अलग-अलग देशों की अपनी अलग-अलग मान्यताएं, परंपराएं और प्रथाएं होती हैं. उनका रहन-सहन और जीवन जीने का तरीका भी बाकी देशों से काफी अलग होता है. कई देशों में तो अंतिम संस्कार के नियमों में भी भिन्नताएं देखी जाती हैं. आमतौर पर जब भी किसी व्यक्ति की मौत होती है तो या तो उसे अग्नि के हवाले किया जाता है या दफनाया जाता है. हालांकि एक देश ऐसा भी है, जहां के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोग मरने वाले लोगों का अंतिम संस्कार नहीं करते. जी हां आप सही सुन रहे हैं. यहां के लोग अंतिम संस्कार करने के बजाय अपनों की डेड बॉडी को ममी बनाकर सुरक्षित रखते हैं.
यह देश कोई और नहीं बल्कि इंडोनेशिया (Indonesia) है. इंडोनेशिया के पहाड़ी इलाके में रहने वाले तोराजा जनजाति (Toraja Tribe) के लोग यह काम करते हैं. वह अपनों की डेड बॉडी का ख्याल ऐसे रखते हैं, जैसे कि वह जिंदा हों. इस जनजाति के लोगों का मानना है कि जब किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उसकी आत्मा घर में ही रहती है. यही वजह है कि वे डेड बॉडी को वो हर चीज देते हैं, जो जीवित रहने पर वह इस्तेमाल करते थे, जैसे- कपड़े, खाना, पानी, सिगरेट आदि.
क्या शव सड़ता नहीं?
अब आपके दिमाग में यह सवाल आ रहा होगा कि डेड बॉडी तो वक्त के साथ सड़ने और गलने लगती है तो इसे सड़ने से बचाया कैसे जाता होगा. दरअसल डेड बॉडी को सड़ने से बचाने के लिए यहां के लोग उनकी त्वचा पर फॉर्मेल्डिहाइड और पानी की कोटिंग लगाते हैं. हालांकि जहां तक सवाल मृत शरीर से बदबू आने का है, तो इसका भी जुगाड़ उन्होंने खोज रखा है. बदबू न आए, इसके लिए यहां के लोग मृत शरीर के पास सूखे पौधे रखते हैं.
डेड बॉडी का रखते हैं ख्याल
तोराजा जनजाति के लोगों को बहुत छोटी उम्र से ही डेथ को फेस करने के लिए तैयार कर दिया जाता है. घर के लोग डेड बॉडी को रोजाना खाना खिलाते हैं और उन्हें घर के एक कमरे में तब तक सुरक्षित रखते हैं, जब तक अंतिम संस्कार के लिए उनके पास पैसे इकट्ठे न हो जाएं. जब अंतिम संस्कार का वक्त आता है तो लोग डेड बॉडी को पत्थर की कब्र में दफनाते हैं. हालांकि ऐसा नहीं है कि वह दफनाकर अपनों को भूल जाते हैं. वह Ma’nene नाम के एक अनुष्ठान के लिए कुछ समय के बाद डेड बॉडी को कब्र से बाहर निकालते हैं और उसे अच्छे से साफ करते हैं. मृत शरीर को धोकर उसे साफ कपड़े पहनाए जाते हैं और कुछ देर के लिए धूप में सूखने के लिए रखा जाता है.
शव के साथ लेते हैं सेल्फी
यह सब करके सभी रिश्तेदारों और जानने वालों को बुलाया जाता है और दावत रखी जाती है. युवा लोग अपने पूर्वजों से मिलते हैं और उनकी डेड बॉडी के साथ सेल्फी लेते हैं. जब अनुष्ठान पूरा हो जाता है तो शव को वापस ताबूत में रख दिया जाता है. अनुष्ठान की यह प्रथा यहां सदियों से चली आ रही है.
क्या है मान्यता?
दरअसल ऐसा कहा जाता है कि पोंग रुमासेक नामक एक शिकारी तोराजा की इन पहाड़ियों पर भ्रमण किया करता था. एक दिन उसे एक पेड़ के नीचे किसी की लाश पड़ी हुई मिली. उसने लाश की हड्डियों को अपने पास मौजूद कपड़े में रखा और उसे जमीन में दफना दिया. माना जाता है कि ऐसा करने के बाद उस शिकारी को जीवन भर भाग्यशाली और धनवान रहने का आशीर्वाद मिला. तोराजा जनजाति के लोग यह मानते हैं कि अगर वे अपने पूर्वजों का ख्याल रखेंगे और उनकी देखभाल करेंगे तो उन्हें भी आशीर्वाद मिलेगा.
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