Green Firecracker: दीपावली आने से पहले पटाखों की गूंज आनी शुरू हो जाती है. लोग कई दिन पहले से पटाखे जलाने लग जाते हैं. बाजार में कई तरह के खतरनाक पटाखे भी आते हैं, जिनसे भयंकर ध्वनि और वायु प्रदूषण होता है. इनसे होने वाले प्रदूषण (Pollution) को रोकने के लिए राज्य सरकारों ने कड़े कदम उठाए हैं. कई राज्यों ने पटाखे जलाना प्रतिबंधित कर दिया है.


कई राज्यों ने खतरनाक और प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों को बैन किया है, जबकि कुछ राज्यों में सिर्फ ग्रीन पटाखे जलाने की अनुमति है. हालांकि इसके लिए भी समय सीमा तय की गई है. लोगों में ग्रीन पटाखों का क्रेज अभी से दिखाई दे रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ग्रीन पटाखे क्या होते हैं और ये पुराने परंपरागत पटाखों से कैसे अलग होते हैं? आइए हम आपको बताते हैं.


अत्यधिक प्रदूषण करते हैं सामान्य पटाखे
पटाखे जलाने से भारी प्रदूषण होता है. खासकर दीपावली के मौके पर जब सारा देश एक साथ मिलकर पटाखे जलाता है तो भारी मात्रा में प्रदूषण होता है. पटाखों में सल्फर के तत्व मौजूद होते हैं. इसके अलावा भी इनमे कई तरह के बाइंडर्स, स्टेबलाइजर्स, रिड्यूसिंग एजेंट, ऑक्सीडाइज़र और रंग मौजूद होते हैं. जिनसे रंग-बिरंगी रोशनी होती है. यह एंटीमोनी सल्फाइड, बेरियम नाइट्रेट, लिथियम, एल्यूमीनियम, तांबा और स्ट्रांशियम के मिश्रण से बनते हैं. इनको जलाने पर इनमें से कई प्रकार के रसायन हवा में मिलते हैं और हवा की गुणवत्ता को काफी बिगाड़ देते हैं. सर्दी के मौसम में कोहरे की वजह से एयर क्वालिटी इंडेक्स पहले से ही खराब स्थिति में होती है, ऐसे में पटाखे जलाने से यह और बदत्तर हो जाती है.


ग्रीन पटाखे और नॉर्मल पटाखे में अंतर
पटाखों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के प्रयास में राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) ने ग्रीन पटाखे (Green Crackers) की खोज की, जो आवाज से लेकर दिखने तक में पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं. ऐसा नहीं है कि ग्रीन पटाखों से प्रदूषण बिल्कुल भी नहीं होगा, प्रदूषण तो इनसे भी होता है, लेकिन काफी कम होता है. ये सामान्य पटाखों से 40 से 50 फीसदी तक कम हानिकारक गैस पैदा करते हैं और सामान्य पटाखों से कम हानिकारक हैं.


ग्रीन पटाखों से कितना प्रदूषण होता है?
ग्रीन पटाखों में एल्युमिनियम, बैरियम, पौटेशियम नाइट्रेट और कार्बन का प्रयोग नहीं किया जाता है. इनमें खतरनाक रसायनों की मात्रा काफी कम होती है, जिससे प्रदूषण कम होता है. साइज में ये थोड़े छोटे होते हैं और आवाज भी कम करते हैं. जहां ग्रीन पटाखों से अधिकतम 110 से 125 डेसिबल तक का ही ध्वनि प्रदूषण होता है वहीं, नॉर्मल पटाखों से 160 डेसिबल तक ध्वनि प्रदूषण होता है. ग्रीन पटाखे परंपरागत पटाखों की तुलना में थोड़े महंगे होते हैं. आप सरकार की ओर से रजिस्टर्ड दुकान से या फिर ऑनलाइन इनकी खरीदारी कर सकते हैं.


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