Fake Account Identification Rules: आज के समय में लोगों की जिंदगी में सोशल मीडिया बुरी तरह से हावी है. लोग दिन का काफी वक्त सोशल मीडिया पर बिताते हैं. दोस्तों से घर वालों से बातचीत करते हैं. अपनी सोशल जिंदगी के बारे में अपडेट देते रहते हैं. कई बार सोशल मीडिया पर शेयर की गई जानकारी का लोग गलत इस्तेमाल कर लेते हैं. कई बार लोग सोशल मीडिया पर फर्जी अकाउंट बनाकर लोगों को टारगेट करते हैं.


हाल ही में मुंबई से एक ऐसा ही मामला आया है. जहां एक शख्स ने अपने रिश्तेदार पर फर्जी अकाउंट बनाकर उसके और उसके परिवार को बदनाम करने का आरोप लगाया. फर्जी फेसबुक अकाउंट से उसके और उसके परिवार के बारे में अपमानजनक पोस्ट किए गए हैं. इसके लिए उसने उन फेसबुक अकाउंट का स्क्रीनशॉट भी कोर्ट में दिखाया. लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट ने शख्स के दावे को खारिज कर दिया. और सिर्फ स्क्रीनशॉट के आधार पर अकाउंट को फर्जी मानने से इनकार कर दिया. 


कोर्ट ने कहा सिर्फ स्क्रीनशाॅट साबित नहीं कर सकता अकाउंट फर्जी है


बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने हाल ही में एक अपमानजनक फेसबुक पोस्ट के अकाउंट के प्रिंट आउट स्क्रीनशॉट्स को फर्जी अकाउंट साबित करने के लिए कनक्लूसिव एविडेंस नहीं माना. दरअसल मुंबई के लातूर पुलिस स्टेशन में एक शख्स ने अपने जीजा के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई और कहा कि उसने फर्जी फेसबुक अकाउंट बनाए हैं. जिससे उसके और उसके परिवार के बारे में अपमानजनक सामग्री पोस्ट की जा रही है. शख्स ने कहा उसके उसकी पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद की वजह से बदनामी की जा रही है. 


इस आप पर जब कोर्ट में सुनवाई हुई तो बॉम्बे हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और न्यायमूर्ति एसजी चपलगांवकर की पीठ ने कहा,'केवल फेसबुक के स्क्रीनशॉट, जिनके प्रिंट लिए गए हैं, जब्ती के बाद संलग्न किए गए हैं और दो गवाहों के बयान हैं. केवल उक्त सामग्री के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि उक्त फेसबुक पोस्ट उस व्यक्ति द्वारा बनाए गए थे. इसलिए, उसके खिलाफ बिल्कुल भी सबूत नहीं है, और उसे मुकदमे का सामना करने के लिए कहना एक निरर्थक कवायद होगी.'


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साइबर क्राइम के तहत होनी चाहिए जांच 


इतना ही नहीं औरंगाबाद पीठ के जजों ने पुलिस अधिकारियों की आलोचना भी की उन्होंने कहा जांच कानून के प्रावधानों की अनदेखी की गई है. जिन लोगों ने इस केस की जांच की  उन्हें साइबर क्राइम इन्वेस्टिगेशन करने का एक्सपीरियंस नहीं था. कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ लगे आरोपों को खारिज करते हुए कहा 'पुलिस आईपी एड्रेस ट्रैकिंग और फर्जी अकाउंट बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए डिवाइसेज के फोरेंसिक एनालिसिस जैसे जरूरी सबूत पेश नहीं कर पाई. जबकि FIR में इस बात का जिक्र था कि खाते धोखाधड़ी से बनाए गए हैं. ऐसे में पुलिस के स्पेशिलिस्ट की मदद भी लेनी चाहिए थी.'


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कैसे साबित होगा फर्जी अकाउंट?


बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ के महेश शिवलिंग तिलकारी बनाम महाराष्ट्र राज्य केस के फैसले के हिसाब से अगर कोई फर्जी अकाउंट बनाकर आपत्तिजनक सामग्री आपके खिलाफ शेयर कर रहा है. और आपने साइबर पुलिस में उसकी शिकायत की है. तो साइबर पुलिस को उस अकाउंट को फर्जी साबित करने के लिए आईपी एड्रेस ट्रैकिंग और साइबर क्राइम एक्सपर्ट की सहायता से पूरा पता लगाना होगा. और किन डिवाइस पर अकाउंट को एक्सेस किया गया उसकी पूरी फॉरेंसिक एनालिसिस रिपोर्ट सौंपनी होगी. इसी के आधार पर तय हो पाएगा अकाउंट फर्जी है या नहीं. 


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