Mothers Day 2020: जानिए ‘मदर्स डे’ मनाने के पीछे की रोचक वजह, अपनी मां को भेजिए ये खास संदेश
मदर्स-डे मनाने के पीछे एक रोचक कहानी है. एक महिला ने अपनी मां के कहने पर इस दिन के लिए आंदोलन तक किया. जानिए कैसे हुई मदर्स-डे की शुरूआत और साथ ही अपनी मां को भेजिए ये खास शुभकामना संदेश
दुनिया भर के अलग-अलग देशों में मई के दूसरे रविवार को मदर्स-डे मनाया जाता है. इस बार 10 मई को मदर्स-डे मनाया जा रहा है. मदर्स-डे मनाने के पीछे रोचक वजह हैं. वह वजह तो हम आपको बताएंगे ही साथ ही आपको कुछ ऐसे मैसेज भी बताएँगे जिन्हें आप अपनी माँ को भेजकर उन्हें ख़ास होने का अहसास करा सकते हैं.
जानिए क्यों मनाया जाता है मदर्स-डे
दरअसल दुनिया भर में मदर्स-डे मनाने का मक़सद एक ही है कि पूरे विश्व की माताओं को उनके प्यार, ममता और त्याग के लिए शुक्रिया कहा जाए. मदर्स-डे मनाने की शुरूआत अमेरिका से हुई थी. अमेरिका में एना जार्विस ने अपनी माँ को शुक्रिया कहने के लिए इस दिन की शुरूआत की थी. दरअसल एना की माँ ने कहा था कि माँ के लिए भी एक दिन छुट्टी होनी चाहिए.
उन्होंने इस मदर्स-डे मनाने और छुट्टी के लिए आंदोलन भी किया. हालाँकि मदर्स-डे के बाज़ारीकरण से काफ़ी नाराज़ रहीं. अमेरिका में राष्ट्रपति वूड्रो विल्सन ने 9 मई 1914 को क़ानून पारित किया. इस क़ानून के मुताबिक़ मई के दूसरे रविवार को मदर्स-डे मनाया जाएगा. इसके बाद से अमेरिका के अलावा दुनिया भर के अलग-अलग देशों में इसे मनाया जाने लगा.
माँ को भेजिए ये खास संदेश
- चलती फिरती हुई आँखों से अज़ां देखी है मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है. मुनव्वर राना
- शर्त लगी थी जब पूरी दुनिया को एक ही शब्द में लिखने की, तो वो पूरी किताबें ढूंढ रहे थे और मैंने 'मां' लिख दिया. - अज्ञात
- रुके तो चांद जैसी है, चले तो हवाओं जैसी है. वह माँ ही है, जो धूप में भी छाँव जैसी है. - अज्ञात
- मुद्दतों बाद मयस्सर हुआ माँ का आँचल मुद्दतों बाद हमें नींद सुहानी आई - इक़बाल अशहर
- लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती, बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती. - मुनव्वर राना
- जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है मां दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है. - मुनव्वर राना
- मुझे मालूम है मां की दुआएं साथ चलती हैं, सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते मैंने देखा है -आलोक श्रीवास्तव
- इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है -मुनव्वर राना
- भारी बोझ पहाड़ सा कुछ हल्का हो जाए जब मेरी चिंता बढ़े माँ सपने में आए. -अख़्तर नज़्मी
- स्याही खत्म हो गयी “माँ” लिखते-लिखते, उसके प्यार की दास्तान इतनी लंबी थी- अज्ञात