अफगानिस्तान में कैसे आया तालिबान और कैसे बढ़ाया अपना आतंक? | इंडिया चाहता है | 13.08.2021
अफगानिस्तान हमेशा विदेशी शक्तियों का अखाड़ा बना रहा है. पहले अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनातनी रही जो 1980 के दशक की बात है. सोवियत सैनिकों के निकलने के साथ मजहब के नाम पर वहां जो आतंकवादी संगठन खड़ा हुआ, उसका नाम तालिबान है.
अफगानिस्तान में आज हालत इतनी खराब है कि वहां के राष्ट्रपति को, वहां की सरकार को, वहां के लोगों को कुछ नहीं सूझ रहा है. सबको लग रहा है कि अमेरिका तो अपने सैनिकों को लेकर निकल गया लेकिन फंस गया उनका देश. 2018 में अमेरिका-तालिबान में बातचीत शुरू हो गई थी. पिछले साल फरवरी में दोहा में दोनों पक्षों में कुछ समझौते हुए. अमेरिका अपनी सेना वापस हटाने को तैयार हो गया. बदले में तालिबान अमेरिकी सैनिकों पर हमला बंद करने को तैयार हो गया. तालिबान तो अलकायदा पर पाबंदी लगाने को भी तैयार हो गया. साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर शांति वार्ता में शामिल होने का वादा भी किया. लेकिन एक साल बाद तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के आम नागरिकों और सुरक्षा बलों को मौत के घाट उतारना शुरु कर दिया और अफगानिस्तान की सेना शहर दर शहर सरेंडर करती चली गई.