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Coronavirus: America-Brazil के लिए Hanuman की संजीवनी बूटी तो Modi के पास है
आज हनुमान जयंती है. वहीं हनुमान जी, जिनकी चालीसा घर घर में पढ़ी और सुनी जाती है. कहते हैं पवन पुत्र बजरंगबली का जन्म आज ही हुआ था. आज जब पूरी दुनिया संकट में है. भारत में ही नहीं विदेशों में भी संकटमोचक याद किए जा रहे हैं. कोरोना वायरस ने हर तरफ़ तबाही मचा रखी है. ऐसे समय में चर्चा हनुमान जी और उनकी संजीवनी बूटी की हो रही है. संजीवनी मतलब यूँ समझिए जैसे अचूक दवा.ब्राज़ील के राष्ट्रपति जैर वोल्सानारो को भी अब हनुमान जी याद आने लगे हैं. पीएम नरेन्द्र मोदी को उन्होंने चिट्ठी लिखी है. प्रेसिडेंट ने उन्हें धन्यवाद किया है. आप सोच रहे होंगे ऐसा क्या हो गया. जैर कहते हैं कि जिस तरह हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाकर भगवान राम के भाई लक्ष्मण की जान बचाई थी. वैसे ही भारत से आने वाली दवा हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन से हमारे लोगों की जान बचेगी. राष्ट्रपति की अब सारी उम्मीदें भारत पर टिकी हैं. ब्राज़ील में कोरोना वायरस से अब तक क़रीब सात सौ लोगों की जान जा चुकी है. मरीज़ों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है. अब तो बीमार लोगों का आँकड़ा चौदह हज़ार को पार कर चुका है.ब्राज़ील ही क्या, दुनिया के सबसे ताकतवर आदमी भी अब हनुमान जी और संजीवनी बूटी के भरोसे हैं. पहले तो उन्होंने हमें डराया धमकाया. फिर कुछ ही घंटों बाद उनके सुर ताल बदल गए. आपका गेस बिल्कुल ठीक है. हम बात अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प की कर रहे हैं. कोरोना वायरस के कारण ये शक्तिशाली देश तबाही की ओर है. वहॉं अब तक क़रीब तेरह हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है. कोरोना से संक्रमित मरीज़ों की संख्या चार लाख से पार हो चुकी है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प को इस संकट के दौर में भारत से ही उम्मीद है. उन्हें ज़रूरत हाइड्रोक्सीक़्लोरोक्विन के क़रीब तीन करोड़ डोज की है. इसीलिए अब वे फिर से पीएम नरेन्द्र मोदी के गुण गाने लगे हैं. ये दवा भारत में कई कंपनियाँ बनाती हैं. अब तक इसके export पर रोक थी. लेकिन हाल में ही कुछ शर्तों के साथ इसे बाहर भेजने की छूट दे दी गई है.अमेरिका समेत दुनिया भर के देशों में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा की बड़ी डिमांड है. दुनिया भर से आ रही माँग के बीच भारत ने कहा है कि वह मानवीय आधार पर दवा की निर्यात करेगा. आम तौर पर मलेरिया के इलाज के लिए ये दवा दी जाती है. इसका इस्तेमाल मलेरिया के बुख़ार को कम करने के लिए किया जाता रहा है. वैसे तो कोरोना लाइलाज है. इस बीमारी की न कोई दवा है न ही कोई वैक्सीन. लेकिन कई डॉक्टर मरीज़ों को ये दवा दे रहे हैं. फ़ायदा भी हुआ है. लेकिन world health organisation का कुछ और ही कहना है. WHO की मानें तो ये दवा कितनी प्रभावी है, इसे लेकर अब तक कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं. वैसे अपने यहॉं ये दवा हर महीने बीस करोड़ के आसपास बनती है। जबकि खपत सिर्फ़ बीस लाख की है. भारत में अब तो मलेरिया के मामले कम आते हैं. इसी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल अब गठिया के इलाज में होता है. अब आप ये सोच रहे होंगे कि भारत में ये दवा खपत के मुक़ाबले बहुत अधिक बनती है. तो फिर इसे इक्स्पोर्ट करने में क्या दिक़्क़त है. इसके पीछे कारण ये है कि दवा बनाने के लिए कच्चा माल चीन से आता है. जो पिछले कई महीनों से नहीं आया है. इसीलिए स्टॉक बनाए रखने के लिए निर्यात पर रोक थी. अमेरिका और ब्राज़ील जैसे मुल्क इसी दवा को संजीवनी बता रहे हैं.
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