Trending News: आज दुनिया अंतरिक्ष तक पहुंच चुकी है, जहां जाना इंसानों के लिए नामुमकिन सा था, आज वहां पर नासा और इसरो जैसी कई एजेसियां रॉकेट के साथ फर्राटे भर रही है और अंतरिक्ष यात्री वहां का अनुभव कर रहे हैं. भारत की अतरिक्ष एजेंसी भी इसमें किसी से पीछे नहीं है. अपने यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने से पहले अब इसरो ने Habitate One जैसा एक प्रयोग किया है जिसमें अंतरिक्ष में जाने से पहले ही यात्रियों को अंतरिक्ष का अनुभव करा दिया जाता है. क्या है Habitate One और क्यों हो रही है इसकी चर्चा आइए जानते हैं.


क्या है हैबिटेट-1


भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो "हैबिटेट-1 बना रही है जिसे हैब-1" भी कहा जाता है.  जो इसरो का पहला "एनालॉग मिशन" है, जिसमें अंतरिक्ष यात्रियों को वास्तविक अंतरिक्ष मिशन पर जाने से पहले तैयार करने के लिए अंतरिक्ष में हालात कैसे होंगे इसके लिए तैयार किया जाता है और वहां पूरी जानकारी दी जाती है.  वैज्ञानिकों ने हाल ही में भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में तीन सप्ताह तक इसका अनुभव किया और परखा कि क्या यह सच में काम आने वाली चीज है. दरअसल, अंतरिक्ष में जाने से पहले ही यात्रियों को अंतरिक्ष के हालातों से रूबरू कराने का यह अनोखा तरीका इसरो ने आजमाया है.


वह सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं


मीडिया से बात करते हुए गुजरात स्थित फर्म आका की अंतरिक्ष आर्किटेक्ट आस्था काचा-झाला ने कहा कि इस सिमुलेशन से अंतरिक्ष मिशन से पहले उपकरणों और अंतरिक्ष यात्रियों के सामने आने वाली समस्याओं की पहचान करने और उनका समाधान करने में मदद मिलती है. हैबिटेट-1 का निर्माण अंतरिक्ष-ग्रेड टेफ्लॉन का उपयोग करके किया गया है और इसे इंडस्ट्रियल यूज वाले फोम से इंसुलेट किया गया है. इसमें एक बिस्तर के साथ-साथ एक स्टोववे ट्रे भी है जिसे कोई व्यक्ति बाहर निकाल कर वर्कस्टेशन की तरह इस्तेमाल कर सकता है. इमरजेंसी किट, आपूर्ति, टॉयलेट और खाना गर्म करने के लिए एक रसोईघर रखने के लिए स्टोर रूम भी दिया गया है.


यह भी पढ़ें: खुद को पिशाचनी बताती है ये महिला, खून पीने की जगह पति के साथ करती है ये हरकत


लद्दाख ही क्यों चुना?


लद्दाख यूनिवर्सिटी में रिसर्च के डीन प्रो. सुब्रत शर्मा ने कहा, "एक बार जब हमारे पास अपना सिमुलेशन मिशन होगा, तो हमें अपने अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने के लिए विदेशी अंतरिक्ष एजेंसियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा." इस परियोजना पर विश्वविद्यालय ने इसरो के साथ सहयोग किया है. बीबीसी से बात करते हुए प्रो. शर्मा ने कहा कि यह प्रयोग लद्दाख में इसलिए किया जा रहा है क्योंकि "भौगोलिक दृष्टिकोण से, इसके चट्टानी, बंजर जमीन और मिट्टी में मंगल ग्रह और चंद्रमा के कुछ हिस्सों में पाए जाने वाले पदार्थों और चट्टानों के साथ समानताएं हैं, जो इसे अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए कारगर बनाती हैं".


यह भी पढ़ें: बीच समंदर ब्रेस्ट मिल्क निकालकर साथियों को ऑफर करने लगी महिला, वीडियो वायरल