस छिन सकता है और वे भारत के मौजूदा कानूनों के तहत आपराधिक कार्रवाई के दायरे में आ सकती हैं.