रेलवे में अक्सर टिकट मिलने की मारा मारी होती है. रिजर्वेशन वाले यात्री तो अपनी जगह पर सुकून से बैठ जाते हैं लेकिन जो असल मारा मारी होती है वो जनरल कोच में देखने को मिलती है. ज्यादा भीड़ होने पर अक्सर जनरल डिब्बों के यात्री पास ही में लगे दिव्यांगजनों के कोच में जाकर डेरा जमा लेते हैं. लेकिन क्या ऐसा करना कानून ठीक है? कई लोगों के मन में यह सवाल उठता ही है कि जनरल का टिकट होने पर क्या दिव्यांग डिब्बे में यात्रा करना जायज है. आइए आपको बताते हैं और साफ करते हैं इसे लेकर तमाम संशयों को.
दिव्यांग बोगियों पर कब्जा
सरकार विकलांग लोगों को सुविधा प्रदान करने के लिए रेलवे में अलग से व्यवस्था बनाती है. लेकिन कई बार इन व्यवस्थाओं का फायदा जिन्हें मिलना चाहिए उन्हें नहीं मिल पाता है और दिव्यांग लोग अपने इस अधिकार से दूर रह जाते हैं. रेलवे ने ट्रेन में दिव्यांगों के लिए बोगी को आरक्षित किया हुआ है जिसे ट्रेन के दोनों किनारों पर लगाया जाता है. छोटे स्टेशनों पर प्लेटफार्म छोटा होने के कारण दिव्यांग वहां तक पहुंच ही नहीं पाते. यदि कभी कभार पहुंच भी जाते हैं तो उसमें पहले से ही दूसरे वर्ग के यात्रियों की भरमार होने से उन्हें निराश होकर दूसरी बोगियों में चढ़ने को मजबूर होना पड़ता है.
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जानिए क्या कहता है नियम
दिव्यांगों की बोगियां खाली होने पर उसमें जनरल यात्रियों का घुसना किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है. रेलवे के नियम के अनुसार इन बोगियों में केवल दिव्यांग और उनके सहयोगी ही बैठ सकते हैं इसके अलावा किसी दूसरे को इस बोगी में घुसने की इजाजत नहीं है. अगर कोई और इस बोगी में बैठा हुआ पाया जाता है तो रेलवे उसका चालान काट सकती है.
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इस तरह की जाती है कार्रवाही
दिव्यांग बोगियों में सामान्य यात्रियों की घुसपैठ के संबंध में रेल मंडल के उच्च अधिकारियों का कहना है कि दिव्यांग बोगियों में सामान्य यात्रियों का बैठना अपराध की श्रेणी में आता है. दिव्यांग बोगियों की जिम्मेदारी ट्रेन के गार्ड की होती है, गार्ड जैसे ही आरपीएफ को मेमो देता है, तुरंत ही आरपीएफ दिव्यांग बोगियों में बैठे सामान्य यात्रियों पर कार्रवाई शुरू कर देती है.
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