Layoffs Employee Right: जब किसी कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया जाता है, तो कंपनी (नियोक्ता) आमतौर पर कर्मचारी को छंटनी के लिए एक वेतन या मुआवजा देती है. अब सवाल यह है कि नौकरी से निकालते वक्त जो पैसा कंपनी देती है वह कितना होना चाहिए. व्यक्ति के महीने भर के वेतन के बराबर या फिर बेसिक पे जितना मिलता है. भारत सरकार का लेबर लॉ इस मामले में क्या कहता है साथ ही कर्मचारी के पास क्या अधिकार है अगर कंपनी नियम को फॉलो नहीं करती है. आज की स्टोरी में हम इसके बारे में जानेंगे. 


क्या कहता है कानून? 


किसी भी प्राइवेट कंपनी के पास अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों को निकालने का अधिकार होता है, बस उसके लिए कंपनी को इंडियन लेबर लॉ का पालन करना होता है. अगर कोई कर्मचारी लगातार 5 साल से काम कर रहा है और कंपनी उसे जॉब से निकालती है तो Gratuity Act 1972 के तहत कर्मचारी को ग्रेच्यूटी मिलती है. साथ ही वह जितना दिन काम किया है उतने दिन की पूरी सैलरी भी मिलती है. यह नियम हाल ही में ज्वॉइन किए कर्मचारी के साथ भी लागू होता है. हर कंपनी में नोटिस पीरियड का अगल नियम होता है. अगर आप कंपनी छोड़ते हैं तो आपको रिजाइन देने के बाद नोटिस पीरियड सर्व करना पड़ता है. कंपनी आपको निकालती है तो नोटिस पीरियड की अवधि के दौरान आपको बेसिक पे देती है. हालांकि नियम तो 30 से 90 दिन के बीच का है, लेकिन इसे कंपनियां अपने हिसाब से बदलाव कर सकती हैं.


छुट्टियों के बदले कंपनी करती है पे


जिस कर्मचारी को टर्मिनेट किया जा रहा है, अगर वह लीव पर है तो उसे लीव इनकैशमेंट भी करना होता है. यह आपको छुट्टियों के बदले कंपनी द्वारा पे किया जाता है. साथ ही अगर आपको पीएफ निकालने या उससे संबंधित किसी मदद में कंपनी की जरूरत पड़ती है तो कंपनी उस काम में आपकी मदद करती है. ऐसा करना नियम के मुताबिक होता है. एक जो सबसे जरूरी बात होती है कि जब आप नौकरी ज्वॉइन करते हैं तब आपसे कंपनी एक कॉन्ट्रैक्ट साइन कराती है, जिसमें आपसे कुछ विषयों पर सहमति लेती है. अगर आप उस दस्तावेज पर साइन कर लेते हैं तब आपके साथ कंपनी उस कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से व्यवहार कर सकती है. 


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