(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
भारतीय ट्रेन में किस तरह के टॉयलेट का होता है इस्तेमाल? कहां जाती है यात्रियों की पॉटी? जानें
क्या आप भी ट्रेन से सफर करते हैं. अगर आपका जवाब हां है तो फिर आपने ट्रेन का टॉयलेट भी जरूर इस्तेमाल किया होगा. क्या आपको मालूम है कि ट्रेन के टॉयलेट का वेस्ट आखिर जाता कहां है? आइए जानते हैं...
भारतीय रेलवे को अगर देश की लाइफलाइन कहा जाए, तो गलत नहीं होना चाहिए. देश का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा होगा, जहां से रेलवे लाइन न गुजरती हो. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आपको पटरियों पर रेल दौड़ती हुई नजर आ जाएगी. आज भी देश का आम आदमी अपने सफर के लिए रेलगाड़ी ही इस्तेमाल करता है. भारतीय रेलवे की ट्रेन में कुछ ऐसी सुविधाएं होती हैं, जो बाकी के अन्य सार्वजनिक परिवहन में आपको देखने को नहीं मिलेंगी.
ट्रेन में जिस सुविधा को सबसे अहम माना जाता है, वह है वॉशरूम. लंबी दूरी तक सफर करने के दौरान यात्रियों के आगे सबसे बड़ी समस्या वॉशरूम की होती है. अगर कोई बस से सफर करता है, तो उसे वॉशरूम के लिए किसी होटल या फिर किसी खुली जगह का इंतजार करना पड़ता है. मगर ट्रेन के साथ ऐसा नहीं है, ट्रेन में लगे वॉशरूम में कोई भी व्यक्ति इमरजेंसी के हालात में जाकर उसे यूज कर सकता है. इसने लोगों की एक बड़ी समस्या को हल किया है.
ट्रेन में पहले मल-मूत्र कहां जाता था?
हालांकि, पहले ट्रेन के वॉशरूम के नीचे के चैम्बर ओपन होते थे. यानी वॉशरूम में जिस टॉयलेट सीट को लगाया गया होता था, उसका कमोड ओपन होता था. अगर कोई पेशाब या पॉटी करे, तो वह सीधे पटरियों पर गिरती थी. लोगों को ये भी हिदायत दी गई थी कि हमेशा चलती ट्रेन में ही टॉयलेट जाएं, ताकि मल-मूत्र पटरियों पर बिखर जाए. इसकी वजह से स्टेशन तो साफ रहने लगे, मगर पटरियां गंदी रहने लगीं.
सरकार ने लोगों को कहा भी था कि वह हमेशा वॉशरूम का इस्तेमाल तभी करें, जब वह चल रही हो. मगर लोगों ने सरकार की एक न सुनी और वह ट्रेन के खड़े होने पर ही उसे यूज करने लगे. इस वजह से कुछ स्टेशन साफ रहते, तो कुछ गंदे. इसके बाद सरकार ने ओपन डिस्चार्ज सिस्टम कहे जाने वाले इस सिस्टम को ही बैन कर दिया. अब ऐसे में सवाल उठता है कि अब ट्रेन के वॉशरूम कैसे होते हैं?
ट्रेन के वॉशरूम अब कैसे हैं?
दरअसल, अब भारतीय रेलवे के जरिए संचालित होने वाली सभी ट्रेनों में बायो टॉयलेट लगाए गए हैं. इन्हें डीआरडीओ ने तैयार किया है और उसकी मदद से ही इन्हें ट्रेनों में इंस्टॉल किया गया है. जब कोई यात्री इस टॉयलेट का इस्तेमाल करता है, तो उसका मल-मूत्र एक चैम्बर में पहुंच जाता है, जहां मौजूद बैक्टीरिया अपना सबसे प्रमुख काम करते हैं. वह मल-मूत्र को पानी में बदल देते हैं, जबकि इसके सॉलिड हिस्से को एक अलग चैम्बर में पहुंचा दिया जाता है. सॉलिड वेस्ट को तो रेलवे डंप कर देती है. मगर जो पानी होता है, उसका दोबारा से यूज किया जाता है.
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