कैसे करें गोवर्धन पूजा। Govardhan Puja 2019
manishn
Updated at:
28 Oct 2019 09:42 AM (IST)
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द्वापर युग में जब व्रजवासी देवराज इन्द्र के भय से उनकी छप्पन भोग द्वारा पूजा किया करते थे, उस समय गोप और ग्वालों को श्री हरि ने इन्द्र पूजा करने के बजाय साक्षात गौ माता एवं गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की सलाह दी। क्रुद्ध होकर इन्द्र ने अतिवर्षा की। श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली से उठा कर इन्द्र के प्रकोप धन-जन की हानी पूरे व्रज को बचाया। इसके बाद इन्द्र ने श्री कृष्ण की शरण ली और सम्पूर्ण ब्रज में उत्सव मनाया गया। तभी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन धारी श्री कृष्ण का, गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर पूजन किया जाता है। गौ माता की भी पूजा की जाती है।
श्री कृष्ण ने गोवर्धन पूजा स्वयं की पूजा के उद्देश्य से नहीं बल्कि अंहकार और दुराचार की समाप्ति तथा गाय और वन की रक्षा के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रारम्भ की। शास्त्र कहते हैं कि जो कोई भी भक्त गिरिराज जी महाराज के दर्शन करता है और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाता है, उसे कई तीर्थों और तपस्याओं को करने से भी सहस्त्र गुणा अधिक पुण्य मिलता है। फिर गिरिराज जी की परिक्रमा करने का तो महात्म्य ही अनन्त फलदायी है।
श्री कृष्ण ने गोवर्धन पूजा स्वयं की पूजा के उद्देश्य से नहीं बल्कि अंहकार और दुराचार की समाप्ति तथा गाय और वन की रक्षा के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रारम्भ की। शास्त्र कहते हैं कि जो कोई भी भक्त गिरिराज जी महाराज के दर्शन करता है और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाता है, उसे कई तीर्थों और तपस्याओं को करने से भी सहस्त्र गुणा अधिक पुण्य मिलता है। फिर गिरिराज जी की परिक्रमा करने का तो महात्म्य ही अनन्त फलदायी है।