राजनीतिः महिलाओं की राह में रोड़ा क्यों बन रहा है मजहब?
ABP News Bureau
Updated at:
01 Jul 2019 08:53 PM (IST)
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औरत अपना आप बचाए तब भी मुजरिम होती है,
औरत अपना आप गंवाए तब भी मुजरिम होती है।
महिलाओं की दोधारी ज़िंदगी का ये सच नीलमा सरवर ने अपनी कलम से पिरोया है। दरअसल, ये समाज पर कटाक्ष भी है क्योंकि औरतों को लेकर फैसले करते समाज की सख्ती किस तरह उन्हें पीछे हटने पर मजबूर करती है। इसे महसूस करना हो तो लखनऊ प्रशासन के उस फैसले पर गौर करना होगा। जिसमें वो औरतों को सलीकेदार कपड़े पहनने का फरमान सुनाता है। खास कर उन ठिकानों पर जो लखनऊ की पहचान से जुड़े हैं, जैसे इमामबाड़ा, छोटा इमामबड़ा वगैरह।
औरत अपना आप गंवाए तब भी मुजरिम होती है।
महिलाओं की दोधारी ज़िंदगी का ये सच नीलमा सरवर ने अपनी कलम से पिरोया है। दरअसल, ये समाज पर कटाक्ष भी है क्योंकि औरतों को लेकर फैसले करते समाज की सख्ती किस तरह उन्हें पीछे हटने पर मजबूर करती है। इसे महसूस करना हो तो लखनऊ प्रशासन के उस फैसले पर गौर करना होगा। जिसमें वो औरतों को सलीकेदार कपड़े पहनने का फरमान सुनाता है। खास कर उन ठिकानों पर जो लखनऊ की पहचान से जुड़े हैं, जैसे इमामबाड़ा, छोटा इमामबड़ा वगैरह।