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कानपुर: अगस्त क्रांति की गवाह बनी थी अंग्रजों की ये कोठी, आज भी फहराया जाता है तिरंगा
आग लगाने का घटना के बाद दूसरे दिन अंग्रेज अफसर फ़ोर्स के साथ गांव में आ धमके और घरों से निकाल-निकाल कर ग्रामीणों की पिटाई की. चार सौ ग्रामीणों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था और उन्हें 11 महीने जेल की सजा सुनाई गई थी.
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View In Appअंग्रेजो ने कोठी पर अपनी जरूरत की सभी चीजो का निर्माण कराया था. जिसमें पीने के पानी के लिए कुआं, प्रार्थना के लिए चर्च, रहने के लिए आवास और यातनाए देने के लिए टार्चर रूम भी बनवाए थे. इसके साथ अंग्रेज इस कोठी पर आयदिन नाच गाने का भी आयोजन करते थे. कोठी के ठीक बगल में एक हजारों वर्ष पुराना बरगद का पेड़ है जिस पर ग्रामीणों को बांधकर बेरहमी से पीटा जाता था. लगान नहीं देने वाले किसानो को कई दिनों तक भूखा प्यासा बरगद के पेड़ से बांधकर रखा जाता था और उन्हें प्रताड़ित किया जाता था.
15 अगस्त सन 1942 में ग्रामीणों ने मिलकर कोठी में आग लगाने की योजना बनाई. योजना के तहत 23 अगस्त की रात कोठी पर ग्रामीणों ने हमला कर दिया और अंग्रेजों की इस कोठी को आग के हवाले कर दिया. दरअसल अंग्रेजों के मुखबिरों ने अफसरों को इस बात की सूचना दे दी थी कि ग्रामीण कोठी में आग लगाने आ रहे हैं तो अंग्रेज पहले ही भाग गए थे.
बजरंगी दास बताते हैं कि इस कोठी के आसपास के दर्जनो गांव वाले अंग्रेजी हुकुमत से त्रस्त थे. 15 अगस्त सन् 1942 को मोहम्मदपुर, बिरहर, उमरा बरूई, दौपुरा और गौरीपुर समेत दर्जनो गांव ग्रामीणों ने बिरहर गांव के जगलों में इकट्ठा होकर कोठी में आग लगाने की योजना बनाई थी.
कोठी के बगल से गंग नहर बहती है. अगर किसी भी ग्रामीण ने नहर के पानी का इस्तेमाल शौच क्रिया के लिए किया तो उस पर चार गुना लगान लगा दिया जाता था. अगर जुर्माना नहीं भरा तो प्रताड़ित किया जाता था वर्ना जेल जाना तय था. इसके साथ ही अंग्रेजों के सामने कोई ग्रामीण बैलगाड़ी पर बैठकर निकला तो उसपर कोड़ो की बरसात की जाती थी. बैलों को कांजी हॉउस भेज दिया जाता था, बैलो को छुड़ाने के लिए किसानों से दोगुनी रकम अदा करनी पड़ती थी.
मोहम्मदपुर के ग्रामीण कामता प्रसाद बताते हैं कि अंग्रेजी हुकुमत के बड़े अफसर इस अलीशान हवेली में रहते थे. वो ग्रामीणों और महिलाओं पर जुल्म करते थे. जब कोठी में आग लगाई गई तो मेरी उम्र लगभग 13 वर्ष थी. लेकिन मेरी आंखों के सामने आज भी वो दृश्य जिंदा है. इस कोठी में रहने वाले अंग्रेज टांडेल ओर ओवर सराय बहुत ही क्रूर अफसर थे.
ग्रामीण ओमप्रकाश के मुताबिक अंग्रेज बेस कैंप पर शाही पार्टी का आयोजन करते थे. एक किस्सा यहां का बहुत फेमस है अंग्रेजो ने अपनी पार्टी में बिरहर गांव की एक नाचने वाली महिला को बुलाया था. लेकिन वो किसी वजह से अंग्रेजो की पार्टी में नहीं आ पाई थी. अगले दिन अंग्रेजो ने उसे नहर से पानी लेते हुए देख लिया था. इस पर अंग्रेज अफसरों ने उस पर पांच सौ बीघा जमीन की सिचाई का लगान लगा दिया था. जब नाचने वाली महिला लगान नहीं दे पाई तो उसे गांव निकालवा दिया था.
19वीं शताब्दी में गांव से बाहर गंग नहर के किनारे बनी ये कोठी अंगेज अफसरों के कामकाज की जगह थी. यहां नहर विभाग,तार बाबू,पुलिस अफसर अपने क्षेत्र का काम काज करते थे. इस कोठी के चारो तरफ अफसरों के रहने के लिए कमरे बने थे. पानी के लिए कुंआ और प्रार्थना के लिए चर्चनुमा सभागार भी थी. इस कोठी से बैठकर अंग्रेज लगान वसूलने का काम भी करते थे.
कानपुर के मोहम्मदपुर गांव में बनी एक कोठी अगस्त क्रांति की गवाह है, जहां स्तंत्रता दिवस पर आज भी तिरंगा फहराया जाता है. खंडहर में बदल चुकी अंग्रेजों की यह कोठी अपने आप में 76 साल पुराना इतिहास संजोए है. इस कोठी ने ग्रामीणों के साथ की गई क्रूरता, जुल्म और उनकी चीखों को सुना है. महिलाओं-लड़कियों साथ हुई हैवानियत को भी देखा है.अंग्रेजों के जुल्म से तंग आकर गांव वालों ने इस कोठी को आग के हवाले कर दिया था.
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