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राजनीतिः क्या सीएम की सख्ती भी यूपी पुलिस को सुधार पाने में नाकाम है ?
उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का मुद्दा सियासत के लिए हमेशा खाद की तरह रहा है...सत्ता पक्ष के लिए ये संकट है...तो विपक्ष के लिए संजीवनी...बीजेपी इसे बखूबी समझती है...तभी तो उत्तर प्रदेश की कमान संभालने के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सबसे बड़ी मुहिम अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए चलाई...शुरू में तो पुलिस उत्साहित दिखाई दी...ज़िले से लेकर मंडल तक के बड़े अफसर सड़क पर दिखाई दिए...लेकिन ज्यों ज्यों वक्त बीतता गया...यूपी पुलिस पुराने ढर्रे पर लौटती गई...एनकाउंटर अभियान के तहत अपराधियों का सफाया जारी है...लेकिन सच ये है कि अपराधियों से पुलिस और कानून व्यवस्था को मिलने वाली चुनौती कम नहीं हुई...जब अपराध रोकने के तमाम दावे दम तोड़ने लगे...तो फिर मुख्यमंत्री को समीक्षा करनी पड़ी...सख्ती करनी पड़ी...सीएम की सख्ती का असर ये हुआ कि दागी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई हुई...एक बार फिर लगा कि कार्रवाई का खौफ प्रदेश में पुलिसिंग को बेहतर बनाएगा...हालांकि विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को लगातार घेरता रहा...यहां तक की विधानसभा में मुद्दा उठाया गया...सरकार ने अपने बचाव में आंकड़ों की दलील रख कर दावा किया है कि हालात बेहतर हुए हैं...लेकिन कितने बेहतर हुए हैं...इसका अंदाजा इसी बात से लगाइए कि मथुरा में एक युवक को बच्चा चोरी के शक में भीड़ ने जमकर पीटा...पुलिस की मौजूदगी में युवक की पिटाई होती रही...लेकिन पुलिस बेबस थी...ये महज एक दिन का मामला नहीं है बल्कि रोजमर्रा के अपराधों को लेकर पुलिस की किरकिरी इसी तरह हो रही है सवाल यही है कि क्या सीएम की सख्ती भी यूपी पुलिस को सुधार पाने में नाकाम है ?
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राजेश शांडिल्यसंपादक, विश्व संवाद केन्द्र हरियाणा
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