एक शहर धीरे-धीरे जमीन में धंसता जा रहा है. आलम ये है कि यहां से लोगों को हर दिन बाहर जाने को कहा जा रहा है. धरती में धंसने की वजह से शहर के अस्पताल से लेकर स्कूल तक डैमेज हो गए हैं. दरअसल, इस शहर को एक 'वरदान' मिला हुआ है और वह वरदान ये है कि यहां पर बेशकीमती खनिज मौजूद हैं. यहां पर ऐसे भी खनिज मौजूद हैं, जिसका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक कार की बैटरी में किया जाता है. यही वजह है कि लंबे समय से यहां पर खनन का काम हो रहा है. 


इस शहर का नाम किरुना (स्वीडन) है और यहां की आबादी 18000 है. आर्किट सर्कल से इसकी दूरी महज 125 मील है. इसका मतलब है कि गर्मियों में यहां रात में भी सूरज की रोशनी रहती है. सालों से हो रहे खनन की वजह से ये शहर जमीन में समा रहा है. इस साल बताया गया कि यहां पर धरती के कुछ सबसे बेशकीमती और दुर्लभ खनिज मौजूद हैं. इन खनिजों का इस्तेमाल कार की बैटरी और पवनचक्कियों में किया जा सकता है, ताकि ऊर्जा पैदा की जा सके. तब से खनन भी बढ़ गया है. 


सफलता का शिकार बना शहर


किरुना में खुदाई का काम सरकार की एक कंपनी देखती है. यहां पर मौजूद खदान दुनिया की सबसे बड़ी लोहे की खदान है. इसके जरिए यूरोपियन यूनियन की 80 फीसदी सप्लाई को पूरा किया जाता है. हालांकि, अब ऐसा लगता है कि जैसे किरुना खुद अपनी ही सफलता का शिकार बन गया है. आइफल टावर में जितना लौहा है, उससे छह गुना ज्यादा लोहा यहां से हर रोज निकाला जाता है. इसकी वजह से जमीन धंसने लगी है, जिसकी वजह से शहर भी धीरे-धीरे समाता जा रहा है. 


मशीनों से उठाई जा रहीं बिल्डिंग्स


रिपोर्ट्स के मुताबिक, अस्पतालों और स्थानीय स्कूल की दीवारों में चटक देखने को मिल रही है. मतलब साफ है कि अब ये शहर रहने के योग्य नहीं है. शहर को अब दो मील दूर बसाया जा रहा है. इसके लिए यहां की इमारतों को ही बकायदा उठाकर ले जाया जा रहा है. 1912 में बना शहर का प्राचीन चर्च भी मशीनों के जरिए उठाकर नए शहर में ले जाया जा रहा है. लोगों को भी उम्मीद है कि जब वह नए शहर में चले जाएंगे, तो शायद उनके हालात सुधर जाएं.


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