क्या रिटायरमेंट के बाद नहीं बदली जा सकती है डेट ऑफ बर्थ? जानें क्या है नियम
आपको बता दें कि सरकार के नियमानुसार कोई भी व्यक्ति रिटायरमेंट के बाद अपनी जन्म तिथि में बदलाव नहीं कर सकता है. ऐसे में एक शख्स जिसका रिटायरमेंट 2006 में हुआ उसकी अर्जी हाईकोर्ट ने खारिज कर दी.
DOB Rule After Retirement: डेट ऑफ बर्थ एक ऐसी तिथि है जिसे लेकर हर कोई सजग रहता है. यह इंसान के हर मामलात और हर कामकाज में जरूरी होती है. पढ़ाई से लेकर नौकरी और फिर रिटायरमेंट तक जन्म तिथि की एक अहम भूमिका होती है. लेकिन आप अपनी जन्म तिथि कई तरह से बदलवा सकते हैं. इसका प्रूफ या तो आपकी अंक तालिका होती है या फिर सरकार की ओर से जारी किया गया कोई पहचान पत्र, इन सभी का आधार आपका जन्म प्रमाण पत्र होता है. लेकिन कई बार लोगों के साथ ऐसे मामले पेश आते हैं कि उन्हें अदालत के चक्कर काटने पड़ जाते हैं. ऐसा ही एक मामला हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट से सामने आया है.
हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
आपको बता दें कि सरकार के नियमानुसार कोई भी व्यक्ति रिटायरमेंट के बाद अपनी जन्म तिथि में बदलाव नहीं कर सकता है. ऐसे में एक शख्स जिसका रिटायरमेंट 2006 में हुआ उसकी जन्मतिथि वाली अर्जी हाईकोर्ट ने खारिज कर दी. ऐसा हाइकोर्ट ने इसलिए किया क्योंकि शख्स के पास जो जन्म प्रमाण पत्र था उससे उसने अपनी नौकरी का लाभ ले लिया था, जिसके अनुसार उसका रिटायरमेंट 2006 में होना था. लेकिन नया जन्म प्रमाण पत्र जब बनकर आया तब तक उसकी सेवानिवृत्ति हो चुकी थी, ऐसे में नए जन्म प्रमाण पत्र के अनुसार उसकी उम्र 4 साल छोटी हो गई.
क्यों नहीं बदलवा सकते रिटायरमेंट के बाद जन्मतिथि
उपरोक्त कारण मामले को देखते हुए कोई भी शख्स अपनी रिटायरमेंट के बाद अपनी नौकरी को और आगे बढ़ाने या फिर उसका लाभ उठाने के लिए धोखाधड़ी कर सकता है, ऐसी ही धोखाधड़ी से बचने के लिए सरकार आपको रिटायरमेंट के बाद जन्मतिथि बदलने का मौका नहीं देती है. अगर ऐसा होता है तो कल से कोई भी शख्स अपनी जन्म तिथि बदलवाकर सरकार से अपनी सेवा सीमा बढ़ाने की मांग कर सकता है, इतना ही नहीं, अपनी नई तिथि को लेकर वह गलत तरीके से इसका फायदा भी उठा सकता है और सरकार से लाभ मांग सकता है, जो कि एक दम गैर कानूनी है.
इस मामले को लेकर सुनाया फैसला
दरअसल, जन्मतिथि बदलने का मामला एक व्यक्ति से जुड़ा है. शख्स रिटायर होने से पहले 1983 से 2006 तक एक पल्प ड्राइंग प्रोसेसर निर्माण यूनिट में काम करता था. नौकरी पर रखे जाने के समय उसने अपनी जन्मतिथि 30 मार्च 1952 बताई थी, लेकिन उसने इसका कोई सबूत पेश नहीं किया था. ऐसे में शख्स का रिटायरमेंट 2006 में हो गया था. उधर, कर्मचारी के स्कूल प्रमाण पत्र और प्रोविडेंट फंड से मिली जानकारी के आधार पर कर्मचारी की जन्मतिथि 10 मार्च 1948 दर्ज की थी. इस आधार पर कर्मचारी को साल 2006 में 58 साल की उम्र में सेवानिवृत्ति मिल गई थी. लेकिन नई जन्मतिथि के आधार पर शख्स की उम्र 4 साल कम थी, जिसे लेकर शख्स श्रम न्यायालय पहुंचा था, वहां से मामला कर्नाटक हाईकोर्ट गया जहां इसे रद्द कर दिया गया.
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट का दिया हवाला
सुनवाई के दौरान अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि सेवानिवृत्त होने के बाद जन्मतिथि को नहीं बदला जा सकता. हाईकोर्ट ने कहा कि कर्मचारी के पास पहले भी अपनी जन्मतिथि बदलने का मौका था लेकिन ऐसा नहीं किया गया. उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रोविडेंट फंड और स्कूल के प्रमाण पत्रों में दर्ज की गई जन्मतिथि सही है, और इसे ही वैध माना जाएगा. अदालत ने यह भी कहा कि सेवानिवृत्त व्यक्ति ने अनुचित लाभ पाने के लिए यह दावा पेश किया है. इसके बाद अदालत ने याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारी अपनी जन्मतिथि नहीं बदल सकते.
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