Who Is Samia Zehra: जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी नए रिकॉर्ड को छू रही है. रोजगार ऑफिस में तकरीबन 3.5 लाख से अधिक लोग पंजीकृत हैं. वहीं, दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले की एक लड़की ने बेरोजगारी से निकलने का रास्ता ढूढ़ लिया है. विभिन्न सरकारी योजनाओं का उपयोग करते हुए, यह युवती अपने मधुमक्खी पालन उद्यम के साथ एक सफल व्यवसायी के रूप में उभर रही हैं.
पुलवामा जिले की सीमा पर स्थित बलहामा क्षेत्र की 25 वर्षीय सानिया जेहरा से मिलिए... जिन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने और कुछ समय तक काम करने के बाद चार साल पहले पारिवारिक व्यवसाय में कदम रखा. एक प्रशिक्षित फिजियोथेरेपिस्ट ने पारिवारिक व्यवसाय में शामिल होकर पंपोर के केसर के खेतों में शहद की खेती की. सानिया ने चार साल पहले 35 मधुमक्खी कालोनियों के साथ एक छोटी सी शुरुआत की, लेकिन उनके पास 650 मधुमक्खी कालोनियां हैं, जो हर मौसम में औसतन 600 किलोग्राम गुणवत्ता वाला शहद पैदा करती हैं.
'मधुमक्खी कालोनियां हर साल 8 बार प्रवास करती हैं...'
बताते चलें कि मधुमक्खी कालोनियां हर साल 8 बार प्रवास करती हैं और अलग-अलग स्वाद और बनावट का शहद देती हैं. सर्दियों के मौसम के करीब आने के साथ ही कॉलोनियां जम्मू, राजस्थान और फिर पंजाब के मैदानी इलाकों में चली जाएगी. जहां अकेशिया शहद का उत्पादन किया जाएगा, वसंत की शुरुआत में अजवाइन शहद प्राप्त करने के लिए जंगलों में ले जाया जाएगा. फिर कश्मीर के सोनमर्ग और फिर मल्टी फ्लेवर शहद प्राप्त करने के लिए पुलवामा के केसर के खेतों में वापस लाया जाएगा.
'बाजार के बारे में अनिश्चितता थी और अब...'
इस बाबत सानिया कहती हैं कि जब उन्होंने सरकारी योजनाओं की मदद से अपना मधुमक्खी पालन व्यवसाय शुरू किया था, तो उन्हें बाजार के बारे में अनिश्चितता थी और अब वे प्राकृतिक शहद की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपने व्यवसाय का विस्तार कर रही हैं.
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'सानिया के लिए मधुमक्खी पालन एक पारिवारिक व्यवसाय'
सानिया के लिए मधुमक्खी पालन एक पारिवारिक व्यवसाय है. उन्होंने निजी नौकरी में भी किस्मत आजमाने के बाद अपने दादा और पिता के नक्शेकदम पर चलने का मन बना लिया है, लेकिन 2000 में उनके जीवन ने एक नया मोड़ लिया जब उन्होंने सरकार की HADP योजना के लिए आवेदन किया और अपना खुद का मधुमक्खी पालन व्यवसाय शुरू किया.
'मैंने समाज की सभी चुनौतियों को स्वीकार किया'
उन्होंने कहा कि मैंने समाज की सभी चुनौतियों को स्वीकार किया, जहां महिलाओं के लिए व्यवसाय करने की कोई गुंजाइश नहीं है. हालांकि मधुमक्खी पालन एक आसान काम नहीं है, क्योंकि इसके लिए ईमानदारी और समर्पण की आवश्यकता होती है.
' मैं नौकरी चाहने वाले से नौकरी देने वाले में बदल गई हूं.'
सानिया वर्तमान में पुलवामा जिले के लेथपोरा क्षेत्र में विशाल केसर के खेतों में अपना व्यवसाय चला रही हैं, क्योंकि यहां मधुमक्खियों के लिए रस आसानी से उपलब्ध है. सानिया का दावा है कि वह 8 लाख रुपये प्रति माह कमाती हैं और उन्होंने 4 स्थायी और 20 मौसमी कर्मचारियों को रोजगार दिया है. सानिया कहती हैं कि मैं नौकरी चाहने वाले से नौकरी देने वाले में बदल गई हूं.
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'पुरुष प्रधान क्षेत्र में कदम रखने वाली पहली महिला'
सानिया को शुरुआती बाधाओं ने उनके दृढ़ संकल्प को प्रभावित नहीं किया और उन्होंने कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद अपना मधुमक्खी पालन व्यवसाय जारी रखा. शहद का कारोबार कश्मीर के लिए नया नहीं है. सानिया शहद के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सरकारी योजनाओं की एकमात्र लाभार्थी नहीं हैं, बल्कि निश्चित रूप से इस पुरुष प्रधान क्षेत्र में कदम रखने वाली पहली महिला हैं.
'मधुमक्खी पालन को विकसित करने के लिए एक विशेष परियोजना'
कश्मीर के कृषि विभाग के निदेशक चौधरी मोहम्मद इकबाल का मानना है कि जम्मू-कश्मीर में मधुमक्खी पालन को क्षेत्र में एक संपन्न कृषि कुटीर उद्योग के रूप में विकसित करने और किसानों के लिए अतिरिक्त आय प्रदान करने की महत्वपूर्ण क्षमता है. इकबाल कहते हैं कि समग्र कृषि विकास कार्यक्रम (एचएडीपी) के माध्यम से, हम मधुमक्खी पालन को विकसित करने के लिए एक विशेष परियोजना को लागू कर रहे हैं. सरकार मधुमक्खी पालकों को वित्तीय सहायता, तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण सहित व्यापक सहायता प्रदान कर रही है.
'एक बड़ा हिस्सा विभिन्न राज्यों और देशों को निर्यात किया जाता है'
जैसे-जैसे अधिक शिक्षित युवा इस क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं, वे नई ऊर्जा और विचार लेकर आ रहे हैं, जिससे उद्योग की पहुंच और क्षमता का विस्तार हो रहा है. कृषि विभाग कश्मीर के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, जम्मू और कश्मीर में सालाना 22,000 क्विंटल (22 लाख किलोग्राम) शहद का उत्पादन होता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा विभिन्न राज्यों और देशों को निर्यात किया जाता है. मोंगाबे इंडिया द्वारा प्राप्त दस्तावेज़ से पता चलता है कि जम्मू और कश्मीर में लगभग 110,000 मधुमक्खी कॉलोनियाँ हैं, जिनमें 200,000 कॉलोनियां होने की संभावना है.
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