Ratan Tata's Pet Dog Tito: भारत के मशहूर बिजनेसमैन और फिलैंथरोपिस्ट रतन टाटा का इसी महीने 9 अक्टूबर को 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया था. देश भर में वह लोगों को काफी प्रिय थे. उनके विचार और उनके काम लोगों को खूब प्रभावित करते थे. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति समेत भारत के कई महत्वपूर्ण लोगों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया था.


अपने निधन से पहले रतन टाटा ने अपनी वसीयत भी लिखी थी. जिसमें उन्होंने अपने पेट डॉग टीटो का भी जिक्र किया था. भारत में वसीयत में कुत्ते के नाम लिखने को लेकर क्या है कोई नियम. कैसे की जाती है किसी पालतू जानवर के नाम वसीयत, चलिए आपको बताते हैं. 


रतन टाटा ने अपने पालतू कुत्ते का नाम लिखा वसीयत में


देश के जाने-माने मशहूर उद्योगपति रतन टाटा ने अपने निधन से पहले अपनी वसीयत छोड़ी थी. इस वसीयत में उन्होंने अपने पालतू जर्मन शेफर्ड कुत्ते टीटो का नाम भी वसीयत में लिखा था. यानी रतन टाटा के बाद अब उनके कुत्ते का भी उनकी देखभाल कौन करेगा. अपनी वसीयत में रतन टाटा पहले ही इस बात का जिक्र करके गए हैं. रतन टाटा ने अपनी वसीयत में अपने पालतू कुत्ते टीटो को बिना शर्त प्यार देने की बात कही है. वसीयत के अनुसार उनके कुत्ते की देखभाल काफी समय तक उनके कुक रहे राजन शॉ करेंगे. 


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पालतू जानवर को लेकर वसीयत के नियम?


अगर कोई अपने पालतू जानवर से बेहद प्यार करता है. और वह अपने बाद उसकी देखभाल के लिए उसके नाम संपत्ति छोड़ना चाहता है. तो ऐसा करना भारत में मुमकिन नहीं है. कानून इसकी इजाजत नहीं देता. ना ही पालतू जानवर के नाम सीधे कोई संपत्ति ट्रांसफर की जा सकती है और ना ही कोई ट्रस्ट बनाकर. भारतीय कानून के मुताबिक पालतू जानवर को बेनिफिशियरी बनाकर ट्रस्ट बनाना पॉसिबल नहीं है. क्योंकि पालतू जानवर को ऐसा व्यक्ति नहीं माना जाता जो किसी दूसरे व्यक्ति की संपत्ति का उत्तराधिकारी बन सके. 


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पालतू कुत्ते होते हैं व्यक्तिगत संपत्ति


भारती कानून के मुताबिक पालतू जानवरों को व्यक्तिगत संपत्ति माना जाता है. और जब कोई चीज पहले से एक संपत्ति है तो वह दूसरी संपत्ति पर अपना अधिकार नहीं रख सकती. वहीं अगर ट्रस्ट बनाकर संपत्ति नाम करने की बात की जाए तो यह भी मुमकिन नहीं है. क्योंकि ट्रस्ट के कानून में यह जरूरी होता है कि ट्रस्ट लाभार्थियों को ट्रस्टी के खिलाफ इसे लागू करवाने का अधिकार होना चाहिए. क्योंकि पालतू जानवर को कोर्ट में नहीं लाया जा सकता. इसलिए वह ट्रस्ट डीड की शर्तें पूरी नहीं कर सकता.  बता दें यह जानकारी सायरिल अमरचंद मंगलदास बेवसाइट पर मौजूद है. 


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