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बिहार चुनाव से पहले SC-ST कोटा के अंदर सबकोटा से गरमाई राजनीति, राज्यों ने साधी चुप्पी | ABP Uncut
सुप्रीम कोर्ट ने दलितों और आदिवासियों की जातिगत सूची में कोटा के भीतर कोटा की सिफारिश की है . वैसे अंतिम फैसला सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ को करना है लेकिन कोर्ट ने 2004 के अपने ही फैसले के खिलाफ जाकर एतिहासिक काम किया है . उधर अफसोस की बात है कि दलितों और आदिवासियों के नाम पर राजनीति करने वाले राजनीतिक दल इस मुददे को लेकर कतई गंभीर नहीं है . उनके लिए दलित और आदिवासी सिर्फ वोट बैंक है जिनका इस्तेमाल चुनाव के समय ही होता है . ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि 17 राज्य कोटा के भीतर कोटा की बात से सहमत नहीं है . हैरत की बात है कि छह राज्य तो पिछले नौ सालों से इस मसले पर कोई फैसला ही नहीं ले सके हैं . राजनीतिक दलों की आलोचना इसलिए की जा रही है क्योंकि दलितों में महादलित , पिछड़ों में महापिछड़ों , मुसलमानों में सबसे उपेक्षित और गरीब मुस्लिम की बात चुनावों के समय जोर शोर से उठती रही है . महादलितों , महापिछड़ों और पसमांदा मुसलमानों के नाम पर वोट भी मांगे जाते रहे हैं , उनके लिए अलग से योजनाओं की घोषणा भी की जाती रही है , उन्हें विकास की मुख्य धारा में लाने की कसमें भी खाई जाती रही हैं लेकिन जब सच में कुछ करने का समय आता है तो राज्य खामोश हो जाते हैं .देखिए क्या है पूरा मामला बता रहे हैं विजय विजय विद्रोही
विद्रोही विजय
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