Citizenship Amendment Act: नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को सरकार ने आखिरकार पूरे देशभर में लागू कर दिया है. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी सरकार का ये कदम काफी अहम माना जा रहा है. ये वही कानून है, जिसे लेकर कुछ साल पहले देशभर में कई प्रदर्शन हुए थे. इन प्रदर्शनों में एक नारा खूब चला था, जिसमें लोग कह रहे थे कि कागज नहीं दिखाएंगे. अब नागरिकता कानून लागू होने के बाद भी कागज वाली बात सामने आ रही है. इसीलिए आज हम आपको बता रहे हैं कि नागरिकता कानून लागू होने के बाद क्या अब सभी को अपने कागज दिखाने होंगे?


किन्हें मिलेगी नागरिकता?
सबसे पहले समझते हैं कि आखिर सीएए को क्यों लाया गया है और इसे लेकर विवाद क्यों हो रहा है. दरअसल इसके नाम से जाहिर है कि इसे नागरिकता देने के लिए लाया गया है. हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं. ऐसे ही तमाम शरणार्थियों के लिए नागरिकता कानून लाया गया. पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए लोगों को नागरिकता दी जाएगी. भारत में पांच साल से ज्यादा वक्त से रहने वाले लोग इसमें आवेदन कर सकते हैं. 


क्या है विवाद?
अब सवाल है कि आखिर इस कानून को लेकर विवाद क्यों हो रहा है. दरअसल सीएए के तहत मुस्लिमों को नागरिकता देने का प्रावधान नहीं रखा गया है, यही विवाद की असली जड़ है. प्रदर्शन करने वाले लोगों का कहना है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में किसी एक समुदाय को छोड़ने वाला कानून नहीं लाया जाना चाहिए. मुस्लिम समुदाय के लोग भारत में शरण लेने के 11 साल बाद नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं. 


क्या सभी को दिखाने होंगे कागज?
अब लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल है कि क्या सीएए के बाद सभी को कागज दिखाने होंगे... इसका जवाब है कि भारत में रहने वाले लोगों पर इस कानून का कोई भी असर नहीं पड़ने वाला है. ये कानून सिर्फ उन लोगों के लिए है, जो दूसरे देशों से भारत आए हैं और नागरिकता की गुहार लगा रहे हैं. भारत में रहने वाले लोगों को संविधान के तहत नागरिकता का अधिकार है. 


कागज दिखाने का तर्क देने वालों का ये कहना है कि सीएए के साथ ही नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) को भी सरकार की तरफ से लाया जाएगा, जिसमें उन लोगों को परेशानी होगी जिनके पास उचित दस्तावेज नहीं होंगे. दावा किया जा रहा है कि सरकार जो दस्तावेज मांग रही है, वो सभी लोगों के पास उपलब्ध नहीं होंगे. ऐसे में लाखों लोगों पर नागरिकता खोने का खतरा होगा. इसके लिए असम में हुए एनआरसी का तर्क दिया जाता है, जिसमें करीब 19 लाख लोगों के नाम लिस्ट से बाहर थे. 


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