Tenancy laws: भारत में कभी किराया न दे पाने से किसी किरायेदार को बाहर निकालने, तो वहीं मकान मालिक के बार-बार कहने पर भी किरायेदार द्वारा मकान खाली नहीं करने जैसे कई विवाद सामने आ चुके हैं. इन्ही विवादों को निपटाने के लिए सरकार ने मकान मालिक और किरायेदार को लेकर कुछ कानून बनाएं हैं, जो इनके अधिकारों की रक्षा करता है. 


इसके साथ ही यह कानून किरायेदार को अनुचित किराया चुकाने से भी बचाता है. मकान मालिकों और किरायेदारों दोनों के हितों को संतुलित करने और उनकी रक्षा करने के लिए वर्ष 1948 में एक किराया नियंत्रण अधिनियम पारित किया गया था. हर राज्य का अपना किराया नियंत्रण अधिनियम है, जैसे-महाराष्ट्र किराया नियंत्रण अधिनियम 1999, दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम 1958 आदि. हालांकि, सभी राज्यों में कुछ नियम समान हैं. 


किरायेदार के कमरा खाली नहीं करता है तो क्या होगा? 
नियम के अनुसार, अगर कोई किरायेदार किसी मकान का किराया दे चुका है, लेकिन मकान मालिक के बार-बार कहने पर भी परिसर को खाली नहीं करता है, तो ऐसा किरायेदार मकान मालिक को बढ़ा हुआ किराया देने के लिए उत्तरदायी है. वहीं अगर किरायेदारी का कांट्रैक्ट समाप्त हो जाता है और उसको रिन्यू नहीं कराया जाता है, तो किरायेदार को बढ़ा हुआ किराया देना पड़ेगा. 


कितना देना पड़ेगा किराया 
नियम यह कहता है कि यह बढ़ा हुआ किराया, किरायेदार को पहले दो महीने तक किराये के दोगुना और उसके बाद 4 गुना तक देना होगा, लेकिन अगर इस बीच वह कांट्रैक्ट को रिन्यू करा लेता है, तो उसे अतिरिक्त किराया जमा करने की आवश्यकता नहीं होगी.


इस स्थिति में मिलती है छूट 
इसके अलावा, अगर किरायेदार के साथ या उसके परिवार में कोई अप्रत्याशित घटना हो जाती है, तो ऐसी ​स्थिति में मकान मालिक किराएदार को घटना की समाप्ति की तारीख से एक महीने की अवधि के लिए परिसर में रहने की अनुमति देगा. वहीं, मकान मालिक पर यह निर्भर करता है कि वह चाहे तो किराया माफ भी कर सकता है. 


किरायेदार और मकान मालिक के पास लिखित अनिवार्य 
किसी भी किरायेदार को कमरा या घर देने पर लिखित दस्तावेज तैयार करना बहुत आवश्यक है. इसके नहीं रहने पर कोई भी मकान मालिक या किरायेदार अपने अधिकार के लिए क्लेम नहीं कर सकता है.  


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