Trending Story: सब जानते हैं कि दुनिया बहुत बड़ी है और गोल भी. इसीलिए कहा जाता है कि जाओगे कहां, घूम फिर कर यही वापस आना है. दुनिया में जब हम जन्म लेते हैं तो हमारे साथ कई नए रिश्ते भी जन्म लेते हैं. खून के रिश्ते ऐसे होते हैं जिन्हें भूल कर भी भूला नहीं जा सकता है.
ऐसी ही एक रोचक कहानी है कैस्पर और डाएन की जो बचपन में ही अपने परिवार के निजी कारणों की वजह से एक दूसरे से बिछड़ गए थे. बात 1970 दशक की है. कोयम्बटूर (Coimbatore) में रहने वाले पति-पत्नी, अयावु और सरस्वती के दो छोटे बच्चे थे जिनका नाम विजया और राजकुमार था. एक दिन इस दंपति ने अपने दोनों बच्चों को कोयम्बटूर के ही 'ब्लू माउंटेन' (Blue Mountain) नाम के एक चिल्ड्रन होम में छोड़ दिया था.
कुछ साल दोनों भाई-बहन इसी चिल्ड्रन होम में रहे. लेकिन कुछ सालों बाद 1979 में राजकुमार को डेनमार्क के एक कपल ने गोद ले लिया और उसकी बहन को अमेरिका में किसी ने गोद ले लिया. अब दोनों भाई-बहन अलग हो चुके थे और दोनों को अपने नए माता-पिता (Parents) से नए नाम भी मिल चुके थे. राजकुमार का नाम कैस्पर और विजया का नाम डाएन विजया कॉल हो गया था.
दरअसल दोनों भाई-बहन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनी है जिसमें कैस्पर और डाएन के शुरू से लेकर अभी तक की कहानी को जीवंत किया गया है. कैस्पर ने बताया कि जब वो छोटा था तभी उसको अंदाजा लग गया था कि वो इस परिवार का हिस्सा नहीं है क्योंकि उनके रंग अलग थे, वो लोग यूरोपियन थे और कैस्पर का रंग इंडियन था. बड़े होने के बाद कैस्पर दो बार भारत आए और उस चिल्ड्रन होम में गए जहां वो बचपन में रहा करते थे लेकिन वो बंद हो चुका था जिसकी वजह से उसे अपने परिवार के बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिल सकी थी. लेकिन वहां के कर्मचारियों ने कैस्पर को उनके परिवार की कुछ तस्वीरें उपलब्ध कराई थी.
डीएनए टेस्ट से हुआ मुमकिन
कैस्पर को परेशान देखकर उनके दोस्त ने बताया कि एक कंपनी डीएनए सैंपल इक्ट्ठा करती है और उनके पास रखे बाकी सैंपल्स से उनका मिलान करती है. कैस्पर ने अपना डीएनए भी इस कंपनी को दे दिया. कुछ महीने बाद कैस्पर को माइकल नाम के एक शख्स की कॉल अमेरिका से आती है कि उनका सैंपल उनसे काफी हद तक मैच कर रहा है.
दरअसल माइकल डाएन के बेटे हैं. अपने परिवार की तलाश के लिए डाएन ने भी एक डीएनए कम्पनी के पास अपने सैंपल्स दे रखे थे. क्योंकि डाएन को याद था कि उनका भारत में एक परिवार था जिसमें एक छोटा भाई भी था जो उनके साथ चिल्ड्रन होम में रहता था. डाएन के बेटे माइकल ने बेंगलुरु से एक दिन अपनी मां डाएन को कॉल करके खबर दी कि उनका भाई मिल गया है.
दरअसल माइकल को ये याद नहीं था कि उनकी बहन भी है, कैस्पर ने अपना डीएनए सैंपल अपने माता पिता को खोजने के लिए दिया था. जब माइकल ने उसे सब कुछ बताया तो कैस्पर को जानकर बहुत खुशी हुई कि उसकी बहन भी है जो अमेरिका में है. कैस्पर ने बताया कि 2019 में उसने पहली बार अपनी बहन से बात की.
2022 में मिले दोनों भाई बहन
चूंकि जब इन दोनों को एक दूसरे के बारे में पता चला तब तक कोरोना वायरस इस धरती पर आ चुका था और दुनिया भर में लॉकडाउन लग गया था जिसकी वजह से कैस्पर और डाएन 2022 फरवरी में इतने सालों बाद एक दूसरे से मिल सके. चिल्ड्रन होम से कैस्पर को जो तस्वीरें मिली थी इसमें उसकी बहन उसके आगे खड़ी हुई दिख रही है. 42 साल बाद दोनों भाई-बहन एक दूसरे से मिल सके हैं और सिर्फ डीएनए टेस्टिंग टेक्नोलॉजी की वजह से संभव हो सका है.
दोनों भाई बहन अब एक दूसरे से बातचीत करते रहते हैं. दोनों भाई बहन ने ये भी तय किया है कि वो जल्द भारत आकर अपने बाकी के रिश्तेदारों को भी ढूंढने की कोशिश करेंगे.
स्टोरी क्रेडिट: बीबीसी
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