महिलाओं के कपड़े पहनकर गरबा खेलने बाहर निकलते हैं मर्द, गुजरात की 200 साल पुरानी है ये परंपरा
Men Performs Garba Dress Up As Women: समान्य तौर पर नवरात्रि में पुरुष महिलाएं आपको गरबा खेलते हुए दिख जाएंगे हैं. लेकिन गुजरात में एक ऐसी जगह भी है. जहां पुरुष साड़ी पहनकर गरबा खेलते हैं.
Men Performs Garba Dress Up As Women: आज यानी 3 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र की शुरूआत हो चुकी है. देशभर नवरात्रि का त्योहार पर धूमधाम और हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है. देश के करोड़ों लोग अगले 9 दिनों तक माता की भक्ति लीन नजर आएंगे. अलग-अलग जगह पर माता के लिए पंडाल सजे हुए दिखेंगे. जहां श्रद्धालुओं की भी खूब भीड़ नजर आएगी. भारत में अलग-अलग जगहों पर नवरात्रि को अलग-अलग तरीके से सेलिब्रेट किया जाता है.
तो वहीं गुजरात में नवरात्रि पर सभी लोग खूब गरबा खेलते हैं. और अब सिर्फ गुजरात में ही नहीं बल्कि देश के कई अलग-अलग शहरों में भी. नवरात्रि पर गरबा खेला जाता है. समान्य तौर पर पुरुष महिलाएं एक साथ गरबा खेलते हैं. या फिर महिलाएं महिलाओं के साथ या पुरुष दूसरे पुरुष के साथ लेकिन गुजरात में एक ऐसी जगह भी है. जहां पुरुष गरबा खेलते हैं लेकिन महिलाओं का भेष बनाकर.
महिलाओं की तरह साड़ी पहनकर पुरुष खेलते हैं गरबा
आपने नवरात्रि के अवसर पर महिलाओं को तो खूब गरबा खेलते हुए देखा होगा. तो उनके साथ ही पुरुष भी गरबा खेलते नजर आते हैं. लेकिन कभी अपने पुरुषों को महिलाओं की तरह साड़ी ब्लाउज पहनकर गरबा खेलते हुए देखा है. नहीं देखा होगा तो गुजरात के शाहपुर इलाके में अगर आप जाएंगे तो आपको यह नजारा देखने को मिलेगा.
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गुजरात की राजधानी अहमदाबाद के शाहपुर इलाके में साधु माता गली और अंबा माता मंदिर में नवरात्रि के दौरान पुरुष साड़ी पहनकर गरबा खेलते हैं. नवरात्रि के आठवें दिन इलाके के सभी पुरुष महिलाओं की तरह सज धज कर साड़ी पहनकर गरबा खेलने के लिए आते हैं. इन्हें देखने के लिए काफी दूर से लोग भी आते हैं.
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200 साल पुरानी है परंपरा
गुजरात के अहमदाबाद में नवरात्रि के दौरान शाहपुर इलाके में बड़ौत समुदाय के पुरुष साड़ी पहनकर गरबा खेलते हैं. जानकार बताते हैं कि इस इलाके में यह परंपरा करीब 200 सालों से चली आ रही है. इसके पीछे कहानी बताई जाती है कि बड़ौत समुदाय के पुरुषों को सादुबा नाम की महिला ने श्राप दिया था.
इस श्राप से बचने के लिए ही वह नवरात्रि के दौरान साड़ी पहन कर गरबा खेलते हैं. इसे शेरी गरबा कहा जाता है. और यह नवरात्रि के आठवें दिन ही किया जाता है. इस समुदाय से जुड़े लोगों का मानना है. ऐसा करने से उनके समुदाय पर कोई समस्या, कोई विपत्ति नहीं आती.
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