(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
वायरल हो रहा ये इडली वाला... जिसने Chandrayaan-3 के प्रोजेक्ट में दिया था ये खास योगदान
दीपक सुबह इडली बेचने का काम करते हैं तो दोपहर को ऑफिस चले जाते हैं. शाम को ऑफिस से लौटने के बाद वह फिर से इडली बेचना शुरू कर देते हैं.
भारत के इतिहास में 23 अगस्त 2023 की तारीख का गुणगान हमेशा सुनहरे शब्दों में किया जाएगा. आने वाली पीढ़ी इस तारीख को भारत की मजबूती, उसकी शक्ति और उसकी ताकत के रूप में याद रखेगी. ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन भारत ने एक ऐसा इतिहास रचा, जिसकी तारीफ दुनियाभर के दिग्गजों ने ताली पीट-पीटकर की. इस दिन भारत ने चांद के साउथ पोल (Chandrayaan-3) पर उतरने का बरसों पुराना अपना सपना साकार कर लिया. इस सपने को साकार करने में कई लोगों ने अपनी जी जान लगा दी, जिनमें हेवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HEC) के कुछ टेक्नीशियन भी शामिल हैं.
दीपक कुमार उपरारिया (Deepak Kumar Uprariya) भी HEC के एक टेक्नीशियन है, जो इन दिनों अपने घर का पेट पालने के लिए इडली बेचने का कारोबार कर रहे हैं. झारखंड के रांची में स्थित धुर्वा इलाके में उन्होंने इडली की दुकान खोली है. दीपक ने चंद्रयान-3 लॉन्चपैड को बनाने में अपना योगदान दिया है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्हें 18 महीनों से सैलरी नहीं मिली है. इसलिए वह अपने परिवार का पेट भरने के लिए साइड में इडली बेचने का कारोबार भी कर रहे हैं. इस कारोबार के साथ-साथ वह नौकरी भी कर रहे हैं.
सुबह इडली का कोराबर तो दोपहर को ऑफिस
दीपक सुबह इडली बेचने का काम करते हैं तो दोपहर को ऑफिस चले जाते हैं. शाम को ऑफिस से लौटने के बाद वह फिर से इडली बेचना शुरू कर देते हैं. उन्होंने बताया कि पहले उन्होंने अपने घर को क्रेडिट कार्ड से चलाया. जिसके बाद उनपर 2 लाख का लोन आ गया और उन्हें डिफॉल्टर बता दिया गया. इसके बाद दीपक ने अपने कुछ रिश्तेदारों से उधार लेकर अपना घर चलाया. उन्होंने बताया कि वह 4 लाख रुपये का कर्ज अब तक लोगों से ले चुके हैं. चूंकि वह कई लोगों से उधार ले चुके थे और उसे चुका नहीं पाए, इसलिए लोगों ने भी उन्हें उधार देना बंद कर दिया. जिसके बाद उनकी स्थिति बिगड़ने लगी. बात यहां तक पहुंच गई कि उनकी पत्नी को परिवार की खातिर अपने गहने तक गिरवी रखने पड़ गए.
HEC से काफी उम्मीदें थीं, मगर...
दीपक मध्य प्रदेश के हरदा जिले से बिलॉन्ग करते हैं. उन्होंने बताया कि साल 2012 में उन्होंने 25,000 सैलरी वाली नौकरी सिर्फ हेवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड में शामिल होने के लिए छोड़ दी. HEC में उन्हें सिर्फ 8,000 रुपये ही मिला करते थे. उन्हें HEC से काफी उम्मीदें थीं, लेकिन उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हुईं. उन्होंने बताया कि उनकी दो बेटियां है, जो स्कूल में पढ़ाई करती हैं. वह इतने बेबस हैं कि अब तक अपनी बेटियों की स्कूल की फीस तक नहीं भर पाए हैं और स्कूल लगातार उन्हें नोटिस भेज रहा है.
कोई बेच रहा मोमोज़ तो कोई बेच रहा चाय
न्यूज़ रिपोर्ट में आगे यह भी बताया गया है कि सिर्फ दीपक कुमार उपरारिया ही नहीं हैं, जिन्हें मजबूरी में अपने घर का पेट पालने के लिए साइड में कोई दूसरा कारोबार करना पड़ा. उनके अलावा भी ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने इसरो के लिए लॉन्चपैड को बनाने में अपना योगदान दिया है और आज उन्हें अपना घर चलाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी रही है. इन लोगों में मधुर कुमार (मोमोज़ का कारोबार कर रहे हैं), प्रसन्ना भोई (चाय बेचने का काम), सुभाष कुमार (बैंक ने डिफॉल्टर घोषित कर डाला), मिथिलेश कुमार (फोटोग्राफी का बिजनेस), संजय तिर्की (इनपर 6 लाख का कर्ज है).
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